पूरा देश अनलॉक हो गया है, लेकिन मप्र में बसों के पहिए अब भी लॉक हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि राजधानी भोपाल सहित प्रदेशभर में लोग पैदल या लिफ्ट लेकर ऑफिस जाने और आने के लिए मजबूर हैं। एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए भी लोगों को टैक्सी का सहारा लेना पड़ रहा है, जिससे गरीबी में आटा गीला हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ राजधानी भोपाल की सिटी बसों के साथ ही प्रदेशभर में करीब 35 हजार से अधिक यात्री बसों के पहिए थमे हुए हैं, इस कारण 60,000 ड्राइवरों और 90,000 कंडक्टर-क्लीनरों के सामने रोजी-रोटी का संकट मंडरा रहा है। सूत्र बताते हैं कि बस ऑपरेटर बस चलाने के लिए तैयार हैं, लेकिन सरकार उनसे लॉकडाउन के दौरान 3 माह बसें खड़ी होने के बावजूद टैक्स का दबाव बना रही है। वहीं नए-नए कायदे-कानून भी लाद रही है। इससे बस संचालकों पर दोहरी मार पड़ रही है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार करीब 2 लाख करोड़ रुपए के कर्ज तले दबी प्रदेश सरकार की आर्थिक स्थिति लॉकडाउन ने और खराब कर दी है। ऐसे में सरकार आबकारी और परिवहन विभाग के माध्यम से आर्थिक स्थिति सुधारने की कोशिश कर रही है। सरकार की इसी कोशिश का नतीजा है कि शराब की बिक्री से इस साल मिलने वाला करीब 15 हजार करोड़ का राजस्व भी डूबता नजर आ रहा है। ऐसी ही स्थिति अब परिवहन विभाग में भी नजर आ रही है। पिछले एक माह से बस संचालक सरकार से लगातार चर्चा कर मांग कर रहे हैं कि लॉकडाउन अवधि में संचालन बंद होने के कारण सभी बसों का टैक्स शून्य किया जाए, लॉकडाउन समाप्त होने के पश्चात बसों के संचालन की नीति का शासन स्पष्टीकरण दे, सोशल डिस्टेंस नीति में बसों का संचालन पर शासन मोटर मालिकों से प्रदेश स्तर पर चर्चा करे, तीन माह में बसों के बंद संचालन अवधि में बेरोजगार कर्मचारियों को 5 हजार रुपए प्रतिमाह भत्ता दिया जाए और बसों में 50 प्रतिशत सवारी बैठाने के निर्णय के तहत किराया दोगुना किया जाए। उन्होंने किराया बढ़ाने को लेकर तर्क दिया है कि सरकार ने यात्री बसों में 50 प्रतिशत यात्रियों को मंजूरी दी है, हम लोग अपने नुकसान की भरपाई कैसे कर पाएंगे। बस ऑपरेटर्स का कहना है कि 50 प्रतिशत यात्रियों के साथ बसें नहीं चलाई जा सकतीं है। लेकिन सरकार इस दिशा में कोई निर्णय नहीं ले पा रही है। ऐसे में परिवहन विभाग के अधिकारी भी आशंका जता रहे हैं कि कहीं इसका भी हाल आबकारी विभाग जैसा न हो जाए।
लॉकडाउन के कारण राजधानी भोपाल सहित पूरे प्रदेश में बंद की गई बसें दोबारा शुरू करने के बारे में सरकार अभी तक कोई फैसला नहीं ले पाई है। दरअसल, राज्य शासन के द्वारा लॉकडाउन 5 में भोपाल, इंदौर व उज्जैन संभाग को छोड़कर अन्य संभागों में बसों के संचालन को अनुमति दे दी गई थी। लेकिन 2-3 दिन कुछ बसों के संचालन के बाद इन्हें फिर बंद कर दिया गया। बस ऑपरेटर का कहना है कि जिन जिलों में बसों के संचालन की अनुमति दी गई है। वहां भी 50 प्रतिशत क्षमता में सवारी बैठाने की जो शर्त गाइडलाइन में दी गई है, उससे भारी परेशानी होना है। क्योंकि क्षमता से अधिक सवारी ढोने के बाद ही संचालन खर्च पूरा होगा। ऐसे में सवारी से किराया दोगुना लेना पड़ेगा जो सरकार के निर्धारित मापदण्ड अनुसार आपत्तिजनक होगा। मध्यप्रदेश प्राइम रूट बस ऑपरेटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गोविंद शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को समस्या से अवगत कराया गया है। मुख्यमंत्री ने जल्द ही इसका हल निकालने की बात कही है।
