02-Jan-2020 08:35 AM
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टाइगर स्टेट का तमगा मिलने के बाद भी मध्य प्रदेश सरकार बाघों की सुरक्षा के प्रति सचेत नहीं हो पाई है। राज्य में इस वर्ष एक जनवरी से 25 दिसंबर तक 28 बाघों की मौत हुई है, जो देश में सबसे ज्यादा है। केंद्र सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ सात बाघों की सामान्य मौत हुई। सात बाघों का शिकार हुआ, जबकि 14 बाघों की मौत से स्पष्ट नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस (29 जुलाई) पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बाघों की सुरक्षा को सर्वोपरि बताते हुए भरोसा दिया था कि अब अनदेखी या लापरवाही से बाघों की मौत नहीं होगी। इसके बाद राज्य में आठ बाघों की मौत हो चुकी है। टाइगर इस्टीमेशन-2018 के तहत गिनती में देश में सर्वाधिक 526 बाघ मध्य प्रदेश में पाए गए। इसके बाद इसे टाइगर स्टेट का तमगा तो मिल गया, लेकिन बाघों की मौत का सिलसिला नहीं थमा। लगातार चौथे साल देश में सबसे ज्यादा बाघों की मौत मप्र में हुई है।
अफसरों के तर्कों से सहमत नहीं विशेषज्ञ: बाघ विशेषज्ञ वन विभाग के अफसरों के तर्क से सहमत नहीं हैं। वह कहते हैं कि पिछले आठ साल कर्नाटक टाइगर स्टेट रहा, लेकिन हर साल वहां बाघों की मौत का आंकड़ा मप्र से कम रहा है। ऐसे में अफसरों का यह तर्क कि बाघ ज्यादा होंगे, तो मौत का आंकड़ा ज्यादा रहेगा, उचित नहीं है। वन्यप्राणियों के जानकार कहते हैं कि प्रदेश में बाघों की साइलेंट किलिंग हो रही है। शाकाहारी जानवरों के शिकार के लिए लोग करंट लगाते हैं और बाघ मारे जाते हैं। ऐसे मामलों में विभाग आरोपित पर दया दिखाता है। जब तक भय नहीं होगा, शिकार का सिलसिला चलता रहेगा। वन्यप्राणियों की सुरक्षा को लेकर सतर्कता के मामले में भी विभाग फिसड्डी है। वन विहार व सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के निदेशक रह चुके सेवानिवृत्त आईएफएस जगदीश चंद्रा कहते हैं कि सरकार बड़े व्यावसायिक घरानों के हितों की पूर्ति कर रही है। उसकी प्राथमिकताओं में पर्यटन है, वन्यप्राणियों की सुरक्षा नहीं। बाघ शिकार के मामलों में सजा का प्रतिशत कम है। वन विभाग के अफसर नियंत्रणहीन हो गए हैं।
वन बल प्रमुख एवं चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डन डॉ. यू प्रकाश कहते हैं कि देश में मप्र अकेला राज्य है, जो प्रत्येक बाघ, तेंदुआ और भालू की मौत की सूचना तत्काल देता है। दूसरे राज्यों में ऐसा नहीं होता इसलिए वहां के आंकड़े कम आ रहे हैं। हमने सुरक्षा व्यवस्था में सुधार किया है। इसी का नतीजा है टाइगर स्टेट का तमगा। देश में इस साल अब तक (11 महीने में) विभिन्न कारणों से 85 बाघों की मौत हो चुकी है। जबकि पिछला साल यानी 2017 बाघों के लिए मौत का साल रहा। देशभर में 116 बाघों की मौत हुई। नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें 99 बाघों के शव और 17 बाघों के अवशेष बरामद किए गए। इन में से 32 मादा और 28 नर बाघों की पहचान हो सकी, बाकी मृत बाघों की पहचान नहीं हो सकी। इसमें 55 फीसदी मौतेें ही प्राकृतिक रूप से हुई हैं।
बाघों की मौत के मामले में मध्य प्रदेश का नाम पहले नंबर पर आता है। वर्ष 2017 में वहां 29 बाघों की मौत हुई, जबकि इस प्रदेश में पिछले सात सालों में बाघों की सुरक्षा, मैनेजमेंट और टाइगर रिजर्व, अभयारण्यों से गांवों की शिफ्टिंग पर 1050 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं, बावजूद इसके यहां बाघों की मौत का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। इसके अलावा 2017 में महाराष्ट्र में 21, कर्नाटक में 16, उत्तराखंड में 16 और असम में 16 बाघों की मौत दर्ज की गई। बाघों की मौत के पीछे करंट लगना, शिकार, जहर, आपसी संघर्ष, प्राकृतिक मौत, ट्रेन या सड़क हादसों को कारण बताया गया। वर्ष 2014 से अब तक 490 बाघों की मौत के मामले सामने आए हैं। इनमें वर्ष 2014 में 66, वर्ष 2015 में 91, वर्ष 2016 में 132, वर्ष 2017 में 116 और वर्ष 2018 में नवंबर तक 85 मामले शामिल हैं।
शिकारियों की हलचल ने किया परेशान
प्रदेश के जंगलों में वन्यजीवों की संख्या बढ़ी तो शिकार भी शुरू हो गया। जंगल में आवश्यक संसाधन नहीं होने से वन्यजीव गांव की ओर भागने लगे। सालभर में कई ऐसी घटनाएं हुईं जो वन्यप्राणियों के संरक्षण पर बड़ा सवाल छोड़ गईं। बाघ, तेंदुआ सहित अन्य जानवर गांव की ओर रुख किए तो रेस्क्यू कर उन्हें जंगल में फिर पहुंचाया गया। शिकारियों ने भी सालभर जमकर धमाचौकड़ी मचाई। सीधी में तो जहर देकर शिकार किया गया। मुकुंदपुर सफारी शावकों के लिए कुछ खास नहीं रहा इस साल कई शावकों की मौत हो गई। इस सबके बीच पन्ना के बाघों ने पहचान दिलाई। पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या में हुई अप्रत्याशित वृद्धि का ही परिणाम रहा कि प्रधानमंत्री द्वारा जारी की गई टाइगर सेंसेस में प्रदेश को 13 साल बाद फिर टाइगर स्टेट का दर्जा मिला। 2019 के आखिरी माह तक रिजर्व के कोर जोन में शावक सहित 55 से 60 बाघ विचरण कर रहे हैं। पन्ना लैंड स्केप में बाघों की संख्या 65 से 70 के बीच होने का अनुमान है। इस साल पन्ना टाइगर रिजर्व की बाघिनों ने भी एक दर्जन से अधिक शावकों को जन्म दिया। यही कारण रहा कि सालभर टाइगर रिजर्व बाघों की आमद से गुलजार रहा। बाघ पुनस्र्थापना के 10 साल पूरे होने पर जैव विविधता बोर्ड की ओर से पन्ना टी-3 वॉक का आयोजन किया गया जो यादगार रहा। यह बाघों का अध्ययन केंद्र भी बनकर उभरा। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (देहरादून) के 92 प्रशिक्षु आईएफएस अधिकारियों का दल एक सप्ताह के प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए यहां आया। साल के अंतिम दिनों में एक दशक से अधिक समय के इंतजार के बाद 25 घडिय़ाल नेशनल चंबल घडिय़ाल सेंचुरी धुबरी मुरैना से केन नदी में छोड़े गए।
- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया