टोकरीवाली पीठ
11-Nov-2014 06:44 AM 1234789


जब आप किसी उपनगरीय बस में सवार हों और किसी चीज के सख्त किनारों से आपके सीने या पीठ पर दर्दनाक धक्का लगे, कृपया गाली न दें, बल्कि खपच्चियों से गूँथकर बनी उस टोकरी के खुल मुँह पर भरपूर नजर डालें, जिसके तसमों की किरमिच उधड़ी हुई हैं इसकी मालकिन अपने तथा दो पड़ोसी घरों का दूध, घर में तैयार किया गया पनीर तथा टमाटर लेकर कस्बे को जा रही है और वापसी में वह रोटी के पचासेक टुकड़े लेकर आएगी, जो दो परिवारों की खातिर पर्याप्त होंगे।
यह मजबूत, लम्बी-चौड़ी सस्ती टोकरी खेतीबाड़ी करने वाली औरत की है। इस टोकरी का मुकाबला दूसरी रंगीन चमकदार, खिलाडिय़ों की टोकरी से नहीं किया जा सकता, बावजूद इसके कि उनमें छोटी-छोटी जेबें और चमकदार बकसुए भी होते हैं। इस टोकरी में कुछ ऐसा खासÓ वजन होता है, जिसे कि तजुर्बेकार किसान का धंधा भी नहीं झेल सकता, भले उसने रुई वाली जॉकिट ही क्यों न पहन रखी हो, उसके कंधे इसके वजन को सह नहीं सकते।
दरअसल, खेतीबाड़ी करने वाली औरत करती यह है कि वह टोकरी को अपनी कमर के अधबीच लटकाकर तसमों को साज की तरह अपने सिर के चारों तरफ कस लेती है। इस तरह टोकरी का वजन कंधों और सीने में बराबर-बराबर बँट जाता है।
हे मेरे अजीज कलमघसीटो! मैं यह नहीं सुझा रहा हूँ कि इस टोकरी को तुम भी पहनना सीख लो, लेकिन यदि तुम्हें धक्का खाना महसूस हो रहा हो तो कृपया टैक्सी से जाया कीजिए!
द्यसोल्जेनित्सिन

खुशी

लड़के की आँखों में एक सपना तैर रहा था। एक सुहावना सपना-बाबा मैं चाहता हूँ मेरे पास खूब पैसा हो। तब मैं बहुत खुश रहूँगा। लड़के की उम्र यही कोई दस बरस होगी। उसने एक मैला सा कमीज और पैंट रखा था जो निहायत ही पुराना हो चुका थी।
तुझे जिंदगी में वह सब कुछ मिलेगा जो तुम कमाओगे....इनसे.....। और बूढ़े ने अपने बड़े-बड़े खुरदरे हाथ लड़के के आगे पसार दिए-पैसा तुम्हें खुशी नहीं दे पाएगा। तो क्या चीज दे पाएगी बाबा?
बूढ़े ने लड़के की और देखा। पर कहा कुछ नहीं, फिर कुछ सोचता हुआ बोला, तुम बहुत भोले हो मारूस! तुम एक दम अनजान हो। जर्मनों ने मुझे एक दीवार के साथ टाँग कर रखा था और हफ्ता भर मैं जख्मी टाँगों को बर्फीले रास्ते पर घिसटता रहा था। क्या वक्त था वह भी....! जंग, तूफान, खून....तुम खुशकिस्मत हो। तुम्हारी माँ है! घर है...और कोई तुम्हारे मुँह पर नहीं थूकता।
वह चुप हो गया। लड़का भी खामोश रहा थोड़ी देर।
और बाबा......तुम जिंदगी में कभी खुश नहीं हुए? लड़के ने पूछा।
बूढ़ा जवाब देने से पूर्व क्षण भर सोचता रहा। फिर बोला, हाँ सन् बयालीस में। जब मुझे जर्मनी ले जाया जा रहा था। मैं चलती गाड़ी से कूद पड़ा था। सर्दी का मौसम था। चारों ओर बर्फ जमी थी। मेरे हाथ छिल गए थे और चेहरा जख्मी हो गया था। घिसटते-घिसटते घर पहुँचने में एक हफ्ता लग गया था और जब मैं वहाँ पहुँचा तो मेरे परिवार वाले मेरा इंतजार कर रहे थे। और ईश्वर से मंगलकामना भी। और तब मुझे खुशी हुई थी। शायद जिंदगी में पहली बार। लेकिन यही बहुत बड़ी बात थी.....। क्या बड़ी बात थी बाबा?
जिंदा होना मारूस, जिंदा होना। और यह कहते-कहते बूढ़े का चेहरा सिकुड़कर झुर्री हो गया, और आँख से दो मोती टपक कर झुर्रियों में खो गए।
द्य काज़ी ओर्लोस

 

 

 

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