04-Jul-2019 07:17 AM
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मप्र में कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कथित बगावत की आंच अब कमलनाथ सरकार को भी लपेटे में ले रही है। अभी तक मध्यप्रदेश कांग्रेस में जो गुटबाजी चल रही थी वो सार्वजनिक नहीं हुई थी। लेकिन विगत दिनों कैबिनेट की मीटिंग में इसकी झलक दिख गई। जब सिंधिया खेमे के मंत्री कैबिनेट बैठक में सीएम कमलनाथ से भिड़ गए। दरअसल सरकार में समन्वय का अभाव है। जानकारों का कहना है कि कमलनाथ दो नाव की सवारी कर रहे हैं इसलिए ऐसी स्थिति बन रही है। यानी सत्ता और संगठन दोनों की जिम्मेदारी कमलनाथ के पास है। इसका प्रभाव यह हो रहा है कि वे न तो संगठन और न ही सत्ता पर पूरी तरह अपना ध्यान केंद्रित कर पा रहे हैं।
वैसे कांग्रेस में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है। लेकिन सरकार बनने के बाद मंत्रियों में इस बार जिस तरह की गुटबाजी दिख रही है वैसी पहले नहीं थी। पहले भी मंत्री विभिन्न गुटों से होते थे, लेकिन वे मुख्यमंत्री के प्रति पूरी तरह समर्पित होते थे। अगर पूर्व की गतिविधियों पर नजर डाले तो 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस के अंदर गुटबाजी चरम पर है। इसकी शुरुआत तब हुई, जब कांग्रेस के महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया को सीएम नहीं बनाया गया। सिंधिया के समर्थक मानते हैं कि विधानसभा चुनाव में उन्होंने जमकर मेहनत की थी लेकिन इनाम किसी और को मिला। कहा जाता है कि राजस्थान के फॉर्मूले की तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी डिप्टी सीएम का ऑफर मिला था। लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया।
जब ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम नहीं बने तो उन्होंने अपने लोगों को कमलनाथ सरकार में शामिल करवाया। जिसमें गोविंद सिंह, तुलसी सिवालट, इमरती देवी, प्रभुराम चौधरी और प्रद्युमन सिंह तोमर मंत्री बने। ये सभी लोग सिंधिया के पक्के समर्थक हैं। विधानसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस अंदरूनी कलह से जूझ रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान भी कमलनाथ और सिंधिया के समर्थकों में गुटबाजी की बात सामने आई थी। लेकिन ये सारी चीजें कभी सार्वजनिक नहीं हुईं थी। कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री कमलनाथ और कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंत्रियों की बहस अब खुलकर सतह पर सामने आ गई है। इस पर मुहर तब और लग गई है, जब बहस कर रहे मंत्री को कमलनाथ ने कहा कि मुझे मालूम हैं आप किसके इशारे पर कर रहे हैं।
गौरतलब है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रत्येक बड़े नेता के कोटे से दो-दो मंत्रियों का इस्तीफा लेकर 6 नए मंत्री बनाना चाहते थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्री इसके लिए तैयार नहीं हैं। सिंधिया समर्थक आधा दर्जन मंत्रियों ने पहले दिल्ली और बाद में भोपाल में बैठक कर निर्णय लिया है कि वे इस्तीफा नहीं देंगे। दूसरी ओर सीएम कमलनाथ ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मुलाकात के बाद फिलहाल मंत्रिमंडल में फेरबदल की अटकलों पर विराम लगा दिया है। फेरबदल टलने के पीछे सिंधिया समर्थकों का अडऩा ही माना जा रहा है।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि विगत दिनों कैबिनेट में जो नजारा सामने आया वह मंत्रीमंडल विस्तार की अटकलों का परिणाम है। मंत्रिमंडल में फेरबदल होना तय है। यह कुछ दिन भले टल गया है। मंत्रियों के रिपोर्ट कार्ड का अध्ययन किया जा रहा है, उनकी कार्यशैली की समीक्षा की जा रही है। उसके बाद किसे मंत्रिमंडल में रखा जाए और किसे बाहर किया जाए, इसका फैसला स्वयं कमलनाथ करेंगे। मुख्यमंत्री के तौर पर यह उनका विशेषाधिकार है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि कमलनाथ सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं है। जानकारों का कहना है कि एमपी सरकार को खतरा तभी हो सकता है जब कोई बड़ा नेता विद्रोह की अगुवाई करे, जिसके आसार कम हैं।
