18-Sep-2019 10:17 AM
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सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में बसे लोगों का जल्द से जल्द पुनर्वास किया जाएगा और उन्हें डूब क्षेत्र से निकाला जाएगा। साथ ही, बांध प्रभावितों का बकाया मुआवजा भी जल्द से जल्द दिया जाएगा। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) की बैठक में यह फैसला लिया गया है। बैठक में सरकार की ओर से मंत्री सुरेन्द्र सिंह बघेल, जबकि नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर व अन्य कार्यकर्ता भी उपस्थित थे। बैठक में मेधा पाटकर का अनशन समाप्त कराने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्य सचिव शरद चंद्र बेहार बतौर मध्यस्थ और सामाजिक कार्यकर्ता राकेश दीवान बैठक में शामिल थे। मेधा पाटकर ने अपनी मांगों से अवगत कराया।
कई घंटे चली बैठक के बाद कुछ मुद्दों पर आगे भी बातचीत जारी रखने का निर्णय लिया गया। जबकि सबसे पहले सरदार सरोवर बांध का जलस्तर बढऩे के कारण डूब रहे गांवों के पुनर्वास का इंतजाम करने का निर्णय लिया गया। बताया गया कि डूब प्रभावित लोगों का जल्द से जल्द पुनर्वास किया जाएगा और उन्हें बकाया राशि भी दी जाएगी। जिन मुद्दों पर चर्चा जारी रहेगी, उनमें डूब प्रभावितों की संख्या का आंकलन करना, टापू जमीन की समस्या, हर गांव में शिविर, फर्जी वाड़े में शामिल लोगों पर कार्रवाई, प्रभावितों का पंचनामा बनाना, गांव के पास प्लॉट देने, किसानों की जमीन पर हो चुके अतिक्रमण को हटाना, जलाशय पर अधिकार आदि शामिल हैं। इन पर आगे भी बातचीत जारी रहेगी।
उल्लेखनीय है कि सरदार सरोवर बांध के डूब प्रभावित लगभग 178 गांवों का अब तक पुनर्वास नहीं किया गया है। वहीं, पिछले दिनों हुई बारिश के कारण सरदार सरोवर बांध का जलस्तर क्षमता के बेहद नजदीक पहुंच चुका है, लेकिन गुजरात सरकार बांध के गेट नहीं खोल रही हैं, जिस कारण इन गांवों में पानी भर गया है। इसके विरोध में मेधा पाटकर ने अनशन किया और नौ दिन बाद मध्य प्रदेश सरकार के आग्रह पर मेधा पाटकर ने अनशन वापस ले लिया और अब मध्य प्रदेश सरकार के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया है।
आखिरकार मध्य प्रदेश सरकार ने सरदार सरोवर बांध के लगातार बढ़ते जल स्तर से डूबने वाले गांवों की संख्या दुरुस्त करने का आश्वासन दिया है। सरकार ने मान लिया है कि डूब प्रभावित गांवों की संख्या 76 नहीं, बल्कि 178 है। हालांकि इन गांवों की कुल आबादी को लेकर मध्य प्रदेश सरकार ने स्थिति स्पष्ट नहीं की है और इसके लिए सर्वेक्षण कराने की बात कही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) को भेजे एक पत्र में यह जानकारी दी गई है। इस संबंध में आंदोलन के कार्यकर्ता रहमत ने बताया कि पिछली भाजपा सरकार ने 2017 में कहा था कि बांध के बैक वाटर से केवल 76 गांव के लगभग 6000 परिवार प्रभावित हो रहे हैं। जबकि ये सभी 76 गांव वास्तव में एक अकेले जिले यानी धार के अंतर्गत आते हैं। उस समय की राज्य सरकार ने बिना सर्वे किए ही इन गावों के प्रभावितों की संख्या भी घोषित कर दी।
कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद ही एनबीए ने सरकार को बताया कि डूब प्रभावित गांवों की संख्या 178 है और इससे लगभग 32 हजार परिवार प्रभावित हो रहे हैं। जिसे अब कमलनाथ सरकार ने मान लिया है। रहमत ने बताया कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के चेयरमैन ने माना है कि डूब प्रभावित गांवों की संख्या 76 नहीं, बल्कि 178 है। हालांकि उन्होंने कहा कि प्रभावित परिवारों की संख्या अभी हम नहीं बता सकते हैं। इसके लिए एक व्यापक सर्वे किया जाएगा। इसे नर्मदा बचाओ आंदोलन की आंशिक ही सही, लेकिन एक जीत के रूप में देखा जा रहा है। नर्मदा आंदोलन का कहना है कि मध्य प्रदेश सरकार के इस फैसले से उन हजारों परिवारों को उनका हक मिलने की संभावना बढ़ गई है, जिन्हें गैरकानूनी तरीके से डूब प्रभावित से वंचित कर दिया गया था। दिलचस्प बात यह है कि पिछली सरकार ने 76 गांवों के नाम तक नहीं बताए थे और न ही प्रभावितों की पूरी जानकारी दी थी। तब से लगातार नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा इस आंकड़ों को चुनौती दी जा रही है, जिसके बाद अब सरकार ने मान लिया है कि 178 गांवों में बांध प्रभावित निवास कर रहे हैं। प्रभावितों की सही संख्या का निर्धारण आंदोलन के साथ सर्वे कर किया जाएगा।
-श्याम सिंह सिकरवार