मप्र में निर्मित हो रही अधिकांश परियोजनाएं लेतलाली और भ्रष्टाचार का शिकार हो रही हैं। इसकी वजह यह है कि लोक निर्माण विभाग में बैठे अधिकारी ठेकेदारों के साथ मिलीभगत कर मनमाने तरीके से निर्माण कार्य करवा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि सरकार की नाक के नीचे भी नियमों को ताक पर रखकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। हाल ही में राजधानी भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज परिसर में बन रही हमीदिया अस्पताल की नई बिल्डिंग में सुनियोजित तरीके से घपला करने का मामला सामने आया है। कैग की रिपोर्ट में मामला उजागर होने के बाद भी लोक निर्माण विभाग की भर्राशाही जारी है। आलम यह है कि शासन के निर्देश के बाद लोक निर्माण विभाग ने ढाई माह बाद शासन को रिपोर्ट भेजी है और उसमें कहा गया है कि सबकुछ नियमानुसार हुआ है।
गौरतलब है कि राजधानी भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज परिसर में 6 साल से बन रही हमीदिया अस्पताल की नई बिल्डिंग का काम पूरा होने के पहले ही नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने इसमें बड़ा फर्जीवाड़ा पकड़ लिया है। यहां निर्माण कार्य का ठेका गुजरात के वडोदरा की कंपनी क्यूब कंस्ट्रक्शन के पास है। पीडब्ल्यूडी की परियोजना क्रियान्वयन इकाई (पीआईयू) के अफसरों ने अनुबंध की शर्तों के खिलाफ जाकर कंपनी को तय मात्रा से ज्यादा सीमेंट इस्तेमाल के नाम पर 3.23 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान कर दिया। ऑडिट में ये पकड़ में न आए, इसके लिए अफसरों ने प्री-बिड डॉक्यूमेंट में छेड़छाड़ की ताकि भुगतान के बदले सरकारी वसूली से बचा जा सके। लेकिन कैग ने ऑडिट में धांधलियां पकड़ लीं।
कैग ने अफसरों की इस करतूत और वित्तीय अनियमितता पर सख्त आपत्ति जताई है। कैग ने कहा है कि निर्माण कार्य में न केवल कई कमियां हैं, बल्कि सरकारी पैसे का ज्यादा भुगतान करना पड़ा है। यही नहीं कैग ने ये भी कहा है कि ज्यादा लागत के बावजूद निर्माण की गुणवत्ता ठीक नहीं है। कैग की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार किस तरह किया गया है, इसका भी जिक्र किया गया है। कैग के मुताबिक ठेकेदार से करोड़ों की वसूली न हो, इसलिए डीपीई ने पेवमेंट शब्द को पेयमेंट में बदल दिया। लेकिन जब लेखा परीक्षक ने मूल दस्तावेज के साथ डीपीई कॉपी की छानबीन की तो गलती पकड़ में आ गई। कैग ने कहा कि बीओक्यू (बिल ऑफ क्वांटिटी) के अनुसार दरें बताई गई हैं, जो कि ठीक नहीं है, क्योंकि बीओक्यू केवल एस्टीमेट का भाग है। जबकि ठेकेदार और पीआईयू के बीच हुआ अनुबंध ही वह दस्तावेज है, जो दोनों के लिए बाध्यकारी है।
कैग की आपत्ति पर शासन ने अगस्त 2020 में जवाब दिया कि, ठेकेदार ने बीओक्यू पर दरें बताई थीं, न कि एसओआर पर। बीओक्यू में 330 किलोग्राम से कम या ज्यादा सीमेंट इस्तेमाल करने पर यथास्थिति वसूली या अधिक भुगतान का प्रावधान है। इसलिए ज्यादा भुगतान किया। कैग की रिपोर्ट बताती है कि इस इमारत के लिए पीआईयू ने 1 अगस्त 2014 में टेंडर (एनआईटी) निकाले थे। शेड्यूल ऑफ रेट यानी एसओआर निर्धारित होने के पहले ही अफसरों ने कंपनी को फायदा देने का रास्ता निकाल लिया। उन्होंने 7 नवंबर 2015 को प्रस्तावित एसओआर में संशोधन कर डिजाइन के हिसाब से कंस्ट्रक्शन में 330 किग्रा-घनमीटर न्यूनतम सीमेंट उपयोग की सीमा तय कर दी।