सरकार के निर्देश के बाद भोपाल, इंदौर व उज्जैन संभाग को छोड़कर अन्य संभागों में जो कुछ बसों का संचालन हो रहा था, उनके पहिए भी 1 जून से थम गए हैं। प्राइम रूट बस ऑनर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद शर्मा का कहना है कि भारत में कोरोना के प्रकोप पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है इस कारण सोशल डिस्टेंसिंग के कारण बसों का संचालन ग्रीन जोन एवं यलो जोन में भी नहीं हो पाएगा। इसलिए यात्रियों की सुरक्षा एवं हमारे स्टाफ की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए बसों का संचालन बंद रखा गया है।
बस ऑपरेटरों पर तीन महीने का 70 करोड़ रुपए का टैक्स बकाया है। ऑपरेटरों की मांग है कि अप्रैल, मई और जून माह का यह टैक्स माफ किया जाए। बता दें कि बस ऑपरेटरों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ज्ञापन सौंपा था। परिवहन महकमे ने सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव रखा था, जिसमें उन्होंने लॉकडाउन में बसों का संचालन ना हो पाने के कारण टैक्स माफी की मांग की थी। सूत्र बताते हैं कि सरकार जल्द ही बैठक कर फैसला ले सकती है। जिसमें ऑपरेटरों के टैक्स में 40 फीसदी तक की राहत देने की बात कही जा रही है। राजधानी भोपाल की बात करें तो यहां सिटी बसों (लाल बसों) का संचालन कराने में सरकार को लगभग 10 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे। सूत्रों का कहना है कि राजधानी में बसों का संचालन करने वाली प्रसन्ना पर्पल कंपनी का करीब साढ़े 4 करोड़ रुपया सरकार पर बकाया है। कंपनी लगातार अपनी बकाया राशि की मांग कर रही है। वहीं सरकार को ऑपरेटरों को भी 6 करोड़ रुपए देना है। उधर, नगर निगम की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल है। ऐसे में सिटी बसों का संचालन अधर में लटका हुआ है। सूत्र बताते हैं कि सरकार इस दिशा में फिलहाल कोई भी कदम उठाती नहीं दिख रही है। उधर, लोगों की परेशानी दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।
लाखों का रोजगार छीना
प्रदेश में बसें बंद होने के कारण 60,000 ड्राइवरों और 90,000 कंडक्टर-क्लीनर बेरोजगार हो गए हैं। एक बस के जरिए दो ड्राइवर और 3 से ज्यादा कंडक्टर, क्लीनर का रोजगार चलता है। इसके साथ ही बसों की रिपेयरिंग, उनकी डेंटिंग-पेंटिंग के साथ उसकी ऑयल ग्रेसिंग करने से जुड़े लोगों को भी रोजगार मिलता है। बसों से जुड़ा व्यापार भी होता है। कई व्यापारियों और कारोबारी का बिजनेस बस ही हैं। पूरे मध्य प्रदेश में यात्री बसों के पहिए थमे हुए 85 दिन से ज्यादा हो गए हैं। सरकार बसों के संचालन को लेकर कोई फैसला नहीं ले पा रही है।
- सुनील सिंह