16-May-2019 08:20 AM
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हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने के वादे के साथ सत्तासीन हुई मोदी सरकार ने बड़े जोर शोर से प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) की शुरुआत की थी, लेकिन अन्य योजनाओं की तरह यह योजना भी जुमला साबित हुई। सरकार ने दावा किया था कि चार साल के दौरान 1 करोड़ लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। लेकिन अपने कार्यकाल के अंतिम बजट सत्र में सरकार ने माना कि केवल 37 लाख लोगों को प्रशिक्षण दिया गया और उनमें से भी केवल 10 लाख लोगों को नौकरी मिली। हालांकि ये आंकड़े कितने सही हैं, इस पर भी सवाल उठते रहे हैं। क्योंकि देश के 112 में से 108 जिलों में प्रमुख च्फ्लैगशिप स्कीम्सज् के परिणाम निराशाजनक हैं । जिनमें जुलाई 2018 से फरवरी 2019 के बीच नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गयी है।
मौजूदा सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत की 96 प्रतिशत च्एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्टज् के विकास कार्यों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है । महत्वपूर्ण है कि इन जिलों में जुलाई 2018 से फरवरी 2019 के बीच आर्थिक एवं कौशल विकास के क्षेत्र में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई है। इस अवधि के दौरान निगरानी किये गए 112 में से 108 जिलों में आर्थिक विकास एवं कौशल निर्माण के क्षेत्र में चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं के परिणाम हताशाजनक है ।
5 जून 2019 को आने वाली च्च्स्टेट ऑफ इंडिया एनवायरनमेंट 2019ज्ज् रिपोर्ट के अनुसार इन योजनाओं का लक्ष्य बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं को उद्योगों की मांग के मुताबिक कौशल प्रशिक्षण देकर उन्हें सक्षम बनाना था। जिससे कमजोर तबके के युवाओं का भी विकास हो सके। इसलिए इन योजनाओं में होने वाली नकारात्मक वृद्धि सीधे-सीधे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) और दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण योजना की असफलता को दर्शाती है। डिस्ट्रिक्ट एस्पिरेशनल प्रोग्राम के तहत, देश के 112 अल्पविकसित जिलों का पांच महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विकास करना था7 जिसमें - स्वास्थ्य एवं पोषण, शिक्षा, कृषि एवं जल संसाधन, आर्थिक एवं कौशल विकास, और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना प्रमुख है7 जिसका सीधा-सीधा असर नागरिकों के जीवन और आर्थिक उत्पादकता की गुणवत्ता पर पड़ेगा।
समग्र रूप से जिलों के हालिया प्रदर्शन पर एक नजऱ डालने से लगता है कि लगभग सभी जिले अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं7लेकिन जुलाई 2018 और फरवरी 2019 के बीच के प्रदर्शन का तुलनात्मक विश्लेषण करने से तस्वीर कुछ और ही नजर आती है, यह सच्चाई कड़वी है, मगर सच भी है, और इसपर पुन: विचार करना जरुरी है ।
जहां केवल चार जिलों में मामूली सुधार हुआ है, जिनमें हरियाणा के मेवात जिले में पिछले 10 महीनों में मामूली सा सुधार हुआ है। जब इसका सूचकांक 21.9 से 31.7 अंक तक सुधरा है। वहीं, दूसरी ओर नकारात्मक वृद्धि दर्ज करने वाले 108 जिलों में छत्तीसगढ़ का महासमुंद और बस्तर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले जिले हैं। महासमुंद का स्कोर जहां 73.5 से घटकर 40.8 रह गया है, वहीं इसी अवधि में बस्तर का स्कोर 65.3 से घटकर 35.6 दर्ज किया गया। इन दोनों जिलों के स्कोर में गिरावट दर्शाती है कि इन जिलों के लिए च्च्युवाज्ज् प्राथमिकता नहीं हैं। वास्तविकता में, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर औसत से नीचे प्रदर्शन किया था, यही कारण है कि कांग्रेस को छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बड़े भारी अंतर से जीत हासिल हुई थी।
2019 के लोकसभा चुनावों में बेरोजगार और अकुशल युवा निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं; यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों के घोषणापत्रों में युवाओं के लिए रोजगार और कौशल विकास का पुलिंदा बांधा गया है । जहां कांग्रेस उन लाखों कम कुशल या अर्धकुशल पुरुषों और महिलाओं को रोजगार देने का वादा कर रही है, जिन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा भी पूरी नहीं की है7 जबकि बीजेपी ने नेशनल पॉलिसी फॉर रिस्किलिंग एंड अपस्किलिंगÓ का वादा किया है, जिसके जरिये वह ऐसे कार्यबल को विकसित करने की योजना बना रही है जो उद्योग के अनुकूल हो और जिसके जरिये वे अपने लिए नयी संभावनाएं तलाश सकें।
- नवीन रघुवंशी