इसके बाद राज्य शासन ने 10 दिसंबर को भवन निर्माण के लिए एसओआर तय की, जिसमें ये संशोधन शामिल था। ये एसओआर पीआईयू और निर्माण कंपनी के बीच हुए अनुबंध का भी हिस्सा थी। इस संशोधन के बाद भी डिजाइन मिश्रण में उपयोग होने वाले सीमेंट की अतिरिक्त मात्रा इस्तेमाल होने पर शासन की ओर से भुगतान की अनुमति नहीं थी। लेकिन पीआईयू के दस्तावेजों से पता चला कि भवन निर्माण के तीन कामों में निविदा का प्रकाशन सीमेंट इस्तेमाल के निर्धारित मात्रा के संशोधन के काफी बाद किया गया। साथ ही डिजाइन मिक्स में निर्धारित मात्रा से अतिरिक्त सीमेंट उपयोग के लिए कंपनी को 3.23 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान भी कर दिया गया। ये मामला सामने आने के बाद चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने इसकी शिकायत शासन को भेजी थी। शासन ने इसकी जांच के लिए ईएनसी पीडीपीआईयू को भेजा। जब इस संदर्भ में ईएनसी गोविंद मेहरा से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि मुझे इसकी जानकारी नहीं है। मुझे पता चला है कि एपीडी एसएल सूर्यवंशी ने इसका जवाब शासन को भेज दिया है। इस संदर्भ में सूर्यवंशी ने बताया कि कंपनी को टेंडर के तहत काम मिला है। कंपनी ने टेंडर और एग्रीमेंट के अनुसार काम किया है। ऑडिट में कहा गया है कि दरें कम की जाएं, जो नियमानुसार असंभव है। हमने शासन को यह रिपोर्ट भेज दी है।
दो साल से 95 फीसदी पर ही अटका है निर्माण कार्य
कोरोना की तीसरी लहर अब खत्म होने को है, भर्ती मरीजों की संख्या भी अब कम हो रही है। हमीदिया अस्पताल के डी ब्लॉक में बना कोविड डेडिकेटेड हॉस्पिटल भी लगभग खाली पड़ा है। ऐसे में इस ब्लॉक में अब अस्पताल की शिफ्टिंग को लेकर चर्चा होने लगी है। दरअसल डी ब्लॉक में अब भी कई निर्माण कार्य अधूरे हैं जिसे पूरा किए बिना विभाग नई बिल्डिंग में शिफ्ट नहीं किए जा सकते। शिफ्टिंग में हो रही देरी को लेकर हर बार बैठकें होती हैं, जिसमें निर्माणकर्ता कंपनी का जवाब होता है, सिर्फ 5 फीसदी काम बाकी है। बीते 2 साल से 5 फीसदी काम नहीं हो पाया। जब तक निर्माण कार्य 100 फीसदी पूरा नहीं होता, शिफ्टिंग संभव नहीं है। मामले में गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. अरविंद राय का कहना है कि कंपनी से लगातार बात चल रही है। कोरोना की तीसरी लहर के चलते इसे कोविड ब्लॉक बना दिया गया था, अब यहां अस्पताल के शिफ्ट करने की तैयारी चल रही है। डी ब्लॉक में 6 मुख्य ऑपरेशन थिएटर बनाए जाने हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ एक ही तैयार हो पाया है। इन ओटी में ओटी लाइट के साथ स्टरलाइजेशन यूनिट तैयार करनी है। हमीदिया अस्पताल के पीछे बड़ा तालाब होने के कारण एसटीपी का वेस्ट कहां निष्पादित किया जाए, इस पर आम सहमति नहीं बन पा रही है। इसे लेकर हमीदिया अस्पताल और पीसीबी के साथ-साथ नगर निगम भोपाल के बीच कई बार संवाद हो चुका है, लेकिन कोई आम सहमति नहीं बनी है।
- रजनीकांत पारे