17-Oct-2014 09:41 AM
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दीपावली का पर्व धर्म और संप्रदायों की सीमा से ऊपर है। आज भले ही जहरीला सांप्रदायिक वातावरण होने के कारण इस देश में दीपोत्सव जैसे राष्ट्र पर्वों को धर्म की दीवारों में कैद करने का षड्यंत्र किया

जा रहा है। किंतु सत्य तो यह है कि प्राचीन काल से ही दीपोत्सव हर धर्म का, हर वर्ग का, हर संप्रदाय का उत्सव रहा है। ईद, क्रिसमस की तरह दीपावली भी हर वर्ग के लोग मनाते रहे हैं और देश के भाई-चारे में इस त्यौहार ने अभिवृद्धि ही की है। अंग्रेजों ने अवश्य भारतीयों के बीच फूट डालने के उद्देश्य से इस त्यौहार को हिंदुओं तक समेटने की कोशिश की। किंतु दीपोत्सव का महत्व मुगल काल में कम नहीं था। जश्ने-चिरागाँ का त्यौहार जहांदर शाह के युग में इतने व्यापक पैमाने पर मनाया जाता था कि दीपक जलाने के लिए तेल तक मिलना कठिन हो जाता था। आइने अकबरी में दीपोत्सव का उल्लेख है। अकबर दीपावली के दिन दौलतखाने के सामने सबसे ऊँचे स्तंभ पर आकाश दीप टाँगते थे।
दीपावली का त्यौहार भारतीय संस्कृति का सबसे अधिक गरिमामय पर्व है। देश के हर भाग में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी यह त्यौहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। दीपावली के प्रचलन के संबंध में हिंदू समाज में अनेकानेक कथाओं का प्रचलन है परंतु सबसे अधिक प्रसिद्ध कथा विष्णु पुराण की है, जिसमें दुर्वासा ऋषि के शाप से जब देवता श्रीहीन हो गए तब भगवान विष्णु ने उन्हें दैत्यों से मिल कर समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया, ताकि उसमें से प्राप्त अमृतपान करके वे अमर हो सकें। योजनाबद्ध रूप से किए गए सागर मंथन से चौदह रत्न प्राप्त हुए। कार्तिक अमावस्या के दिन चौदह रत्नों में सर्वश्रेष्ठ रत्न लक्ष्मी का आविर्भाव हुआ। लक्ष्मी के हिरण्यमय रूप को देख कर सभी चकित हो गए और उन्हें वरण करने के लिए परस्पर प्रतिस्पर्धा करने लगे। परंतु लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु का वरण किया। इस अवसर पर सबने उत्साह पूर्वक उनका मिष्ठान से स्वागत किया और दीप माला करके उनकी आराधना की। अथर्ववेद में यह उल्लेख है कि तब से ही अमावस्या की रात्रि में इंद्र समस्त देवगणों के साथ एकत्र होते हैं, क्योंकि यह रात्रि धन देने वाली लक्ष्मी की रात्रि मानी जाती है। तभी से ही कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी के पूजन की परंपरा चली आ रही है।
साधारण भारतीय की यह मान्यता है कि जब राम-रावण को पराजित कर वनवास की अवधि समाप्त करके लौटे, तो अयोध्या को दीपकों से जगमगा दिया गया था। रघुवंश के राजपुरोहित महर्षि वसिष्ठ ने इसी दिन श्री राम का राजतिलक किया था। नील मत पुराण के अनुसार दीपावली की रात्रि को इसलिए सुखरात्रि नाम दिया गया, क्योंकि इस दिन देवता अभय प्राप्त करके चैन की नींद सोये थे। वाराह पुराण के अनुसार, इस दिन सूर्य तुला राशि में होने के कारण ही लक्ष्मी जी निद्रा से जाग कर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। राजा हर्ष ने इस आलोक पर्व का दीप प्रतिपदोत्सव के नाम से उल्लेख किया है। सम्राट अशोक ने दिग्विजय का अभियान इसी दिन प्रारंभ किया था। इस खुशी में दीपदान किया गया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार कार्तिक अमावस्या के अवसर पर मंदिरों और घाटों पर बड़ी मात्रा में दीप जलाए जाते थे। आज के दिन ही सम्राट विक्रमादित्य का राज तिलक हुआ और विक्रमी संवत का प्रारंभ हुआ। इसीलिए आज भी भारतीय व्यापारी अपने व्यापार वर्ष का पहला दिवस मानते हुए नए बही खाते लगाते हैं। सिखों के दशम गुरु गोविंद सिंह जी को आज के दिन मुगलों से रिहाई मिली थी। इसी दिन गुरु अर्जुन देव ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर की स्थापना की थी। स्वामी रामतीर्थ का जन्म आज के दिन हुआ था और इसी दिन उन्होंने जल समाधि भी ली थी। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने आज के दिन ही अपने जीवन का अंतिम श्वास लिया था। आर्य समाज में इस दिवस का काफी महत्व है। वेदांत के प्रचारक स्वामी रामतीर्थ भी इसी दिन धरा पर अवतरित हुए थे और इसी दिन उन्होंने अपना शरीर त्यागा था।
भगवान महावीर का निर्वाण दिवस होने के कारण जैन मत के अनुयायी कार्तिक अमावस्या को अत्यंत पावन दिवस मनाते हैं। जैन धर्म मानने वालों का मत है कि भगवान महावीर मोक्ष प्राप्त करके जब स्वर्ग पहुँचे, तो देवताओं ने दीप मालाएँ जला कर उनका स्वागत किया। कल्प सूत्र में कहा गया है कि वीर निर्वाण के साथ जो अंतर्ज्योति सदा के लिए बुझ गई, उसकी क्षतिपूर्ति के लिए बाह्यज्योति के प्रतीक दीप जलाए जाएं। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में लाखों दीप जला कर दीपावली मनाई थी। दीपावली मनाने के कारण कुछ भी रहे हों परंतु यह निश्चित है कि यह वस्तुत: दीपोत्सव है। दीपों की ही भाँति दिवाली आतिशबाजी और मिठाइयों का भी त्यौहार है। अनुमान है कि वैदिक काल में यह नई फसल का त्यौहार रहा होगा।