मप्र में एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले एक साल से अधिक समय से रोजाना पौधारोपण कर रहे हैं, वहीं प्रदेश के जंगलों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। आलम यह है कि राजधानी भोपाल में ही हर साल 60 हजार पेड़ों का कत्ल किया जा रहा है। जिस शहर को देश के राज्यों में प्राकृतिक रूप से सबसे सुदंर राजधानी का तमगा मिला हुआ था, आज उसी भोपाल के हाल यह हो गए हैं कि उसकी सुंदरता में चार चांद लगाने वाली हारियाली तेजी से कम होती जा रही है, फलस्वरूप सुहाने मौसम पर भी अब समाप्ती का खतरा पैदा हो चुका है। प्रकृति की गोद में स्थित राजधानी भोपाल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण हमेशा आकर्षण का केंद्र रही है। यही कारण है कि सरकार का पूरा फोकस शहर में हरियाली बढ़ाने पर रहता है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि जिन नेताओं और अफसरों पर शहर की हरियाली बढ़ाने और संरक्षण का दायित्व है, उन्होंने ही ग्रीनबेल्ट पर अतिक्रमण कर कहीं पार्किंग और टॉयलेट तो कहीं सर्वेट क्वार्टर तक बना लिए हैं। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो वीआईपी ग्रीनबेल्ट पर अतिक्रमण करने में कोई किसी से कम नहीं है।
इसकी वजह है विकास के नाम पर सरकार व अफसरों द्वारा मिलकर हर साल करीब 60 हजार पेड़ों का औसतन रूप से कराए जाने वाला कत्ल। इसकी वजह से हालात यह हो गए हैं कि शहर में एक दशक के अंदर ही 26 फीसदी हरियाली कम हो चुकी है। इसमें भी खास बात यह है कि 15 फीसदी हरियाली तो महज बीते 5 सालों में ही कम हुई है। इसके बाद भी शहर में अंधाधुंध स्तर पर पेड़ों की कटाई जारी है और जिम्मेदार इस मामले में चैन की नींद में डूबे हुए हैं। इसकी वजह से कभी वनाच्छादित रहने वाला इलाका अब पूरी तरह से बंजर नजर आने लगा है। फलस्वरूप में अब राजधानी की गिनती देश के उन शहरों में होने लगी है, जहां पर सर्वाधिक वायु प्रदूषण की स्थिति है। इसके बाद भी राजधानी में अधोसंरचना विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई अनवरत रूप से जारी है। हाल ही में बैरागढ़ स्थित एमपी स्टेट रोडवेज परिसर में निर्माण कार्य का बहाना बताकर एक सैकड़ा से अधिक पेड़ो की बलि चढ़ा दी गई है। खास बात यह है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसकी शिकायत बड़े अधिकारियों से की, लेकिन इसके बाद भी कोई कदम नहीं उठाया गया। यहां बीते 5 साल में 3 लाख से अधिक पेड़ काट दिए गए। इससे शहर के तापमान में जहां तेजी से वृद्धि हुई है तो वहीं प्रदूषण के साथ ही हरियाली में भी तेजी से कमी आई है।
हाल ही में एक शोध के हवाले से कहा गया है कि बीते एक दशक में निर्माण कार्यों को लेकर जिस तरह से हरे भरे पेड़ काटे गए हैं, उससे भोपाल की हरियाली में 26 फीसदी की कमी आई है। व्यापक स्तर पर पेड़ों की कटाई वाले 9 स्थानों पर 225 एकड़ हरे भरे इलाके को मिटाकर वहां पर कांक्रीट के जंगल बना दिए गए। भोपाल में बीते कई सालों से शुरू हुई अधिक गर्मी की वजह भी यही है। इससे शहर का औसत तापमान 5 से 