कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए सिंधिया समर्थक 22 पूर्व विधायकों को अब उपचुनाव की चिंता सताने लगी है। ये नेता भलीभांति जानते हैं कि उपचुनाव में उन्हें कांग्रेस विभीषण के तौर पर प्रचारित करेगी, वहीं भाजपा नेता भी उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे। इसलिए अब इन नेताओं ने भाजपा के क्षेत्रीय क्षत्रपों से गलबहियां करना शुरू कर दिया है। इनको उम्मीद है कि इससे भाजपाई कार्यकर्ता उन्हें स्वीकार कर सकते हैं।
मंत्री बनने की चाह में कांग्रेस से बगावत के बाद अपनी विधायकी छोड़ 22 बागी भाजपा में शामिल तो हो गए हैं लेकिन अब उन्हें विधायक बनने की चिंता सताने लगी है। उन्हें यह तो विश्वास है कि भाजपा उपचुनाव में टिकट देगी, लेकिन जीत उनके हाथ लगेगी या नहीं यह भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की सक्रियता के ऊपर है। इसलिए वे अपने कट्टर विरोधी रहे भाजपा नेताओं से नजदीकी बढ़ाने लगे हैं। आलम यह है कि पुराने भेदभाव को मिटाकर बागी नेता बेझिझक भाजपा के कद्दावर नेताओं के घर पहुंच रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा ने कांग्रेस के असंतुष्ट नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा और केंद्रीय मंत्री बनाने के साथ ही मप्र मंत्रिमंडल में एक उपमुख्यमंत्री, 12 कैबिनेट मंत्री और 22 बागियों को भाजपा से विधानसभा टिकट का वादा किया है। लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन ने सारा गणित बिगाड़ दिया है। ऐसे में बागी नेताओं ने उपचुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए सबसे पहले वे भाजपा नेताओं से नजदीकी बढ़ा रहे हैं।
कुछ समय पहले तक खांटी कांग्रेसी कहे जाने वाले ये बागी नेता अब अपने आपको भाजपाई प्रदर्शित करने के लिए हर संभव कदम उठा रहे हैं। दरअसल इन नेताओं को अब उपचुनाव की चिंता सता रही है। इसके चलते ही यह नेता अब भाजपा के दिग्गज नेताओं के साथ ही इलाकाई प्रभावशाली नेताओं के दर पर दस्तक दे रहे हैं। इस दौरान वे पार्टी कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते दिखना शुरू हो गए हैं। यही वजह है कि अब तक इंदौर की स्थानीय राजनीति में सालों से एक दूसरे के धुर विरोधी रहे तुलसी सिलावट और कैलाश विजयवर्गीय में करीबी दिखना शुरू हो गई है। हाल ही में मंत्री बने सिलावट सौजन्य भेंट करने विजयवर्गीय के नंदानगर स्थित उनके घर गए। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच अकेले में काफी देर तक चर्चा होती रही। कहा जा रहा है कि इसमें सांवेर विधानसभा उपचुनाव को लेकर भी बात हुई। इस दौरान विजयवर्गीय ने उन्हें उपचुनाव में हरसंभव सहयोग का भरोसा दिलाया है। इसी तरह से मंदसौर के सुवासरा से जीते हरदीप सिंह डंग भाजपा के सदस्यता अभियान को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। इसके लिए वे जिले के संगठन नेताओं से लगतार संपर्क बनाए हुए हैं। खास बात यह है कि डंग बीता चुनाव महज 200 वोटों से जीते थे। अब उपचुनाव में डंग से हारने वाले पूर्व भाजपा प्रत्याशी की मदद हर हाल में जरूरी है। यही वजह है कि उनसे लगातार संपर्क बनाया जा रहा है। इसी तरह से पूर्व मंत्री और रायसेन जिले के सांची से विधायक रहे प्रभुराम चौधरी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से मुलाकात कर स्थानीय राजनीति से अवगत करा चुके हैं। वे पिछला चुनाव वरिष्ठ नेता गौरीशंकर शेजवार के पुत्र मुदित के विरोध में जीते थे। क्षेत्र में शेजवार की संगठन पर मजबूूत पकड़ है। यही वजह है कि शेजवार के सहयोग के लिए वे हर संभव प्रयास कर रहे हैं। विंध्य के नेता और पूर्व मंत्री बिसाहूलाल सिंह भी अब रामलाल रौतेल, रामलल्लू वैश्य, केदारनाथ शुक्ला जैसे नेताओं से लगतार संपर्क बनाए हुए हैं। बिसाहूलाल पिछला चुनाव रौतेल को हराकर ही जीते थे। इसी तरह बुंदेलखंड में गोविंद सिंह राजपूत अब भाजपा संगठन में सक्रियता बढ़ा रहे हैं। उपचुनाव में उन्हें सीनियर नेता गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह राजपूत की मदद चाहिए। राजपूत पूर्व भाजपा सांसद लक्ष्मीनारायण यादव के पुत्र सुधीर यादव को हराकर चुनाव जीते थे।
पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती ग्वालियर-चंबल अंचल में है। इस इलाके में कांग्रेस से आए नेता और भाजपा के नेताओं में समन्वय की दिक्कत है। यही वजह है कि पार्टी संगठन ने इस काम में सभ्ंाागीय संगठन मंत्री शैलेंद्र बरूआ को लगा रखा है, जिसकी वजह से वे लगातार कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कर रहे हैं। इसी इलाके से ही पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ सबसे अधिक विधायक और नेता भाजपा में आए हैं। ग्वालियर शहर की दो सीटों पर जीत के लिए पूर्व मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर और मुन्नालाल गोयल के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं को मनाने का दौर शुरू हो गया है। मुरैना से रघुराज कंसाना के लिए रूस्तम सिंह को भी मनाया जा रहा है। माना जा रहा है कि इस अंचल के नेताओं से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी चर्चा करेंगे।
संगठन सूत्रों की मानें तो लॉकडाउन समाप्त होने के बाद उपचुनाव वाले सभी 24 विधानसभा क्षेत्रों के नेताओं की बड़ी बैठक प्रदेश भाजपा कार्यालय में आयोजित की जाएगी। इसमें कांग्रेस से आए नेताओं को खासतौर पर बुलाया जाएगा। यहीं से इन नेताओं को संगठन में पूरी तरह स्वीकार करने की पटकथा तैयार की जाएगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसमें मुख्य भूूमिका निभाएंगे। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोचा था, कि अन्य नेताओं के दल बदलने पर होने वाली छोटी-मोटी प्रतिक्रिया की तरह ही उनसे भी एक-दो दिन तक लोग सवाल करेंगे। फिर सब कुछ सामान्य हो जाएगा, लेकिन हालात इसके बिलकुल विपरीत हैं। जहां देशभर के लोगों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने को नासमझी भरा आत्मघाती कदम बताया, वहीं सोशल मीडिया पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को गद्दार से लेकर तरह-तरह के स्तरहीन शब्दों से संबोधित किया जाने लगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न तो कभी जनता से इतनी गालियां सुनी थीं, न ही उन्होंने खुद कभी इसकी कल्पना की थी। सिंधिया की एक गलती से उन्हें श्रीमंत और महाराजा से गद्दार तक की उपाधि से नवाजा जाने लगा है। जब सिंधिया का यह हाल है, तो 22 बागियों के साथ जनता क्या व्यवहार कर रही होगी। उसकी कल्पना तो आप कर ही सकते हैं। बस इतना बता दें कि लोग इन 22 बागियों की सोशल मीडिया पोस्ट का इंतजार करते हैं। जैसे ही ये कोई पोस्ट डालते हैं, हजारों की तादाद में लोग उनसे उनके बिकने की कीमत और जनता से धोखे का कारण पूछकर खिंचाई करने लगते हैं। कुछ बागियों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट डिलीट कर दिए हैं। तो कुछ ने नया अकाउंट बनाने की तैयारी कर ली है।
वहीं भाजपा खेमे में इन बागियों की अब ना तो कोई जरूरत है, न ही कोई पूछ-परख है। सब जानते हैं कि ये बागी जब अपनी मातृ संस्था को धोखा दे सकते हैं। तो फिर ये किसी को भी और कभी भी धोखा दे सकते हैं। ये बागी दिल्ली में भाजपा में तो शामिल हो गए। लेकिन आज तक इनसे इनके जिले का भाजपा जिलाध्यक्ष तक मिलने नहीं आया। ये सब अपने साथ अपने पुराने चमचे भी लेकर भाजपा में शामिल होने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन इन्हें तब झटका लगा जब एक भाजपा नेता ने कह दिया कि हमें केवल विधायक की जरूरत थी। कार्यकर्ता, जिलाध्यक्ष और प्रवक्ताओं की भाजपा में पहले से ही भरमार है। इसलिए सिर्फ विधायक ही आएं, उनके समर्थक नहीं।
