बर्दाश्त के बाहर महंगाई
16-May-2022 12:00 AM 538

 

आपकी हैसियत चाहे जो हो, हाल के महीनों में महंगाई की चुभन आपने जरूर महसूस की होगी। अगर आप निम्न आय या मध्य वर्ग से हैं तो क्या कहने। संभव है कि आपकी थाली में दो की जगह एक सब्जी रह गई हो, या किसी दिन वह भी नसीब न होती हो। सरकारी आंकड़े भले रिकॉर्ड महंगाई बता रहे हों, लेकिन वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण इसे भी नकारने  के अंदाज में कहती हैं, यह बहुत ज्यादा नहीं है। पर आप यह सोचकर अपनी हताशा दूर कर सकते हैं कि इस बार समस्या विश्वव्यापी है। अमेरिका में भी महंगाई चार दशक के रिकॉर्ड स्तर पर है। हां, यह जरूर है कि भारत में लोगों को 5 वर्षों से लगातार कठिन परिस्थितियों से जूझना पड़ रहा है। पहले तो नोटबंदी और जीएसटी के कारण 93 फीसदी रोजगार देने वाले असंगठित क्षेत्र पर मार पड़ी। फिर दो साल पहले आई महामारी ने भी सबसे अधिक नुकसान इसी क्षेत्र को पहुंचाया। अब जब रूस-यूक्रेन युद्ध ने महंगाई को पलीता लगाया है तो आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक ने यह कहकर जले पर नमक छिड़कने का काम किया है कि भारत में गरीबी घट गई है।

खुदरा महंगाई मार्च 2022 में 6.95 फीसदी हो गई जो 17 महीने में सबसे ज्यादा है। रिजर्व बैंक ने इसकी ऊपरी सीमा 6 फीसदी तय कर रखी है लेकिन यह तीन महीने से इसके ऊपर है। थोक महंगाई मार्च में 14.55 फीसदी पहुंच गई और यह अप्रैल 2021 से दहाई अंकों में है। थोक महंगाई के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि उसमें सबसे अधिक योगदान कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, खनिज तेल और मेटल का है जिनकी सप्लाई रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बाधित हुई है। वैसे तो हर साल गर्मियों में फल-सब्जियां महंगी होती हैं लेकिन इस बार बात इससे ज्यादा है। विशेषज्ञों का कहना है कि थोक महंगाई लगातार 12 महीने दहाई अंकों में रहना सामान्य नहीं है।

इस महंगाई के पीछे कई कारण हैं। एक तो महामारी की वजह से विश्व स्तर पर जो सप्लाई बाधित हुई, वह अभी तक सामान्य नहीं हो पाई है। दुनिया के मैन्युफैक्चरिंग हब चीन के शहरों में फिर लॉकडाउन लगने से वहां से निर्यात प्रभावित हुआ है। मेटल और कच्चे तेल के दाम विश्व बाजार में लगातार ऊंचे बने हुए हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध ने स्थिति को और बिगाड़ा है। भारत पेट्रोलियम पदार्थ, खाद्य तेल, उर्वरक, मेटल आदि के मामले में काफी हद तक आयात पर निर्भर है और रुपया कमजोर होने से भी आयात महंगा हुआ है।

जानकार बताते हैं कि असंगठित क्षेत्र को परेशानी से संगठित क्षेत्र को बहुत फायदा हुआ। डिमांड संगठित क्षेत्र में शिफ्ट हो गई जिसने दाम बेतहाशा बढ़ाए हैं। रिजर्व बैंक के 1,500 कंपनियों के सर्वे के अनुसार इनका मुनाफा 24 फीसदी तक बढ़ गया है, जबकि अर्थव्यवस्था में उतनी तेजी नहीं आई है। बात सिर्फ फल-सब्जियों या ईंधन की नहीं, कॉरपोरेट के पास काफी प्राइसिंग पावर आ गई है। कंपनियां दाम बढ़ाकर ज्यादा मुनाफा कमा रही हैं। एक सर्वे के मुताबिक मार्च तिमाही में कंपनियों का रेवेन्यू 15 फीसदी तक बढ़ा, लेकिन उनका मुनाफा 26 फीसदी बढ़ गया।

रिजर्व बैंक ने भी कहा है कि महंगे ईंधन और खाद्य पदार्थों ने आम लोगों की जेब पर दबाव डाला है और युद्ध के कारण जोखिम बढ़ा है। सूरजमुखी तेल, गेहूं और अन्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने का अंदेशा है। एल्युमीनियम और निकेल के दाम एक दशक की ऊंचाई पर हैं। रूस एल्युमिनियम के सबसे बड़े उत्पादकों में है जिसका इस्तेमाल ट्रांसपोर्टेशन और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में होता है। निकेल का ज्यादा इस्तेमाल हाईग्रेड स्टील बनाने और बैटरी में किया जाता है। रिजर्व बैंक के अनुसार भू-राजनीतिक तनाव से चिप की कमी बढ़ेगी जिससे वाहन और इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट के दाम बढ़ेंगे।

रूस पर अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंध का असर भी महंगाई पर है। युद्ध लंबा खिंचने के आसार दिख रहे हैं, तो महंगाई भी जल्दी नीचे आती लग नहीं रही है। युद्ध के कारण यूक्रेन में गेहूं, मक्का और सूरजमुखी की नई फसल की बुवाई नहीं हो पा रही है। इसलिए आने वाले दिनों में विश्व स्तर पर इनकी कमी होगी। विश्व गेहूं बाजार में भारत कुछ हद तक रूस और यूक्रेन की भरपाई करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इससे घरेलू बाजार में गेहूं महंगा हो गया है। मप्र और राजस्थान समेत कई राज्यों में गेहूं एमएसपी (2015 रुपए प्रति क्विंटल) से 700 रुपए तक ऊपर बिक रहा है। ज्यादा महंगाई का सीधा असर लोगों के रहन-सहन पर पड़ता है, क्योंकि उनकी कमाई महंगाई की रफ्तार से नहीं बढ़ती। अभी तो महामारी के कारण गई सभी नौकरियां ही वापस नहीं आई हैं। ऐसे में तार्किक बात तो यही है कि गरीबी बढ़ेगी। लेकिन आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक ने भारत में गरीबी घटने की बात कही है। 

पिछले कई सालों से महंगाई बनी समस्या

वैसे, महंगाई की समस्या पिछले साल से चली आ रही है। मार्केट रिसर्च फर्म नीलसन-आईक्यू के अनुसार दिसंबर तिमाही में दाम बढ़ने से एफएमसीजी उत्पादों की बिक्री मात्रा के लिहाज से 2.6 फीसदी घट गई, लेकिन मूल्य के लिहाज से 9.6 फीसदी बढ़ गई। कारण यह है कि कमोडिटी, पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बढ़ने के कारण हिंदुस्तान यूनिलीवर, आईटीसी, मेरिको, प्रॉक्टर एंड गैंबल, ब्रिटानिया, टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स जैसी सभी प्रमुख कंपनियों ने अपने उत्पादों के दाम लगातार बढ़ाए हैं। रिटेल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म बाइजोम के सर्वे के अनुसार महंगाई के कारण मार्च तिमाही में भी एफएमसीजी प्रोडक्ट की बिक्री धीमी हुई है।

- विकास दुबे

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