04-Oct-2019 09:55 AM
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देश का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश सबसे खुशहाल प्रदेश माना जाता है, लेकिन आत्महत्या यहां अभिशाप बन गई है। आलम यह है कि हालिया रिपोर्ट में मप्र आत्महत्या में नंबर-1 पर है।
मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने सूबे में बढ़ती आत्महत्याओं का कारण तलाशने के लिए हाल ही में एक सर्वे कराया। सर्वे पूरा होने के बाद सामने आए आंकड़ों ने सरकार को ही चौंकाकर रख दिया है। आनंद संस्थान ने जिला स्तर पर इस सर्वे के डाटा जमा किए हैं। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश की आत्महत्या दर देश की औसत दर से भी ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर सुसाइड रेट प्रति एक लाख पर लोगों पर 10 प्रतिशत है, जबकि मध्य प्रदेश में यही रेशो 13 फीसदी से भी ज्यादा आंका गया है। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो आत्महत्या के मामलों में मध्यप्रदेश 14 वें स्थान पर आता है। यहां महिलाओं के मुकाबले पुरुष ज्यादा आत्महत्या करते हैं। प्रदेश में आत्महत्या करने वालों में 60 फीसदी पुरुष, तो 40 फीसदी महिलाएं मौत को गले लगाती हैं।
जांच टीम ने पिछले पांच सालों के आंकड़ों के आधार पर सर्वे कराया है, जिसमें सामने आया कि लोगों द्वारा आत्महत्या करने का सबसे बड़ा कारण पारिवारिक कलेह और असंतुष्टि पाया गया। आत्महत्या करने में लोग सबसे ज्यादा फांसी के फंदे पर झूलते हैं। 49 प्रतिशत लोग फांसी लगाकर सुसाइड करते हैं। हालांकि, इन आंकड़ों के सामने आने के बाद आत्महत्याओं के इस ग्राफ को कम करने या यूं कहें कि पूरी तरह रोकने के लिए सरकार अब एक्शन प्लान तैयार कर रही है। अलग-अलग विभागों की भूमिका तय करने के साथ ही आनंद संस्थान को समन्वय करने का काम सौंपा गया है। साथ ही पारिवारिक कलेह के मामलों में सामने आई शिकायत पर गंभीरता से सुलह कराने पर जोर दिया जाएगा।
आत्महत्या के कारण सामने आने के बाद से ही सरकार की चिंता बढ़ गई है। आत्महत्या के कारणों को दूर करने के लिए अलग-अलग विभागों की जिम्मेदारी तय की जा रही है। समन्वय का काम रिपोर्ट तैयार करने वाला आनंद संस्थान करेगा। सर्वे के दौरान प्रदेश के 18 जिलों में आत्महत्या के सबसे ज्यादा आंकड़े सामने आए हैं। आनंद संस्थान को इन जिलों पर खास फोकस करने के निर्देश दिए गए हैं। संस्थान ने इस खास जिलों से काम की शुरुआत भी कर दी है। यहां प्राथमिक तौर वॉलेंटियर्स जाकर लोगों में जीवन के प्रति जागरूकता और तनाव से ग्रस्त होकर आत्महत्या की ओर आकर्षित होने वाले व्यक्ति के लक्षण के बारे में भी लोगों को बताया जा रहा है, ताकि संदिग्ध व्यक्ति की पहचान कोई भी व्यक्ति कर सके। साथ ही साथ, तनाव ग्रस्त व्यक्ति की काउंसिलिंग कर सके। सामने आए आत्महत्या के आंकड़ों पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रदेश के गृहमंत्री बाला बच्चन ने कहा कि, आत्महत्या की जो वजह सामने आई हैं, उनको सरकार ने गंभीरता से लिया है। प्रदेश में एक भी मौत होना बेहद दुखद है। इस रिसर्च के आधार पर सरकार एक्शन प्लान तैयार कर रही है। जल्द ही इन आंकड़ों में सुधार होगा। इसके अलावा, राज्य आनंद संस्थान के सीईओ अखिलेश अर्गल ने कहा कि, पिछले पांच साल के डाटा पर हमने अलग-अलग वर्ग, प्रोफेशन, आर्थिक स्तर, सामाजिक स्तर के आधार पर आत्महत्या के कारणों को तलाश किया है। हमारे वॉलेंटियर्स लगातार लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं। जल्द ही, बेहतर परिणाम हमारे सामने होंगे।
सर्वे के अनुसार, पारिवारिक कलेह के कारण प्रदेश में मरने वाले लोगों में 26 फीसदी लोग आत्महत्या करते हैं। किसी लाइलाज बीमारी के कारण मरने वालों में जीवन से त्रस्त आकर मरने वालों में 19 फीसदी लोग आत्महत्या कर लेते हैं। वैवाहिक जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव से त्रस्त आकर 11 फीसदी लोग आत्महत्या कर लेते हैं।
बेरोजगारी के कारण 6 फीसदी लोग खुद मौत को गले लगा लेते हैं। 5 फीसदी लोग ऐसे भी हैं, जो बिना किसी कारण नशे की हालत में आत्महत्या कर लेते हैं। प्रेम में नाकाम होकर 3 फीसदी लोग आत्महत्या कर लेते हैं। संपत्ति विवाद में भी फंसकर 3 फीसदी आत्महत्या कर लेते हैं। परीक्षा में फेल हुए छात्रों में 2 फीसदी ये घिनौना कदम उठाकर जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। इसके अलावा 16 फीसदी अन्य कारण भी है, जिनके चलते लोग आत्महत्या करने का फैसला लेते हैं।
सबसे अधिक गृहणियां करती हैं आत्महत्या
सर्वे के अनुसार आत्महत्या करने वाली महिलाओं में सबसे ज्यादा गृहणियां आत्महत्या करती हैं। सर्वे में इनका आंकड़ा 26 फीसदी है। दैनिक वेतनभोगी लोगों में 19 फीसदी लोग आत्महत्या कर लेते हैं। कृषि क्षेत्र में 13 फीसदी लोग आत्महत्या कर लेते हैं। बेरोजगारी से त्रस्त आकर 12 फीसदी लोग आत्महत्या कर लेते हैं। नौकरी के दबाव और अवसाद के कारण 6 फीसदी लोग आत्महत्या कर लेते हैं। पढ़ाई से असंतुष्ट या परीक्षा में फैल होकर 6 फीसदी छात्र आत्महत्या कर लेते हैं। व्यवसायिक नुकसान या कॉम्पिटिशन से त्रस्त आकर 6 फीसदी व्यापारी आत्महत्या कर लेते हैं। रिटायरमेंट के बाद बुढ़ापे में अकेलेपन से निराश होकर 1 फीसदी लोग आत्महत्या कर लेते हैं।
- कुमार राजेन्द्र