अब ये 22 नेता भाजपा में कांग्रेस से इस्तीफा देकर आ गए हैं, लेकिन भाजपा के छत्रप इन्हें एक बोझ से ज्यादा कुछ भी नहीं समझ रहे हैं। एक ऐसा बोझ जिसे जितनी जल्दी उतार फेंका जाए उतनी जल्दी राहत महसूस होगी। अब ये सभी बागी उस पार्टी, उस नेता और उस कार्यकर्ता के भरोसे हैं। जिसे 2018 में हराकर ये विधानसभा पहुंचे थे। इन्हें पैसा मिल गया, मंत्री पद भी मिल जाएगा। विधानसभा का टिकट भी मिल जाएगा। लेकिन भाजपा के उस नेता या उस कार्यकर्ता को क्या मिलेगा जो एक साल पहले ही इनसे पराजित हुआ था। एक बार के लिए भाजपा कार्यकर्ता मन मारकर इनका साथ दे भी दे तो क्या उस क्षेत्र का भाजपा नेता या विधायकी का दावेदार इनका साथ दे पाएगा? हरगिज नहीं, क्योंकि यदि ये बागी एक बार उस क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत गए, तो फिर हमेशा इन बागियों को ही वहां से टिकट मिलेगा। सालों से टिकट का इंतजार कर रहे भाजपा नेताओं का राजीतिक जीवन ही समाप्त हो जाएगा।
उपचुनाव में होगी बगावत
वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं, जब बागी नेता सिंधिया पर चढ़ाई करेंगे। सिंधिया भाजपा नेताओं पर चढाई करेंगे। भाजपा नेता इस चढ़ाई का बदला बागियों को चुनाव में पराजित कराकर लेंगे। 6 माह बाद भाजपा विपक्ष में, बागी घर में और कमलनाथ सरकार में नजर आएंगे। चलो एक पल के लिए मान लें कि सब ठीक हो गया। ऐसी स्थिति में क्षेत्रीय क्षत्रप जैसे ग्वालियर से नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, जयभान सिंह पवैया, रूस्तम सिंह और नरोत्तम मिश्रा को वीआरएस लेना होगा? अब यहां के सबसे बड़े नेता तो सिंधिया होंगे। इसी तरह सागर क्षेत्र में गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह समेत सभी भाजपा नेताओं के ऊपर गोविंद सिंह राजपूत होंगे। मालवा क्षेत्र में तुलसी सिलावट भाजपा नेताओं के राजनीतिक जीवन को कुचलकर शिखर पर पहुंच जाएंगे? कुल मिलाकर भाजपा ने मध्य प्रदेश में सरकार नहीं बनाई है, बल्कि अपने नेताओं के राजनीतिक अस्तित्व पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
उपचुनाव के बाद भी स्थिरता बनाए रखना मुश्किल
मध्यप्रदेश में जिस तरह के राजनीतिक समीकरण बन गए हैं। उससे यह माना जा रहा है कि उपचुनाव के बाद भाजपा में स्थिरता बनाए रखना मुश्किल होगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया क्या क्षेत्रीय भाजपा नेताओं और संघ के पदाधिकारियों के निर्देश पर चल सकते हैं। यह सिंधिया के स्वभाव के अनुकूल नहीं है। वहीं नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, प्रभात झा, रूस्तम सिंह और जयभान सिंह पवैया उन्हें अपना नेता मान लें, यह संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में यह माना जा रहा है कि उपचुनाव के बाद भी जो स्थितियां उत्पन्न होंगी, उसमें भाजपा में भी विरोध देखने को मिलेगा। चर्चा यहां तक होने लगी है कि स्पष्ट बहुमत के अभाव में राष्ट्रपति शासन लगाकर मध्यावधि चुनाव कराकर, भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने की कोशिश करेगी। उधर, कांग्रेस के एक नेता कहते हैं कि बागी विधायक इस्तीफा देकर और भाजपा को ज्वाइन करके पछता रहे हैं। क्योंकि अभी तक दो लोगों को छोड़कर न तो कोई मंत्री बना और न ही भाजपा संगठन ने उन्हें स्वीकार किया है। सिंधिया भी न तो राज्यसभा के सदस्य बने, न ही वह केंद्र में मंत्री बने हैं। जिसके कारण उन्हें भी लगने लगा है, कि वह किसी साजिश के शिकार हो गए हैं। उनके समर्थक विधायक भी अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
- कुमार राजेन्द्र