नया पावर सेंटरÓ!
18-Sep-2019 10:10 AM 1234935
इन दिनों उत्तर प्रदेश में बीजेपी की पॉलिटिक्स में खासा उबाल है। वजह हैं कल्याण सिंह। राजस्थान के राज्यपाल के रूप में अपना 5 साल पूरा करने के बाद उन्होंने बीजेपी में वापसी की है। उनकी वापसी को एक नए पावर सेंटर के उदय के रूप में देखा जा रहा है। वह बैकवर्ड क्लास में आने वाली लोध राजपूत जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यूपी की चुनावी सियासत में बैकवर्ड क्लास का अहम रोल है। इसी वजह से उन्हें बीजेपी में आगे बढऩे का मौका मिला। यह दीगर है कि मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद उन्होंने दो बार बीजेपी से अलग होकर सियासत की, जिसमें एक बार वे मुलायम सिंह यादव के भी साथ मिलकर चले थे। वापसी के बाद पार्टी नेतृत्व ने उनकी अगली पीढ़ी को चेहरा बनाने का फैसला किया। वैसे राज्यपाल रहते हुए उन्हें कई मौकों पर अपनी सियासी भावनाओं को काबू रखने में मुश्किल हुई, लेकिन अब जब वह संवैधानिक पद से मुक्त हो गए हैं, उनका राजनीति में एक बार फिर से खुलकर खेलना तय माना जा रहा है। इसी वजह से पार्टी में तैयार हुई नई लीडरशिप में बेचैनी है क्योंकि उनके असर को सब अभी से महसूस कर रहे हैं। कल्याण सिंह की दखलंदाजी से पार पाना नई लीडरशिप के लिए मुश्किल होगा। उनकी इस री-एंट्रीÓ के कई मायने निकाले जा रहे हैं। एक तरफ पिछड़े वर्ग को साधे रखने में उनकी अहम भूमिका होगी। साथ ही राम मंदिर मुद्दे पर भी वह मुखर दिख सकते हैं। पिछले दो साल में बीजेपी की ओबीसी वोटर्स में पैठ बढ़ी है, जिसे वह बरकरार रखना चाहती है। कल्याण सिंह लोध बिरादरी से आते हैं। उसी समाज के धर्मपाल सिंह सैनी की पिछले दिनों योगी मंत्रिमंडल से विदाई हो चुकी है। यूपी में लोध बिरादरी को भाजपा का परंपरागत वोटर माना जाता है। कल्याण सिंह की भाजपा की सदस्यता लेने के पीछे धर्मपाल की विदाई के बाद डैमेज कंट्रोल की रणनीति मानी जा रही है। वहीं पश्चिम यूपी में कल्याण सिंह की आज भी पकड़ मजबूत मानी जाती है। दरअसल, कल्याण सिंह यूपी की सियासत में ऐसे समय में वापसी कर रहे हैं, जब देश में राम मंदिर मुद्दा गरमाया हुआ है। कोर्ट में राम जन्मभूमि को लेकर सुनवाई हो रही है और तीन महीने में इसका निर्णय आने की संभावना है। ऐसे में अगर कल्याण सिंह के खिलाफ पुराना मुकदमा चलने के हालात बनते है, फिर इस मुद्दे पर पीछे रहना शायद मुश्किल हो। वह पहले की तरह मुखर दिख सकते हैं। दरअसल, राज्यपाल के संवैधानिक पद पर रहने की वजह से उन पर बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में मुकदमा नहीं चला था। लेकिन, कार्यकाल खत्म होने के बाद यह छूट समाप्त हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल 2017 को भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित कई अन्य लोगों पर लगे ढांचा ध्वंस मामले में आपराधिक साजिशों के आरोपों को फिर बहाल करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि 1992 में ढांचा ध्वंस के समय यूपी के सीएम रहे कल्याण सिंह को मुकदमे का सामना करने के लिए आरोपी के तौर पर नहीं बुलाया जा सकता। क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपालों को संवैधानिक छूट मिली है। ऐसी स्थिति में उन्हें कोर्ट में पेश होना पड़ सकता है। स्वाभाविक है कि उस स्थिति में वे 1991 वाले रामभक्त कल्याणÓ के रूप में दिखना चाहेंगे। राजनीतिक विश्लेषक व लखनऊ यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर आशुतोष मिश्रा का कहना है कि यूपी में मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह ये दो पिछड़े वर्ग के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। इनका प्रभाव आज भी बरकरार है। वहीं जिस तरह से राम मंदिर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आने की उम्मीद है। उसमें कल्याण सिंह की यूपी की राजनीति में भूमिका अहम हो जाएगी। नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान यूपी में बीजेपी का प्रमुख चेहरा कल्याण सिंह ही थे। 87 साल की उम्र में भी बीजेपी की राजनीति में उनका स्थान अहम है। 2022 विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बीजेपी उन्हें रणनीतिकारों में शामिल कर सकती है। -मधु आलोक निगम
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