16-May-2019 08:00 AM
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लोकसभा का यह चुनाव भाजपा-कांग्रेस के लिए ही नहीं बल्कि मप्र सरकार के मंत्रियों, कांग्रेस विधायकों और पदाधिकारियों के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। दरअसल लोकसभा के चुनाव परिणाम तय करेंगे कि कौन मंत्री मंडल में बना रहेगा और बाहर होगा। साथ ही विधायकों और पदाधिकारियों का भी कद बढ़ेगा या कम होगा। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ लोकसभा चुनाव के बाद अपने मंत्रिमंडल में विस्तार और निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्ति करेंगे। इसके लिए जहां मंत्रियों, विधायकों और पदाधिकारियों की परफॉर्मेंस लोकसभा चुनाव परिणाम के अनुसार तय की जाएगी।
गौरतलब है कि कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में तो आ गई है, लेकिन प्रदेश में अभी भी वह संगठनात्मक रूप से भाजपा से कमजोर है। साथ ही प्रदेश में उसकी सरकार बसपा, सपा और निर्दलीयों की बैसाखी पर टिकी हुई है। ऐसे में मुख्यमंत्री कमलनाथ की कोशिश रही है कि पार्टी लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर अपनी स्थिति मजबूत करे। इसके लिए प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 20 से अधिक सीट जीतने का लक्ष्य सामने रख चुनाव लड़ा गया है। इसके लिए मंत्रियों, विधायकों और पदाधिकारियों को यह कहते हुए जिम्मेदारी सौंपी गई है कि चुनाव परिणाम ही आपका भविष्य तय करेगा। ऊपरी तौर पर तो सभी ने मेहनत की है, लेकिन किसकी मेहनत रंग लाती है यह 23 मई को ही पता चलेगा।
यह लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए बेहद अहम है। हिंदीभाषी राज्यों से पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को ज्यादा से ज्यादा सीटों की उम्मीद है, क्योंकि यहां कांग्रेस सफलता के रथ पर सवार है। मप्र में पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महज दो सीटें मिली थी, जो उपचुनाव के बाद तीन हो गई थी। इस बार पार्टी 20 से ज्यादा सीटों का लक्ष्य लेकर काम कर रही है। प्रदेश में 15 साल बाद सरकार बनाने वाली कांग्रेस की कोशिश है कि भाजपा के खिलाफ माहौल लोकसभा चुनाव तक बना रहे, जिसका फायदा उसे मिल सके। साथ ही कर्जमाफी के पत्ते को भी पार्टी दोबारा भुनाना चाहती है। वचन पत्र के उन बिंदुओं को पहले पूरा किया गया है, जो सीधे तौर पर आम जनता से जुड़े हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में सरकार बनाने के बाद कांग्रेस का आत्मविश्वास लौटा है। मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश में 20 सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं। वे कहते हैं कि प्रदेश की जनता ने 15 साल प्रदेश में और 5 साल केंद्र में भाजपा को सरकार चलाने का मौका दिया, लेकिन इनकी सरकार प्रदेश और देश की जनता के लिए कुछ नहीं कर सकी, लेकिन हमने प्रदेश में सरकार बनाने के बाद किसानों की सुध ली है। अब किसानों के भरोसे ही कांग्रेस प्रदेश में 20 सीटों पर जीत का दावा कर रही है।
कमलनाथ कैबिनेट में इस बार किस तरह से मंत्रियों को पद बांटा गया है ये जगजाहिर है। कांग्रेस में कोटा सिस्टम चलता है। कोटा सिस्टम के चलते कई वरिष्ठ विधायकों को दरकिनार कर नए नवेले और दूसरी बार जीते विधायकों को मंत्री पद दिया गया है। ऐसे में कांग्रेस को वरिष्ठ विधायकों की नाराजगी का सामना भी करना पड़ा है। इन नाराज विधायकों को कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि लोकसभा चुनाव तक इंतजार करें। अगर पार्टी को मनचाहे नतीजे नहीं मिले तो कई मंत्रियों पर गाज गिर सकती है। मंत्री नहीं बनाए जाने से पांच विधायकों की नाराजगी सामने आ चुकी है, जो खुद को मंत्री पद का उपयुक्त दावेदार मानते हैं। अब यह रास्ता सिर्फ मंत्री बनाने का ही है। कांग्रेस के अंदरखाने की मानें तो मंत्रियों से साफ कह दिया गया है कि कोई भी इस भ्रम में न रहे कि उनके नेता के सहारे मंत्री की कुर्सी बरकरार बनी रहेगी, क्योंकि लोकसभा चुनाव में परिणाम बेहतर नहीं दिया तो फिर मंत्री की कुर्सी जा सकती है।
मप्र में अल्पमत वाली सरकार के गठन और मंत्री पदों के वितरण के बाद कई विधायक असंतुष्ट थे। उसमें कांग्रेस के साथ ही सपा, बसपा और निर्दलीय विधायक भी शामिल थे। तब उन्हें आश्वासन दिया गया था कि जल्द ही कैबिनेट विस्तार कर उन्हें मंत्री पद दिया जाएगा, क्योंकि अभी भी 6 मंत्री का पद शेष है। गौरतलब है कि मप्र विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं। उनके 15 फीसदी की संख्या में मंत्री बनाए जा सकते हैं। ऐसे में प्रदेश में अधिकतम 35 मंत्री बनाया जाना संभव है। फिलहाल मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित 29 मंत्रियों को ही शपथ दिलाई गई है। ऐसे में शेष बचे पदों पर अगले विस्तार में मंत्री बनाए जाएंगे।
-अजय धीर