विवादित कंपनी पर किसकी मेहरबानी
20-Nov-2021 12:00 AM 562

 

वाकई मप्र अजब है गजब है। यहां कब क्या हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसा मप्र में ही हो सकता है कि जो कंपनी 'नाकामÓ है उसे 3,000 करोड़ का काम देने की तैयारी चल रही है। वह कंपनी है मेघा इंजीनियरिंग। 950 करोड़ के टेंडर विवाद में उलझी मेघा इंजीनियरिंग को नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण का 3,000 करोड़ का टेंडर देने की खबर के बाद सवाल उठने लगे हैं कि आखिरकार इस कंपनी पर इतनी मेहरबानी क्यों?

गौरतलब है की मेघा इंजीनियरिंग का विवादों से पुराना नाता है। पूर्व में मेघा इंजीनियरिंग ज्वाइंट वेंचर में भी मात्र 400 और 550 करोड़ रुपए के दो काम समय में नहीं कर पाई। इस पर दो मामलों में 40 करोड़ और 55 करोड़ रुपए की पेनाल्टी लगी है। यही नहीं कंपनी ने मप्र सरकार को ही ट्रिब्यूनल में खड़ा कर दिया है। नर्मदा विकास प्राधिकरण उसी कंपनी को फिर से 3 हजार करोड़ का टेंडर अवार्ड करने जा रही है। गौरतलब है कि हाल ही में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने नर्मदा की दो परियोजनाओं चिंकी बैराज और सनबर खरगौन के टेंडर जारी किए थे। अपने शुरूआती समय से ही विवादों में रहा यह टेंडर फिर से उन्हीं कंपनियों को दिए जा रहे हैं। विवादास्पद कंपनी का मामला अभी आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल में विचाराधीन है। इन मामलों में 25 नवंबर और 20 दिसंबर 2021 को अगली सुनवाई होनी है।

 गौरतलब है कि जिस मेघा इंजीनियरिंग को नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण 3,000 करोड़ रुपए का टेंडर देने की तैयारी की जा रही है वह पूर्व में मिला काम समय सीमा में पूरा नहीं कर पाई थी। नर्मदा विकास प्राधिकरण ने 2013 में टर्नकी बेसिस पर अपर नर्मदा प्रोजेक्ट डिंडोरी का काम हैदराबाद की मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और प्रसाद एंड कंपनी लिमिटेड के ज्वाइंट वेंचर मेल-प्रसाद को दिया गया था। 402.80 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट की समय सीमा 36 महीने निर्धारित की गई थी। यानी यह प्रोजेक्ट 18 मार्च 2018 को समाप्त होना था, लेकिन समय सीमा में काम पूरा न किए जाने के चलते नर्मदा विकास प्राधिकरण ने अनुबंध की धारा 115.1 के अनुसार कंपनी पर 40.28 करोड़ रुपए की पेनाल्टी लगाई थी। साथ ही धारा 113-6 ई-आई के तहत मोबिलाईजेशन एडवांस पर ब्याज भी लगाया था। मुख्य अभियंता ने 20 जून 2016 को अनुबंध की धारा 32 एक के अनुसार अनुबंध को खत्म कर दिया था और परफॉरमेंस बैंक गारंटी को जब्त कर लिया था।

 मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और प्रसाद एंड कंपनी लिमिटेड के ज्वाइंट वेंचर मेल-प्रसाद पर की गई कार्रवाई के खिलाफ ठेकेदार ने प्राधिकरण के समक्ष 6 जून 2016 को अपील की थी। अपील में ठेकेदार ने लगाई गई पेनाल्टी को वापस लेने और यदि कॉन्ट्रैक्ट निरस्त किया जाता है तो परफॉरमेंस बैंक गारंटी वापस करने के निर्देश दिए जाने की अपील की थी, लेकिन प्राधिकरण ने सर्वेक्षण एवं भू-अर्जन के काम में देरी के लिए ठेकेदार को दोषी मानते हुए अपील को खारिज कर दिया। फिलहाल मामला आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल में आरसी 58/2017 विचाराधीन है। मामले में अगले सुनवाई 25 नवंबर को होनी है। वहीं खरगौन में लिफ्ट इरीगेशन परियोजना के तहत 28 मार्च 2011 को नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण से मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड व केबीए के ज्वाइंटर वेंचर ने अनुबंध किया था। यह प्रोजेक्ट 550 करोड़ रुपए का था और अंतिम रूप से इसे 2014 में पूरा होना था, लेकिन बाद में इसकी तीन बार समय अवधि बढ़ाते हुए 30 जून 2017 तक पूर्ण करने पर सहमति हुई थी। बताया जाता है कि कंपनी समय अवधि में काम पूरा नहीं कर सकी। इस पर नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने कंपनी पर 55 करोड़ रुपए की पेनाल्टी अधिरोपित की। यह मामला भी आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल में पिटिशन क्रमांक 119/2016 विचाराधीन है। मामले की अंतिम सुनवाई 20 दिसंबर 2021 को नियत है।

मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड एंड प्रसाद एंड कंपनी ज्वाइंटर वेंचर द्वारा डिंडोरी में लिए गए टेंडर एवं मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड एंड केबीए ज्वाइंट वेंचर द्वारा खरगौन में लिए गए टेंडरों के विवाद के बावजूद कंपनियों पर मेहरबानी किसी की समझ में नहीं आ रहा है। इस मामले में अधिकारी भी कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के मेंबर टेक्नीकल राजीव सुकलीकर का कहना है कि उन्हें इन मामलों की जानकारी नहीं है। उनसे जब पूछा गया कि कब तक जानकारी दे पाएंगे तो उन्होंने कहा कि इस बारे में कुछ नहीं कह सकते। वहीं एक अन्य सदस्य आरके सिंहल ने कहा कि यह मामले उनके संज्ञान में नहीं है, साथ ही टेक्नीकल वालों से बात करने की सलाह दे डाली।

निरस्त टेंडर की फिर बुलाई निविदा

गौरतलब है कि ये पूरा मामला 8393 करोड़ की दो परियोजनाओं का है। जिनको लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा में तनातनी हो गई थी। तकनीकी आधार पर इन टेंडरों को निरस्त कर दिया गया था और फिर से निविदाएं बुलाई थी, लेकिन इस बार भी उन्हीं कंपनियों को उपकृत किए जाने के संकेत मिले हैं, जिन्हें पिछली बार टेंडर मिले थे। और दवाब की इंतहा यह है कि इस बार भी उन्हीं तीन कंपनियों के अलावा किसी अन्य ने टेंडर में भागीदारी नहीं की है।

 - राकेश ग्रोवर

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