मुख्यमंत्री कमलनाथ को प्रदेश में सरकार चलाने में भाजपा से नहीं बल्कि अपनी ही पार्टी के लोगों से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सरकार को मजबूत करने के लिए सपा-बसपा के साथ ही कुछ वरिष्ठ कांग्रेस विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाना था और इसके लिए कुछ मंत्रियों से इस्तीफे लिए जाने थे, लेकिन इस्तीफा लेने की भनक लगने के बाद सिंधिया समर्थक मंत्री सक्रिय हो गए और उन्होंने अंदरूनी तौर पर इसका विरोध कर दिया। सूत्रों के मुताबिक विरोध के स्वर को देखते हुए फिलहाल मंत्रिमंडल विस्तार पर ब्रेक लग गया है और अब ऐसा माना जा रहा है कि विधानसभा सत्र के बाद ही मंत्रिमंडल विस्तार होगा। विधानसभा चुनाव के बाद जब मंत्रिमंडल बना था तो कई कांग्रेस विधायकों के साथ ही निर्दलीय विधायक नाराज हो गए थे। कमलनाथ ने इन नाराज विधायकों को भरोसा दिलाया था कि लोकसभा चुनाव के बाद मंत्रिमंडल विस्तार में कुछ विधायकों को शामिल कर लिया जाएगा। लोकसभा चुनाव तक सब ठीक-ठाक चलता रहा, लेकिन चुनाव होने के बाद नाराज विधायक मंत्री बनने के लिए दबाव बनाने का काम कर रहे हैं। अब मुख्यमंत्री के सामने समस्या यह है कि नाराज विधायकों को मंत्रिमंडल में स्थान देने के लिए कुछ मंत्रियों से इस्तीफा लेना पड़ेगा, क्योंकि नियम के हिसाब से सिर्फ 15 प्रतिशत विधायकों को ही मंत्री बनाया जा सकता है।
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ अब नए सिरे से सिंधिया एवं दिग्विजय सिंह से इस मामले में चर्चा कर आगे की रणनीति बनाएंगे। उसके बाद ही यह तय हो सकेगा कि किस मंत्री से इस्तीफा लिया जाए और किसको शामिल किया जाए। ऐसे में माना जा रहा है कि विधानसभा के बजट सत्र तक के लिए फिलहाल मंत्रिमंडल का पुनर्गठन टल गया है। अब विधानसभा सत्र समापन के बाद ही मंत्रिमंडल का पुनर्गठन किया जाएगा। उधर मंत्रिमंडल विस्तार नहीं होने से निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा भैया नाराज हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के आश्वासन पर हमने कांग्रेस के हित में लोकसभा चुनाव में नामांकन वापस कराया था। यदि मंत्रिमंडल विस्तार के बारे में नहीं सोचा जा रहा है तो हम भी अपने निर्णय पर पुनर्विचार करेंगे।
प्रदेश में जहां एक तरफ कांग्रेस सरकार में असंतोष का माहौल है वहीं संगठन भी निष्क्रिय है। संगठन की निष्क्रियता का नतीजा यह हुआ कि पार्टी के अधिकांश कार्यकर्ता मंत्रियों के इर्द-गिर्द घूमने लगे हैं। वे सरकार की चकाचौंध के प्रभाव में है। जिनके काम हो रहे हैं वे मंत्रियों के साथ हैं और जिन्हें तवज्जो नहीं मिल रही है वे अपनी ही सरकार से नाराज। हालांकि सरकार से नाराज मंत्रियों, विधायकों, नेताओं और कार्यकर्ताओं की संख्या ज्यादा है। वे चाहे जहां भी हों अपनी ही सरकार की आलोचना करते नजर आ जाते हैं। ऐसी स्थिति का खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना पड़ रहा है। कांग्रेस के सत्ता में होने पर भी भाजपा हमलावर है और कांग्रेसी भी खुश नहीं है। किसी भी संगठन को मजबूती कार्यकर्ताओं की सक्रियता पर निर्भर करती है। कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने के लिए अनवरत कार्यक्रम जरूरी है। पर कमलनाथ जबसे मुख्यमंत्री बने, तबसे उन्होंने सरकार के कामकाज में खुद को डुबो लिया। संगठन को लेकर न बैठकें हुई, न कोई कार्यक्रम तैयार हुआ। कमलनाथ के संगठन की ओर ध्यान न देने के कारण अन्य पदाधिकारी अपने आप बैठ गए।
भाजपा जब तक सत्ता में रही तब तक अपवाद छोड़कर कांग्रेस कभी सशक्त के तौर पर दिखाई नहीं पड़ी। कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता ही पार्टी की निष्क्रियता को लेकर कोसते रहते थे, जबकि विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने जैसे ही प्रदेश की सत्ता संभाली, भाजपा ने सरकार का काम करना दूभर कर दिया। हालात यह है कि किसान कर्जमाफी हो, कानून व्यवस्था का मसला हो तबादले हो या अन्य कोई मुद्दा, भाजपा सरकार को घेरने का कोई अवसर नहीं छोड़ रही है। भाजपा ने 6 माह में ही इस बात का अहसास करा दिया कि विपक्ष की भूमिका कैसे निभाई जाती है।
- विकास दुबे