26 जुलाई को यानी अपने जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अपने एक बयान की वजह से सुर्खियों में आ गए। शिवसेना के मुखपत्र 'सामना को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा- 'जिस किसी को मेरी सरकार गिरानी हो वो आज ही गिराए, अभी इसी दौरान ही गिराए फिर मैं देखता हूं। जानकारों ने उनके इस बयान को भारतीय जनता पार्टी और खासतौर पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए चुनौती के तौर पर देखा। अपने इस साक्षात्कार में ठाकरे ने यह भी कहा कि 'मेरी सरकार का भविष्य विपक्ष के हाथों में नहीं। मेरी सरकार गरीबों का तीन पहिए का रिक्शा है, स्टीयरिंग मेरे हाथ में है, लेकिन पीछे दो और लोग बैठे हैं। गठबंधन में हमारे सहयोगी एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) और कांग्रेस 'सकारात्मक हैं और महाविकास अघाड़ी सरकार को उनके अनुभव का फायदा मिल रहा है। अगर मेरी सरकार तीन पहिए वाली है, ये सही दिशा में आगे बढ़ रही है तो आपके पेट में दर्द क्यों हो रहा है?
मुख्यमंत्री ठाकरे का यह बयान ऐसे मौके पर आया है जब राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार बड़े संकट से जूझ रही है। जबकि कर्नाटक और मध्यप्रदेश की सत्ता पहले ही कांग्रेस के हाथ से फिसल चुकी है। गुजरात में भी बीते कुछ सप्ताह में कांग्रेस के पांच विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया है जबकि तीन अन्य विधायक पहले ही पार्टी की सदस्यता छोड़ चुके हैं। ऐसे में ठाकरे के बयान के बाद राजनैतिक गलियारों में इस सवाल की गूंज सुनाई देने लगी है कि क्या महाराष्ट्र में भी शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के महागठबंधन वाली सरकार पर कोई खतरा मंडरा रहा है? अधिकतर जानकार इस सवाल का जवाब 'हां में देते हैं। उनका मानना है कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के आपसी मनमुटाव के चलते महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार पर तभी से तलवार लटक रही है जब से वह अस्तित्व में आई है। इसकी बानगी के तौर पर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार को लिया जा सकता है। गौरतलब है कि उद्धव ठाकरे ने बीते साल 28 नवंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। लेकिन तब उनके साथ तीनों दलों से केवल दो-दो विधायकों ने ही मंत्री पद ग्रहण किया था। बाकी मंत्रियों का चयन करीब तीन सप्ताह बाद ही किया जा सका था। उस समय महाविकास अघाड़ी सरकार के तीनों पहियों यानी शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर गहमागहमी की खबरें सूबे में आम थीं। इसके मद्देनजर कयास लगाए जाने लगे कि जो गठबंधन शुरुआती दिनों में ही बड़ी खींचतान में उलझ गया हो उसके लिए अपना कार्यकाल पूरा कर पाना आसान काम नहीं होगा!
महाराष्ट्र में बीते 6 महीने में ऐसी कई राजनीतिक घटनाएं देखने को मिली हैं जो इन कयासों को बल देती हैं। गौरतलब है कि गठबंधन सरकार बनने के तुरंत बाद से महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया कि मुख्यमंत्री पद पर उद्धव ठाकरे बैठे जरूर हैं, लेकिन सरकार की कमान पूरी तरह से एनसीपी प्रमुख शरद पवार के हाथ में है। चर्चाएं कुछ ऐसी भी हैं कि मुख्यमंत्री ठाकरे अपने निवास (मातोश्री) से बाहर निकलने का नाम ही नहीं लेते जबकि उम्रदराज होने के बावजूद शरद पवार जमीन पर कहीं ज्यादा सक्रिय रहते हैं। जाहिर तौर पर ये बातें शिवसैनिकों को कम ही सुहाती हैं। जानकारों की मानें तो इन चर्चाओं की शुरुआत भी एनसीपी नेताओं की तरफ से हुई और इन्हें हवा देने का काम भी उन्होंने किया। हालांकि कुछ का दावा है कि ये सारी बातें भारतीय जनता पार्टी की तरफ से उछाली गई हैं ताकि गठबंधन में दरार डाली जा सके।
जानकारी के अनुसार इस सबके जवाब में कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री ठाकरे ने एक पीआर एजेंसी से संपर्क साधा और उसे अच्छा-खासा भुगतान कर अपनी छवि सुधारने का काम सौंपा। इसमें कांग्रेस की पूर्व प्रवक्ता रह चुकी प्रियंका चतुर्वेदी की बड़ी भूमिका बताई जाती है। वे बीते साल ही शिवसेना में शामिल हुई थीं। इसके बाद से उद्धव ठाकरे चमत्कारी ढंग से एक प्रभावशाली मुख्यमंत्री के तौर पर उभरते दिखे हैं। कोरोना वायरस की वजह से महाराष्ट्र में पैदा हुए तमाम विपरीत हालात के बावजूद एक आम बैंकर से लेकर फिल्मी सितारे तक सभी एक स्वर में इस बीमारी से निपटने के लिए मुख्यमंत्री ठाकरे की तारीफ करने लगे। लिहाजा इस बार कुढ़ने की बारी एनसीपी की थी। जानकार बताते हैं कि मुंबई जैसे महाराष्ट्र के शहरी इलाकों पर जितना शिवसेना का कब्जा है, प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में उतना ही प्रभाव एनसीपी का माना जाता है। दोनों ही दलों की राजनीति का भी तौर-तरीका कुछ-कुछ एक ही सा रहा है। नतीजतन दोनों ही दलों के बीच प्रतिस्पर्धा और असुरक्षा की भावना भी बराबर ही महसूस की जा सकती है।
- बिन्दु माथुर