राहत में भेदभाव
19-Oct-2019 08:05 AM 1234937
दो पार्टियों में टकराव राजनीति में आम बात है, लेकिन इस राजनीतिक टकराव के कारण अगर जनता से भेदभाव किया जाए तो यह ओछी राजनीति होती है। केंद्र सरकार ऐसा ही कुछ मप्र से कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार देश की बागडोर संभालने के बाद लोगों को भरोसा दिलाया था कि अब सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास उनकी राजनीतिक शैली का मूलमंत्र होगा। लेकिन अतिवृष्टि और बाढ़ से बर्बाद हुए मध्यप्रदेश को राहत देने में केंद्र सरकार जिस तरह का भेदभाव कर रही है, उससे यह साफ हो गया है कि केंद्र भेदभाव की राजनीति कर रहा है। प्रदेश में अतिवृष्टि और बाढ़ से हुई क्षति की पूर्ति के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित प्रदेश के कई मंत्री प्रधानमंत्री सहित कई केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर चुके हैं, लेकिन अभी तक आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला है। वहीं केंद्र ने कर्नाटक के लिए 1200 करोड़ और बिहार के लिए 400 करोड़ रुपए के राहत कार्यों का अग्रिम भुगतान किया है लेकिन मध्य प्रदेश की मांग फिलहाल नहीं मानी गई है। क्यों? एक तरफ बीजेपी के नेता कहते हैं कि मध्यप्रदेश में काम नहीं हो रहा तो दूसरी तरफ केंद्र की बीजेपी सरकार मध्य प्रदेश का पैसा देने की जगह मध्य प्रदेश की जनता के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। जिसको लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है ताकि केंद्र सरकार मध्य प्रदेश की बाकी पैसों को जल्द से जल्द मध्य प्रदेश सरकार को दे ताकि मध्य प्रदेश मंए विकास कार्य को गति दिया जा सके। मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश में अति-वर्षा और बाढ़ से हुए नुकसान की भरपाई के लिये केन्द्र सरकार से 7154.28 करोड़ रुपए की सहायता राशि शीघ्र जारी करने का अनुरोध किया है। इस राशि में एनडीआरएफ मद से 6621.28 करोड़ रुपए केन्द्रीय सहायता राशि और एसडीआरएफ से इस वर्ष की दूसरी किश्त की राशि 533 करोड़ रुपए शामिल है। देश के अधिकांश राज्यों में भारी बरसात के कारण तबाही का मंजर पैदा हो गया है, यहां सभी जगह प्रभावित राज्यों की एक-सी समस्या है, लेकिन जिस ढंग से केन्द्र सरकार उदारतापूर्वक कुछ ही राज्यों को, जो उसके या उसके सहयोगियों के साथ सत्ता में हैं उन्हें तो फौरी राहत प्रदान कर रही है और उसने तत्काल जिस प्रकार की मदद बिहार व कर्नाटक को की है वैसी कोई फौरी मदद अभी मध्यप्रदेश की नहीं की है। मध्यप्रदेश सहित अन्य गैर-भाजपा शासित राज्यों को अतिरिक्त आर्थिक सहायता का इंतजार है। मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर फौरी तौर पर 9000 करोड़ रुपए की तत्काल सहायता देने और दोबारा केंद्रीय अध्ययन दल को भेजने का आग्रह किया है, इसका क्या नतीजा निकला यह तो कुछ दिनों बाद पता चलेगा लेकिन तत्काल किसी भी राशि की मदद की घोषणा नहीं हुई है। कुल मिलाकर सवाल यह उठता है कि इन दिनों देश में विकास की राजनीति चल रही है या राजनीति का विकास। कमलनाथ ने प्रधानमंत्री से मुलाकात के एक दिन पूर्व नई दिल्ली में वल्र्ड इकनॉमिक फोरम और भारतीय उद्योग परिसंघ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इंडिया इकानामिक समिट के सत्र स्टेटस आफ यूनियन को संबोधित करते हुए पूरी साफगोई से कहा कि केन्द्र सरकार के विभिन्न कार्यक्रम और नीतियां प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से राज्यों के विकास को प्रभावित कर रही हैं। उन्होंने केंद्र सरकार को यह भी सलाह दी कि राज्यों के लिए केन्द्र प्रोत्साहन देने की भूमिका निभाए और केंद्रीय परियोजनाओं में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाए। इस प्रकार उन्होंने यह संकेत दे दिया कि केंद्र की अभी तक की भूमिका सहयोगात्मक नहीं है। उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया कि हर हाल में राज्य सरकार बाढ़ पीडि़तों की हरसंभव मदद के लिए वचनबद्ध है। भाजपा नेताओं पर तंज कसते हुए कहा कि इस समय किसानों को राजनीति नहीं मदद की जरुरत है। उन्होंने अपेक्षा की है कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं व सांसदों को चाहिए कि वे बाढ़ पीडि़तों के नाम पर राजनीति करने से बाज आयें और उन्हें राहत पहुंचाने में राज्य सरकार की मदद करें। कलाकारी की राजनीति से बाढ़ पीडि़तों का भला नहीं होने वाला, संकट की इस घंड़ी में बाढ़ प्रभावितों की मदद के लिए भाजपा के सभी सांसद व नेता केंद्र सरकार से मदद मांगें और उसके द्वारा मदद न दिए जाने पर धरना दें, यह राजनीति नहीं बल्कि प्रदेश के लोगों के हितों की बात है, क्योंकि किसानों, जिन्होंने मेहनत से फसल उगाई थी उसे भारी नुकसान पहुंचा है। जहां तक उनकी सरकार का सवाल है वह अपने दायित्वों को निभाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखेगी। जहां तक भाजपा सांसदों का सवाल है इस समस्या को लेकर उन्हें भी केंद्र का दरबाजा खटखटाना चाहिए क्योंकि प्रदेश के 29 सांसदों में से 28 भाजपा के सांसद हैं और केन्द्र में उन्हीं की सरकार है। जिन किसानों के भारी भरकम समर्थन से वे जीते हैं निश्चित रूप से उनका दायित्व बनता है कि वे जब किसान सबसे विकटतम परिस्थितियों से जूझ रहा है तब उसकी गुहार प्रभावी ढंग से केन्द्र सरकार के सामने उठाएं। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से मीडिया विभाग की अध्यक्ष शोभा ओझा और उपाध्यक्ष अभय दुबे ने भाजपा सांसदों को लिखे पत्र में उनसे केन्द्र से अधिक से अधिक आर्थिक सहायता दिलाने का अनुरोध किया है। सांसदों से यह अनुरोध भी किया गया है कि मध्यप्रदेश की केंद्रीय योजनाओं में प्रदेश सरकार के हिस्से की तथा केंद्रीय करों में मध्यप्रदेश का जो हिस्सा है और प्रदेश की अधोसंरचना विकास का रुका हुआ पैसा तत्काल दिलावाने की पहल करें ताकि किसानों का हक उन्हें तुरन्त प्रदान किया जा सके। कुछ उदाहरण देते हुए पत्र में उल्लेख किया गया है कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय पेयजल कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रदेश की लगभग 2000 योजनाओं जिसमें 14 हजार गांवों के पांच लाख परिवारों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए 1196.17 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए हैं, इस योजना में 50 प्रतिशत केंद्र सरकार का अंश 598 करोड रुपए केंद्र ने अब तक जारी नहीं किया है। इसी प्रकार मध्यप्रदेश की सड़कों के निर्माण व उन्नयन के लिए सेंट्रल रोड फंड, (सीआरएफ) 498.96 करोड़ रुपए केंद्र सरकार द्वारा अभी तक प्रदेश को जारी नहीं किए गए हैं जिसके कारण अधोसंरचना विकास प्रभावित हो रहा है वहीं दूसरी ओर केंद्रीय करों के हिस्से में 2677 करोड़ रुपए बजट प्रावधानों के हिसाब से मध्यप्रदेश को कम दिए गए हैं। खरीफ 2017 के भावान्तरण के 576 करोड़ रुपए , खरीफ 2018 के 321 करोड़ रुपए और अतिरिक्ति 6 लाख मीट्रिक टन के 120 करोड़ रुपए अर्थात कुल 1017 करोड़ रुपए केन्द्र द्वारा मध्यप्रदेश को अभी तक नहीं दिए गए हैं। मध्यप्रदेश में रबी सीजन 2019-20 में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी 73.70 लाख मीट्रिक टन की है लेकिन केंद्र सरकार ने केवल 65 लाख मीट्रिक टन की समर्थन मूल्य पर खरीदी स्वीकृत की है अर्थात् 8.70 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदी के लिए 1500 करोड़ रुपए केंद्र सरकार से अपेक्षित हैं। प्रदेश के प्रमुख सचिव, राजस्व मनीष रस्तोगी ने हाल में केन्द्र को भेजे प्रस्ताव मे कहा है कि प्रदेश के लिए राज्य आपदा प्रबंधन के अंतर्गत वर्ष 2019-20 के लिए 1066 करोड़ रुपए स्वीकृत हैं। इसमें से सितम्बर मध्य तक 362 करोड़ रुपए की राशि अन्य प्राकृतिक आपदाओं, ओला-पाला तथा राहत वितरण में खर्च की गई। वित्तीय वर्ष 2019 में केन्द्रांश के अंतर्गत 247 करोड़ की पहली किश्त जारी की गई, जिसमें पिछले वर्ष 2018-19 में दी गई 152 करोड़ रुपए की