पंजाब के मुख्यमंत्री और पूर्व स्टैंड-अप कॉमेडियन भगवंत मान ने अपने ही एक कैबिनेट मंत्री डॉ. विजय सिंगला को भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर इस बात को रेखांकित किया है कि कॉमेडियन में निर्भीकता और जीवटता शायद दूसरे लोगों से कहीं ज्यादा होती है। फिर चाहे वो भगवंत मान हों या फिर व्लादिमिर जेलेंस्की। राजनीतिक हल्कों में मुख्यमंत्री मान द्वारा मात्र दो माह के कार्यकाल में ही अपने ही एक मंत्री का स्टिंग ऑपरेशन करवाकर ताबड़तोड़ उन्हें बर्खास्त कर गिरफ्तार करने के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। इस पर पंजाब भाजपा नेता हरजीत ग्रेवाल ने कहा कि यह कोई तरीका नहीं किसी को एकदम बर्खास्त कर दिया जाए। पहले मंत्री से बातचीत की जानी चाहिए, समय दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कोई भ्रष्ट नेता पार्टी में शामिल है तो इसकी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की भी है। उधर पंजाब के कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री डॉ. राजकुमार वेरका ने भी मान सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि पंजाब में आप सरकार के मंत्रियों को कोई हक नहीं कि वे रिश्वत मांगें, क्योंकि पंजाब में से रिश्वत मांगने का काम तो अरविंद केजरीवाल की टीम ने संभाला हुआ है।
आम आदमी की पार्टी ने दिल्ली के बाद अब पंजाब में भी सुशासन का ऐसा उदाहरण पेश किया है, जो अन्य राज्यों के लिए नजीर बन गया है। जिस तरह भ्रष्टाचार के आरोप में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अपने स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया है, उससे सवाल उठने लगे हैं कि क्या अन्य राज्य भी पंजाब के इस मॉडल को अपनाएंगे। मप्र में भी कई भाजपा नेता गुपचुप तरीके से कहने लगे हैं कि मप्र में भी इस फॉर्मूले को लागू कर देना चाहिए। गौरतलब है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ पंजाब के मॉडल को आज देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सराहा जा रहा है। मप्र में भी इस मुद्दे पर जमकर चर्चा हो रही है। हर कोई यही चाहता है कि मप्र में भी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ इसी तरह कार्रवाई हो। मप्र में मंत्रियों और विधायकों के भ्रष्टाचार के किस्से अब लोगों की जुबां पर आ गए हैं। आपकी पार्टी के कार्यकर्ता ही कहने लगे हैं कि बिना पैसे के कोई काम ही नहीं करता। मंत्रियों के बंगलों से सीधे फोन कर लोगों को बुलाया जाता है और सिस्टम के बाद ही आदेश मिल पाता है। हाथोंहाथ यह भी कहा जाता है कि रिकमंड कहीं से भी करवाओ, चलना सिस्टम से ही होगा।
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जगह-जगह सभाओं में यह कहकर दहाड़ते हैं कि भ्रष्टाचार करने वाले को उल्टा लटका दूंगा, जमीन में गाड़ दूंगा और प्रदेश में रहने लायक नहीं छोडूंगा। लेकिन उसके बाद भी भ्रष्टाचार चरम पर है। मंत्रियों और विधायकों के भ्रष्टाचार के किस्से आम लोगों की जुबां पर आना इस बात का संकेत है कि भ्रष्टाचार की अति हो गई है। एक वरिष्ठ मंत्री की स्थिति यह है कि वे आवेदन पर ही कोड डाल देते हैं और बाद में उनके ओएसडी संबंधित व्यक्ति को बुलाकर हिसाब-किताब कर लेते हैं।
इस देश में अमूमन राजनेताओं और भ्रष्टाचार का चोली दामन का साथ रहा है। खासकर बीते कुछ सालों में तो भ्रष्टाचार से कमाया हुआ पैसा राजनीति में किए गए इन्वेस्टमेंट का अपेक्षित डिविडेंड ही माना जाता है। कई राजनेता और अफसर भ्रष्टाचार को कोसते हुए अरबों की संपत्ति अर्जित करते जाते हैं और जनता उनकी इस मासूम अदा को हतप्रभ होकर देखती रहती है। उल्टे कई जगह तो वो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे नेताओं को जिता भी देती है। सरकार में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार का यह कारोबार बेखटके चलता रहता है। अलबत्ता निजी तौर पर कुछ राजनेता जरूर बेदाग दिखते हैं, लेकिन वो अपवाद हैं। अगर उनके सहयोगी भ्रष्टाचार करते पकड़े जाते हैं तो उन्हें बचाने का खेल शुरू हो जाता है। यह बचाव अक्सर भ्रष्टाचार के आरोप राजनीति से प्रेरित होने, विपक्ष का षड्यंत्र होने, करप्शन के ठोस सबूत पेश करने की चुनौती देने या फिर किसी जांच कमेटी से जांच कराकर रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डालने के रूप में होता है। कुछेक मामले कोर्ट में चले जाते हैं। उन पर बरसों सुनवाई चलती है। बिरले मामलों जैसे लालू प्रसाद यादव, ओमप्रकाश चौटाला, पी. शशिकला जैसे मामलों में सजाएं भी हो जाती हैं। लेकिन इससे भ्रष्टाचारियों का हौसला कम नहीं होता। केवल करप्शन के रेट रिवाइज होते रहते हैं, जो रुपए की ताकत नापने का एक नकारात्मक जरिया होते हैं।
हिम्मत भरा फैसला
भगवंत मान का यह हिम्मत भरा फैसला कई मायनों में अहम है। आज देश में तकरीबन सभी सरकारें कम या ज्यादा मात्रा में भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। तमाम ठेकों, टेंडरों, ट्रांसफर व पोस्टिंग में कमीशन, बयाना, नजराना और शुक्राना तय है। ये अमूमन 10 फीसदी से लेकर 25 फीसदी तक हो सकता है। किसी मंत्री या अफसर तक अगर दस्तूरी के हिसाब से यह रकम पहुंचती रहे तो भी वो 'ईमानदारÓ की श्रेणी में ही गिना जाता है। 'भ्रष्टाचारीÓ शब्द का व्यावहारिक अर्थ है तयशुदा कमीशन अथवा पैसे से ज्यादा की लालच करना। डॉ. विजय सिंगला 10 साल पहले आम आदमी पार्टी में शरीक हुए थे। पेशे से वो डेंटिस्ट और साढ़े 6 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। डॉक्टर होने के कारण ही उन्हें राज्य के स्वास्थ्य मंत्री का अहम पद दिया गया था। लेकिन लालच और भ्रष्टाचारी कल्चर का कोई 'दि एंडÓ नहीं होता। इस हिसाब से देखें तो विजय सिंगला ने बतौर कमीशन विभागीय खरीद और ठेकों का 1 फीसदी ही मांगा था, जो कमीशन की प्रचलित दरों के हिसाब से नगण्य ही कहा जाएगा। कहते हैं कि सिंगला ने 58 करोड़ के कामों के बदले सिंगला ने 1.16 की रिश्वत ठेकेदार व अफसरों से मांगी थी। राजनेताओं का चरित्र यह है कि वो पूरी बेशरमी के साथ झूठ बोल सकते हैं। भ्रष्टाचार करते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ भाषण दे सकते हैं। विजय सिंगला ने भी कुछ दिन पहले मंत्रालय की कमान संभालते हुए दावा किया था कि वो भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेंगे। हो सकता है कि उनकी नजर में 1 परसेंट कमीशन 'भ्रष्टाचारÓ की श्रेणी में न आता हो।
- जय सिंह