कंगाल पाक की कर्मचारियों पर नकेल
19-Aug-2019 06:49 AM 1234875
आर्थिक कंगाली के दौर से गुजर रहे पाकिस्तान की हालत दिनों दिन खराब होती जा रही है। यही वजह है कि पड़ोसी मुल्क के हुक्मरानों को पैसों की जुगाड़ के लिए नित नए फरमान जारी करने पड़ रहे हैं। अब पाकिस्तानी सरकार ने अपने सभी सरकारी कर्मचारियों को हुक्म दिया है कि वो पहली सितंबर तक अपनी संपत्तियों का ब्यौरा हर हाल में जमा कर दें। इमरान खान की सरकार ने सभी संघीय मंत्रालयों, संस्थानों एवं पीओके एवं गिलगित बाल्टिस्तान की राज्य की सरकारों को यह आदेश जारी किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, एक अलग सरकारी ज्ञापन में प्रबंधन ग्रेड के अधिकारियों के लिए 15 फीसदी तदर्थ राहत भत्ता, चुनिंदा निगमों और स्वायत्त निकायों के कर्मचारियों के लिए 5-10 फीसदी तदर्थ राहत भत्ता के लाभ देने की बात कही गई है। सरकार ने सभी संघीय मंत्रालयों और डिवीजनों के सचिवों, चार प्रांतों के मुख्य सचिवों (पीओके), राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो के चेयरमैन, संघीय कर लोकपाल, चुनाव आयोग, इंटेलिजेंस ब्यूरो एवं ऑडिटर जनरल से कहा है कि वे अपने कर्मचारियों की संपत्तियों का ब्यौरा जमा कराएं। बता दें कि गहरे आर्थिक संकट में फंसे पाकिस्तान ने इस साल सऊदी अरब और चीन से दो अरब डॉलर का कर्ज लिया है। पाकिस्तान में महंगाई दर लगभग 10.35 फीसदी है। जानकारों की मानें तो भारत से व्यापारिक रिश्ते खत्म कर पाकिस्तान ने अपने लिए मुसीबत बढ़ा ली है। पाकिस्तान के उसकी महंगाई दर 11 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान लगाया है। यही नहीं पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 300 बिलियन डॉलर (करीब 212 खरब रुपये) से भी नीचे आ गई है। उनका विदेशी मुद्रा भंडार भी निचले स्तर पर है। यही कारण है कि पाकिस्तान के हुक्मरानों की नींद उड़ी हुई है और वे तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। उधर कश्मीर मुद्दा पाकिस्तान के लिए गले की फांस बन गया है। उसे पता नहीं चल रहा कि आगे करना क्या है। विश्व बिरादरी के सामने उसने अनुच्छेद 370 का मुद्दा काफी उठाया लेकिन उसकी एक भी दलील नहीं टिकी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लगभग सभी देशों (चीन को छोड़कर) ने उसे बैरंग लौटा दिया। अब सिर्फ चीन ही बचा है जो उसकी फरियाद सुन रहा है, वह भी दबाव में क्योंकि चीन का बहुत कुछ पाकिस्तान में दांव पर लगा है। संयुक्त राष्ट्र चीन के गिड़गिड़ाने पर कश्मीर मुद्दे पर 16 अगस्त को बैठक करने जा रहा है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि संयुक्त राष्ट्र जैसी मुखिया संस्था को बंद दरवाजे के पीछे बैठक करनी पड़े लेकिन पाकिस्तान के इशारे पर चीन जो न कराए। संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब कश्मीर मुद्दे पर कोई बैठक होने जा रही है। हालांकि दूसरी बैठक 1971 की पहली बैठक से कई मायनों में भिन्न है। पहली बैठक न तो बंद दरवाजे के पीछे थी और न ही सुरक्षा परिषद् के अधिकांश सदस्य देशों ने पाकिस्तान का समर्थन करने से मना किया था। यूएनएससी में 1969-71 में सिचुएशन इन द इंडिया/पाकिस्तान सबकॉन्टिनेंट विषय के तहत कश्मीर का मुद्दा उठाया गया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (यूएनएससी) में कुल 15 सदस्य हैं। इनमें 5 स्थाई और 10 अस्थाई हैं। अस्थाई सदस्यों का कार्यकाल कुछ वर्षों के लिए होता है जबकि स्थाई सदस्य हमेशा के लिए होते हैं। स्थाई सदस्यों में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल हैं। अस्थाई देशों में बेल्जियम, कोट डीवोएर, डोमिनिक रिपब्लिक, इक्वेटोरियल गुएनी, जर्मनी, इंडोनेशिया, कुवैत, पेरू, पोलैंड और साउथ अफ्रीका जैसे देश हैं। - संजय शुक्ला
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