अतिरिक्त केन्द्रांश राशि का समायोजन है। अत: वर्ष 2019 में प्रदेश में अब तक एसडीआरएफ में 285.50 करोड़ की राशि ही उपलब्ध है। प्रदेश के राजस्व विभाग के अनुसार प्रदेश के 52 में से 39 जिलों में अतिवृष्टि और बाढ़ से बहुत अधिक क्षति हुई है। राज्य में जून से सितंबर माह के बीच हुई वर्षा से लगभग 60 लाख 47 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की 16 हजार 270 करोड़ रुपए की फसल प्रभावित हुई है। इसमें लगभग 53 लाख 90 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में 33 प्रतिशत तक फसल क्षतिग्रस्त हुई है। प्रदेश में अति-वृष्टि से क्षतिग्रस्त मकानों में 55 हजार 372 पक्का-कच्चे मकान, 4 हजार 98 पक्के मकान तथा 55 हजार 267 आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कच्चे मकान शामिल हैं। मध्य प्रदेश में बाढ़ के नाम पर हो रही सियासत दिनों दिन बढ़ती जा रही है। इस मामले में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष राकेश सिंह के बयान के बाद अब प्रदेश सरकार में वित्त मंत्री तरुण भनोट ने पलटवार करते हुए भाजपा को जमकर कोसा है। भनोट ने कहा कि बाढ़ के नाम पर सियासत होनी नहीं चाहिए। केंद्र किसी के पिताजी या दादाजी की नहीं है। प्रदेश का किसान भी इसी देश का नागरिक है जिसे बाढ़ से नुकसान पहुंचा है। जो लोग भी बाढ़ के नाम पर सियासत कर रहे हैं उन्हें अब बेनकाब करने की जरूरत है। वित्त मंत्री सिर्फ यहीं नहीं रुके, बल्कि उन्होंने ये तक कह दिया कि जो लोग भी बाढ़ के नाम पर सियासत कर रहे हैं उनसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं। सड़कों को भी हुआ जमकर नुकसान इस बार की मानसूनी बारिश में प्रदेश को बड़ी क्षति पहुंची है। खेती किसानी के बाद दूसरा सबसे बड़ा नुकसान सड़क, पुल और पुलिया के क्षेत्र में हुआ है। करीब 21 हजार किलोमीटर सडक़ को मरम्मत की दरकार है। कुछ सड़कें तो नए सिरे से बनानी होंगी। वहीं, कुछ पुल और पुलिया भी बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। इन्हें दुरुस्त करने के लिए निर्माण एजेंसियों को करीब दो हजार करोड़ रुपए चाहिए। राजस्व विभाग के अनुसार प्रदेश में अति-वृष्टि से सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की राशि 2285 करोड़ रुपए आंकी गई है। फसलों की कुल क्षति का अनुमान लगभग 16 हजार 270 करोड़ रुपए है तथा फसलों के नुकसान के लिए मांगी गई सहायता राशि तीन हजार 742 करोड़ रुपए है। इसी प्रकार मकान की क्षति, लोगों और पशुओं की मृत्यु एवं अपंगता के लिए 579.96 करोड़ रुपए , रेस्क्यू आपरेशन के लिए 10.02 करोड़ रुपए, राहत शिविरों पर एक करोड़ 75 लाख रुपए, खाद्यान्न और मिट्टी तेल के नुकसान पर एक करोड़ 67 लाख रुपए की सहायता राशि अनुमानित है। केंद्र पर 32000 करोड़ रोकने का आरोप भोपाल मध्य से कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद अपने समर्थकों के साथ दिल्ली में जंतर-मंतर पर धरना देने पहुंचे। केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेस पार्टी के इस धरने में केंद्र से मध्यप्रदेश के लिए कथित तौर पर बकाया 32170 करोड़ रुपए की मांग की जा रही है। कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश के बजट में कटौती की है। कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र सरकार ने राज्य के हिस्से की 10113 करोड़ रुपए की राशि रोक दी है। इस राशि में किसानों को दिए गए भावांतर के 1017 करोड़ रुपए, केंद्रीय योजना की मदद से 6500 करोड़, गेहूं खरीद के पंद्रह सौ करोड़, सेंट्रल रोड फंड के 498 करोड़ और नल जल योजना के 598 करोड़ रुपए भी शामिल हैं। वहीं अतिवृष्टि और बाढ़ से हुए नुकसान के आकलन के आधार पर भी केंद्र सरकार से 12058 करोड़ रुपए की मांग की जा रही है, जिसकी में फसल हानि के 9,600 करोड़, आवास क्षति के 540 करोड़ रुपए, सड़कों की क्षति के 1566 करोड़ और आंगनबाड़ी के 352 करोड़ शामिल हैं। - सुनील सिंह
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^