नापाक इरादे
05-Sep-2019 08:41 AM 1234905
पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना दावा किया करते थे कि पाकिस्तान उनकी जेब में है। जिन्ना की इस गलतफहमी को पाक के आज तक के हुक्मरान विरासत की तरह ढोते रहे हैं। उन्हें लगता है कि जब तक वे अपनी जेब में कश्मीर रखेंगे तब तक पाकिस्तान की जनता उनसे नहीं पूछेगी कि उनकी जेब में पैसे क्यों नहीं हैं और सरकारी खजाना खाली क्यों पड़ा है। वो यह नहीं पूछेगी कि हमारे कारखाने की चिमनियां ठंडी पड़ी हैं तो कश्मीर के लिए आग क्यों उगली जा रही है। वह यह नहीं पूछेगी कि हमारे बच्चों के लिए कायदे के स्कूल नहीं हैं, लेकिन आतंकवाद के पोषक नेताओं के बच्चे विदेशों में क्यों पढ़ रहे हैं। लेकिन एक समय आता है जब जनता जाग जाती है और हुकूमत से सवाल करती है। इमरान खान अपना कार्यकाल संभालने के एक साल के अंदर एक अगंभीर राजनेता के तौर पर साबित हो चुके हैं। भारत सरकार के कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद उन्होंने पाकिस्तान की जश्न-ए-आजादी को कश्मीर एक जुटता दिवस के नाम कर दिया और उस खास दिन पाक प्रशासित कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद की प्रांतीय संसद में भाषण दिया। अपने भाषण में उन्होंने नरेंद्र मोदी पर जिस तरह व्यक्तिगत हमले किए, भारत के धार्मिक समुदायों से लेकर मीडिया और जजों की चिंता की उससे ऐसा लगा कि उन्हें अगला आम चुनाव भारत में लडऩा है। अनुच्छेद 370 खत्म होने जैसे भारत के घरेलू मामले पर इमरान खान का इतना परेशान होना इस बात का सबूत है कि उनकी राजनीति की रोटी कश्मीर की आग से ही पकती है। कश्मीरियों की चिंता के पीछे छिपे इमरान खान के पाखंड पर बेबाक बोल। जब हमने तिरानबे हजार फौजियों को छोड़ा तब हमने कागज पर लिखवा लिया था कि अब जितने भी हमारे-आपके मसले हैं, वे अंतरराष्ट्रीय नहीं हैं। अब वे द्विपक्षीय हैं। उनके प्रधानमंत्री ने उस पर दस्तखत किए थे। यह तो कतई हो नहीं सकता कि जिस दिन आपको तिरानबे हजार कैदी छुड़वाने हैं, उस दिन आप इसे द्विपक्षीय मान लीजिए और जिस दिन आप उस स्थिति से बाहर निकल जाइए, उस दिन उसे अंतरराष्ट्रीय करार दे दीजिए। यह कैसे हो सकता है?Ó आरिफ मोहम्मद खान कश्मीर मसले को संयुक्त राष्ट्र से लेकर अमेरिका और मुसलिम देशों में ले जाने पर इमरान खान को बांग्लादेश के गठन का आईना दिखाते हैं। बांग्लादेश की मुक्ति के लिए भारत-पाक युद्ध में जब पाकिस्तान को भारी नुकसान उठाना पड़ा था और उसके 93 हजार फौजी भारत के कब्जे में थे, तब उसने इसे आराम से द्विपक्षीय मसला माना था। आज कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म हो जाने के बाद वह भारत के घरेलू मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में जुटा है। मुसलमान अस्मिता का कार्ड तो अरब, ईरान, तुर्की जैसे मुसलिम देशों के साथ संयुक्त अरब अमीरात ने ही खारिज कर दिया। दुनिया के बाकी देशों का इतिहास रहा है कि वे कश्मीर मुद्दे को मिल-बैठ कर ही सुलझाने की बात करते रहे हैं। जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की कमर टूटी हुई है, वह विदेशी कर्जे में डूबता जा रहा है, तब वहां के वजीर-ए-आजम देश की आजादी के दिन को कश्मीर एकजुटता दिवसÓ के नाम कर देते हैं। इस खास दिन वे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद पहुंच जाते हैं। प्रांतीय संसद का विशेष सत्र बुलाते हैं और भारत को सबक सिखाने की धमकी देते हैं। इमरान खान ने मुजफ्फराबाद में कहा, नरेंद्र मोदी ने जो आखिरी कार्ड खेला है, वह मोदी और बीजेपी को बहुत भारी पड़ेगाÓ। इमरान खान पाकिस्तान के ऐसे वजीर-ए-आजम हैं जिनको अपने देश के ही बारे में क्रिकेट के मैदान से भी कम जानकारी है। - संजय शुक्ला
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