16-May-2019 06:42 AM
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बिहार में बीते दो लोकसभा चुनाव में एनडीए को एकतरफा जीत मिली थी। 2009 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए को 32 सीटें मिली थीं, तो 2014 में नरेंद्र मोदी के नाम पर 31 सीटें एनडीए के खाते में आई थीं। हालांकि राज्य में इस बार लोकसभा चुनाव में किसी प्रकार की लहर नहीं दिखाई दे रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता तो अब भी बरकरार है, लेकिन एनडीए उम्मीदवारों को वोटरों की बेरुखी का भी सामना करना पड़ रहा है। अगर राष्ट्रीय सुरक्षा की बात पर मोदी सरकार की तारीफ हो रही है, तो वहीं दलितों पर अत्याचार और बेरोजगारी की बात कहने से भी वोटर नहीं चूक रहे हैं। वहीं स्थानीय स्तर पर सांसदों को विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
खुद बीजेपी के अंदरूनी सूत्र मानते हैं कि इस बार 7-8 दिग्गज नेताओं के प्रति जनता में भारी गुस्सा है। इनमें कई केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं। बीते चुनाव में मोदी लहर में जनता ने इन बातों को नजरअंदाज कर दिया था, लेकिन इस बार इन्हें विरोध झेलना पड़ सकता है। इस चुनाव में पिछड़ी जातियों के मतदाता अब तक चुपचाप चुनावी तमाशा देख रहे हैं। राजनीतिक दलों की लाख कोशिशों के बाद भी उनकी ओर से राजनीतिक दलों को कोई इशारा नहीं मिल रहा है। इस चुप्पी की वजह से दोनों गठबंधनों की सांसें अटकी हुई है। दरअसल, विश्लेषकों के मुताबिक दलितों के खिलाफ बढ़ती आपराधिक घटनाओं और सवर्ण आरक्षण को लेकर एनडीए की मुश्किल बढ़ी हैं। हालांकि उनके मुताबिक इस वर्ग में अब भी नीतीश कुमार के लिए सहानुभूति है, लेकिन इन मतदाताओं को लुभाने में एनडीए को खासी मेहनत करनी पड़ रही है।
इसीलिए अपनी हर रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी जाति के बारे में खुलकर बताते हैं। साथ ही, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस तबके के लिए काम के बारे में घूम-घूमकर प्रचार कर रहे हैं। वहीं, राजनीतिक नुकसान के खतरे को देखते हुए उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी लालू प्रसाद को चारा घोटाले में जेल भेजने का श्रेय लेने से बच रहे हैं। बात तो यहां तक पहुंच गई है कि उन्होंने लालू प्रसाद को जेल भेजने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को जिम्मेदार बताया। इस चुनाव में महागठबंधन और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को अंदरूनी कलह का भी सामना करना पड़ रहा है। सत्ता में होने की वजह से एनडीए को इसका सबसे ज्यादा सामना करना पड़ रहा है। मसलन, बांका में नीतीश कुमार की जनता दल (यू) ने गिरिधारी यादव को खड़ा किया था, लेकिन बीजेपी की पूर्व सांसद और स्व. दिग्विजय सिंह की विधवा पुतुल देवी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप बीजेपी वोट बैंक में गहरी सेंध लगाई है। वहीं, अंदरुनी चर्चा की मानें, तो बीजेपी ने अब जिन पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। वहां जेडी (यू) अपने सीमित वोट को ही ट्रांसफर करवा सकी है। वहीं काफी प्रयास के बावजूद रामविलास पासवान दलित और पिछड़ों के वोट बैंक में जगह नहीं बना पा रहे हैं।
दूसरी तरफ, महागठबंधन में भी लालू प्रसाद की कमी साफ खल रही है। महागठबंधन के नेताओं की मानें तो तेजस्वी यादव उनकी कमी को पूरा करने में अब तक विफल साबित हुए हैं। वहीं, आरजेडी, कांग्रेस, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी और दूसरे नेताओं के बीच समन्वय का अभाव साफ दिखाई दे रहा है। वहीं, तेजस्वी यादव के अलावा आरजेडी के एक्का-दुक्का नेता को ही प्रचार अभियान में जगह दी जा रही है।
बीजेपी को उम्मीद है कि मोदी फैक्टर की वजह से टिकट बंटवारे के दौरान खास तौर पर अगड़ी जाति के वोट बैंक की नाराजगी को दूर करने में मदद मिलेगी। भूमिहार और ब्राह्मणों को बीजेपी का पारंपरिक रूप से समर्थक माना जाता है। बालाकोट एयर स्ट्राइक के कारण यहां की जनता के बीच मोदी फेक्टर हावी है। लेकिन यह वोट में बदलेगा या नहीं यह तो 23 मई को ही पता चलेगा।
- विनोद बक्सरी