7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। शहर में सर्वाधिक पयार्वारण का नुकसान 2014 से 2021 के बीच हुआ है। इन सालों में लगभग 80 फीसदी पेड़ काटे गए। जबकि 20 फीसदी पेड़ों की कटाई 2009 से 2013 के बीच की गई है। प्रोफेसर राजचंद्रन की वर्ष 2016 की रिपोर्ट में प्रकाशित शोध, गूगल इमेजनरी और अन्य सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से तैयार की गई रिपोर्ट के लिए शहर को 15 प्रमुख क्षेत्रों में बांटा गया और 3 सड़कों (बीआरटीएस होशंगाबाद रोड, कलियासोत डेम की ओर जाने वाली रोड एवं नॉर्थ टीटी नगर की स्मार्ट रोड) को सैंपल के रूप में लिया गया। इन सड़कों के पास मौजूद प्रमुख 11 इलाकों के 345 एकड़ क्षेत्र का विश्लेषण करने पर पता चला कि 10 वर्ष में यहां की हरियाली पूरी तरह से समाप्त कर दी गई है। सिर्फ 11 क्षेत्रों में ही 50 साल पुराने 1.55 लाख से अधिक पेड़ों का कत्ल कर दिया गया।
विकास के नाम पर पेड़ों की बलि देने के बाद इन पेड़ों को विस्थापित कर कलियासोत, केरवा व चंदनपुरा आदि जंगलों में लगाने के दावे जरूर किए गए, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही से यह प्रयास अब तक सफल होते नहीं दिख रहे हैं। इन पेड़ों ने कुछ ही दिनों में दम तोड़ दिया। जबकि अधिकारी पेड़ों के बदले चार गुना तक पौधे लगाने का दावा करते हैं। लेकिन यह अब तक तो दावे ही नजर आते हैं। सरकार द्वारा राजधानी में चलाई जा रही स्मार्ट सिटी के निर्माण में 6000, बीआटीएस कॉरिडोर बनाने के लिए 3000, विधायक आवास बनाने के लिए 1150, सिंगारचोली सड़क निर्माण और चौड़ीकरण के लिए 1800, हबीबगंज स्टेशन निर्माण के लिए 150 और खटलापुरा से एमवीएम कॉलेज तक सड़क चौड़ीकरण के लिए 200 पेड़ों की बलि ले ली गई।
पेड़ों की कटाई के मामले में मप्र तीसरे नंबर पर
देश में पिछले 3 साल में 76 लाख से अधिक पेड़ काटे गए। ये पेड़ विभिन्न विकास कार्यों के लिए काटा जाना जरूरी बताया जाता है। देश में सबसे ज्यादा 12,12,757 पेड़ तेलंगाना में काटे गए हैं। इसके बाद 10,73,484 पेड़ महाराष्ट्र में काटे गए। तीसरे नंबर पर मप्र आता है। मप्र में 9,54,767 पेड़ काटे गए। इसका खुलासा वन एंव पर्यावरण मंत्रालय के एक जवाब में हुआ है। इसमें 2016 से 2019 तक के आंकड़ों को शामिल किया गया है। पेड़ों की कटाई की संख्या में 2018-2019 के बीच 30,36,642 की बढ़ोतरी हुई है। यदि देशभर के आंकड़ों को देखें तो पिछले 3 सालों में पेड़ों की कटाई दोगुनी से अधिक हुई है। 2016 से 2019 के बीच कुल 76,72,337 पेड़ काटे गए हैं। वहीं, नागालैंड, पुडुचेरी, चंडीगढ़, लक्षद्वीप, जम्मू-कश्मीर, दमन-दीव और दादर नागर हवेली में एक भी पेड़ नहीं काटा गया है। रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि सभी पेड़ बेहद जरूरी कार्यों की वजह से काटे गए हैं। इनकी अनुमति फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट 1980 के तहत दी गई थी। इन पेड़ों को सामान्य पॉलिसी के तहत काटा गया है। साथ ही यह भी बताया कि 7,87,00,000 पेड़ अनिवार्य प्रतिपूर्ति वनीकरण के तहत लगाए जाएंगे।
- धर्मेंद्र सिंह कथूरिया