मजबूत हुई किलेबंदी
02-Jan-2020 07:55 AM 1235146
राजस्थान में कांग्रेस सरकार का एक साल कभी भीतर, तो कभी बाहर विरोध और विवादों की धूप-छांव में गुजर गया, लेकिन साल पूरा होते-होते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सियासी मौसम को अपने लिए मुफीद बना लिया। सियासी फलक पर यह एक ऐसे नेता का अवतरण भी है जो केंद्र की भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लगातार आक्रामक होकर उभरा है। उधर, भाजपा ने गहलोत सरकार के एक साल के कार्यकाल पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया कांग्रेस सरकार के प्रदर्शन को बेहद निराशाजनक मानते हैं, तो विश्लेषक कहते हैं कानून-व्यवस्था की कुछ घटनाओं से सरकार की छवि बिगड़ी है। पहला साल पूरा होने पर गहलोत ने कहा, हमने घोषणा-पत्र सामने रख कर चुनाव लड़ा था। सत्ता में आते ही हमने घोषणा-पत्र को सरकारी दस्तावेज बना दिया, ताकि वादे पूरे किए जा सकें। कांग्रेस सरकार ने 503 वादों में से 119 पूरे कर दिए हैं। बाकी पर काम चल रहा है।’ लेकिन पूनिया इस दावे पर सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं, इनका एक साल आपसी लड़ाई में ही निकल गया। मुख्यमंत्री गहलोत और उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट की आपसी खींचतान सबके सामने है। यही वजह है कि पायलट सरकारी जश्न में गैर-हाजिर रहे।’ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी ट्वीट कर कांग्रेस सरकार पर हमले किए और कहा राज्य में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। एक साल पहले जब गहलोत मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी बार सत्ता पर काबिज हुए, तो पार्टी के अंदर और बाहर बहुत अनिश्चितता थी। पायलट ने उनकी ताजपोशी को कड़ी चुनौती दी थी। बेशक, पार्टी के भीतर चली इस लड़ाई में गहलोत कामयाब होकर उभरे, मगर यह भी साफ हो गया कि उनकी राह आसान नहीं है। संगठन पर उनके प्रतिस्पर्धी पायलट का कब्जा है और पार्टी के पास विधानसभा में बहुमत लायक कामचलाऊ सीटें हैं। कांग्रेस को राज्य में 200 सीटों में से 99 पर जीत हासिल हुई थी। एक सीट पर कांग्रेस के सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के सुभाष गर्ग विजयी हुए थे। मगर इसके तुरंत बाद अलवर जिले के रामगढ़ में उपचुनाव हुआ तो सफिया खान की जीत से कांग्रेस को राहत मिल गई। यह उस समय हुआ जब कहा जा रहा था कि कांग्रेस की अल्पमत सरकार कभी भी सत्ता से बाहर हो सकती है। भाजपा की उस पर नजर है। विपक्ष के नेता इस तरह के बयान देते रहे कि कांग्रेस सरकार कभी भी गिर सकती है। पर गहलोत ने धीरे-धीरे करीब दस निर्दलीय विधायकों को भी अपने पक्ष में खड़ा कर लिया। तीन माह पहले बहुजन समाज पार्टी के छह विधायकों ने अपनी पार्टी को अलविदा कहकर कांग्रेस का दामन थाम लिया, तो गहलोत सरकार को और मजबूती मिल गई। हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस पर काफी नाराजगी व्यक्ति की। भाजपा ने भी गहलोत पर सौदेबाजी का आरोप लगाया और राजनैतिक शुचिता का सवाल खड़ा किया। कांग्रेस के भीतर भी एक धड़ा इस पर खुश नहीं था। मगर इन सबको दरकिनार कर गहलोत ने अपनी सरकार की मजबूत किलेबंदी कर ली। समझा जाता है, जल्द ही इन विधायकों को पाला बदलने का इनाम मिलेगा। दो माह पहले दो विधानसभा सीटों खींवसर (नागौर) और झुंझुनू जिले की मंडावा सीट पर उपचुनाव हुए तो मंडावा सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। पहले दोनों सीटें भाजपा के पास थीं। एक साल के दौरान कांग्रेस सरकार का ज्यादा वक्त चुनावों से ही निपटने में लग गया। विधानसभा के बाद लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था। मुख्यमंत्री के पुत्र वैभव गहलोत को गृहक्षेत्र जोधपुर में करारी हार का सामना करना पड़ा। तब पार्टी के भीतर गहलोत की आलोचना भी हुई। इसके बाद नगरीय चुनावों में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन कर नुकसान की भरपाई की। राज्य के नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल कहते हैं, 49 शहरी निकायों में से 36 पर कांग्रेस के प्रमुख चुने गए हैं। यह कांग्रेस सरकार के बेहतर कामकाज पर मुहर है। इन सबके बीच महिलाओं के खिलाफ अपराध की कुछ घटनाओं से सरकार की छवि पर बुरा असर पड़ा। अलवर जिले के थानागाजी में एक दलित महिला के साथ ज्यादती की घटना ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। संतुलित कार्यकाल कांग्रेस के एक साल के कार्यकल को संतुलित ही कहा जाना चाहिए। ऐसा कुछ नकारात्मक नहीं हुआ जिसे शिद्दत से रेखांकित किया जा सके। कोई बड़ा विरोध भी नहीं दिखा। हमें यह भी समझना होगा कि सरकार को लगातार चुनावी जंग से जूझना पड़ा है। कामकाज का वक्त कम मिला है। अभी नकारात्मक टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी। हालांकि विपक्ष में बैठी भाजपा ने सरकार के एक साल के कार्यकाल पर चार्जशीट जारी की है। उसका आरोप है कि कांग्रेस किसानों की कर्जमाफी का वादा कर सत्ता में आई थी, पर इसने किसानों के साथ धोखा किया है। जवाब में मुख्यमंत्री गहलोत कहते हैं, हमने सहकारी बैंकों के कर्ज माफ कर दिए। राष्ट्रीयकृत बैंक केंद्र सरकार के अधीन हैं। केंद्र को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।’ गहलोत कहते हैं कि जब केंद्र की मोदी सरकार उद्योगपतियों के कर्ज माफ कर सकती है तो उसे किसानों की कर्जमाफी से गुरेज आखिर क्यों है? कुछ विश्लेषक कहते हैं कि कांग्रेस सरकार ने कुछ माह पहले ही काम शुरू किया है। गहलोत अपनी योजनाओं में अवाम को केंद्र में रखते हैं। इसलिए मुफ्त दवा जैसी योजनाओं पर जोर है। भाजपा सरकार ने पहले की कांग्रेस सरकार की नि:शुल्क दवा योजना का रूप बदलकर उसे भामाशाह’ योजना नाम से चलाया था। अब कांग्रेस सरकार ने उसे बदल दिया है। - जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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