18-Feb-2020 12:00 AM
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महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार के चलते रहने की एकमात्र गारंटी शरद पवार हैं। पर सवाल है कि तीनों पार्टियों के नेता जितने तनाव पैदा कर रहे हैं उससे शरद पवार भी कैसे निपटेंगे? इसमें उनकी पार्टी भी शामिल है। आखिर उन्हीं की पार्टी के एक नेता ने इमरजेंसी को याद किया और कहा कि इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र का गला घोंटने का प्रयास किया था। यह बयान देने वाले नेता जितेंद्र अव्हाड पार्टी प्रमुख शरद पवार के बहुत खास हैं और उनके बयान देने से दो दिन पहले ही पवार ने उनकी जमकर तारीफ की थी। जब कांग्रेस ने उनके बयान पर आपत्ति जताई तो पार्टी से इससे पल्ला झाड़ा और उन्होंने जैसे-तैसे पिंड छुड़ाया।
अब शिवसेना प्रमुख और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सीएए पर अपना रुख बदलना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा है कि इस कानून को गलत समझा गया है। पिछले हफ्ते उन्होंने एक कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि दोनों ने विकास के बहुत काम किए हैं। मुख्यमंत्री मार्च में अपनी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर अयोध्या जाने वाले हैं और वे चाहते हैं कि कांग्रेस और एनसीपी के नेता भी उनके साथ जाएं।
इस बीच पिछले दिनों दिल्ली में विवादित बयान देने वाले जेएनयू छात्र शरजिल इमाम को लेकर शिवसेना के मुखपत्र सामना ने बहुत तीखी टिप्पणी की। असम के लोगों को भारत से अलग होने की सलाह देने वाले एक कथित वीडियो सामने आने के बाद शरजिल को गिरफ्तार किया गया है। सामना ने लिखा है कि उसका हाथ काट देना चाहिए। जाहिर है शिवसेना अपने को ज्यादा हिन्दुवादी दिखाने की होड़ में शामिल है। उसे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे की आक्रामक राजनीति से खतरा पैदा हो गया है। इस बीच महाराष्ट्र भाजपा के नेताओं ने यह कहना शुरू कर दिया है कि शिवसेना और भाजपा मिलकर काम करने को तैयार हैं।
इन सबके बीच कांग्रेस की स्थिति सबसे अजीबोगरीब है। उसे सरकार में रहना है और भाजपा को किसी तरह से सरकार में आने से रोकना है तो दूसरी ओर अपनी सेकुलर साख भी बचाए रखनी है। तभी कांग्रेस के नेता इस बात के लिए दबाव बना रहे हैं कि राज्य सरकार मुस्लिम आरक्षण लागू करे। शिवसेना के लिए ऐसा करना संभव ही नहीं है। वह किसी तरह से इस मामले में आगे नहीं बढ़ेगी। इस वजह से दोनों के बीच टकराव बढ़ सकता है। सावरकर का विवाद भी शिवसेना और कांग्रेस नेताओं के बीच चलता रहेगा। कांग्रेस नेता सावरकर पर हमले करेंगे और शिवसेना उनको भारत रत्न देने की मांग करती रहेगी।
त्रिशंकु सरकार में पोर्टफोलियो के बंटवारे में पहले तो कांग्रेस के हिस्से में कोई खास या महत्वपूर्ण मंत्रालय नहीं आया और खुद पार्टी के कई बड़े नेताओं के बीच आपसी मतभेद और मनमुटाव के चलते भी कांग्रेस के मंत्री जनता के पक्ष में कोई बड़ा फैसला नहीं ले पाए और ना ही कोई ऐलान अब तक कांग्रेस कर पाई। यही वजह है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेता सरकार में होने के बावजूद अब इनसिक्योरिटी महसूस करने लगे हैं। उन्हें इस बात का डर सताने लगा है कि कहीं उनका वोटबैंक नाराज होकर उनके हाथ से खिसक ना जाए।
कांग्रेस के भीतर इनसिक्योरिटी की यह भावना तब और भी जाहिर हो गई जब कांग्रेस के पूर्व मुंबई अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने सोनिया गांधी के नाम एक चिट्ठी लिखी। मिलिंद देवड़ा ने इस चिट्ठी में साफ लिखा कि शिवसेना और एनसीपी ने अपने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के जरिए किए वादों पर काम करना शुरू कर दिया है जबकि कांग्रेस ने जनता से किए अपने वादों को लेकर अब तक कोई पहल नहीं की है। देवड़ा ने पार्टी हाईकमान को सचेत भी किया यह कहते हुए कि वक्त रहते कांग्रेस अगर एक्शन में नहीं आई तो पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। जिस तरह से महाराष्ट्र में तीन अलग-अलग पार्टियों ने एक साथ आकर सरकार बनाई है, उसी तर्ज पर अब राज्य के सभी चुनाव शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने साथ लडऩे का मन बनाया है। इसकी शुरुआत नवी मुंबई महानगरपालिका के चुनाव से हो रही है जो कि इसी साल अप्रैल में होने वाले हैं। महाराष्ट्र सरकार बनाने के लिए तीनों ही पार्टियों ने चुनाव के बाद में गठबंधन किया, लेकिन अब चुनाव पूर्व गठबंधन किए जाएंगे। हाल ही में नवी मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान इस बात का ऐलान किया गया। तीनों पार्टियों के लिए अब सबसे पहली चुनौती नवी मुंबई महानगरपलिका का चुनाव जीतना है।
काग्रेस के वादों का क्या होगा?
कांग्रेस ने त्रिशंकु सरकार के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में जनता से वादा किया था कि वे झुग्गी झोपडिय़ों में रहने वालों को कम से कम 500 स्क्वायर फीट का मकान दिलाने के लिए काम करेगी। इस चुनावी वादे की घोषणा को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान अपने प्रचार में भी जमकर इस्तेमाल किया था। लेकिन महाराष्ट्र में सरकार बनाने के 2 महीने बीत जाने के बावजूद कांग्रेस के नेता जनता को किए वादों को पूरा करने के बजाय आपसी झगड़े में उलझे पड़े दिखाई दे रहे हैं। जानकारों का भी मानना है कि शिवसेना और एनसीपी दोनों ही पार्टी कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा चुकी है। ऐसे में कांग्रेस अगर अपनी रणनीति में सुधार नहीं लाई तो ना सिर्फ आने वाले बीएमसी चुनाव में कांग्रेस को उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है बल्कि महाराष्ट्र में उसके अस्तित्व पर भी खतरा बढ़ सकता है। और शायद इस बात का अंदाजा खुद कांग्रेस के कई नेताओं को भी है। यही वजह है कि सरकार में अपने आप को इनसिक्योर महसूस कर रहे यह नेता अब अपनी पार्टी के हाईकमान से उम्मीद लगाए बैठे हैं।
- बिन्दु माथुर