03-May-2019 09:34 AM
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लोकसभा चुनाव का घमासान शुरू होते ही मप्र का सियासी पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया है। शह-मात के इस खेल में राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी चौसर पर अपनी मुहरें बिछा दी है। लेकिन उन मुहरों को मात देने के लिए विपक्षी ही नहीं बल्कि अपने भी घात लगाए हुए हैं। मप्र में टिकट वितरण के साथ ही बगावत का रंग सुर्ख हो गया। मध्यप्रदेश की 29 सीटों में से शायद ही कोई ऐसी सीट है जहां भाजपा और कांग्रेस में प्रत्याशी का विरोध न हो। लेकिन भाजपा को 13 सीटों पर तो कांग्रेस को 7 सीटों पर सबसे अधिक खुलाघात और भितरघात का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा को खजुराहो, शहडोल, मंदसौर, उज्जैन, छिंदवाड़ा, सीधी, सतना, बालाघाट, दमोह, खंडवा, टीकमगढ़, राजगढ़, सागर तो कांग्रेस को मंडला, विदिशा, धार, खंडवा, सतना, शहडोल, सीधी लोकसभा सीट पर बगावत और भितरघात का सामना करना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप के बाद कुछ नेता मान गए हैं तो कुछ चुनौती बने हुए हैं। माना जा रहा है कि प्रदेश के इतिहास में पहली बार खुलाघात और भितरघात इतने व्यापक रूप से है।
खजुराहो लोकसभा सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर बीते 3 चुनावों से भाजपा को ही जीत मिलती आई है। इस बार भाजपा ने संघ के दबाव में पैराशूटी उम्मीदवार वीडी शर्मा को उतारा है। उधर, कांग्रेस ने विधायक विक्रम सिंह नातीराजा की पत्नी कविता सिंह को टिकट दिया है। खजुराहो में भाजपा नेता बीडी शर्मा का इस कदर विरोध हो रहा है कि भाजपा का यह गढ़ खतरे में पड़ गया है। शहडोल संसदीय सीट पर भाजपा और कांग्रेस ने दलबदलु प्रत्याशियों को टिकट दिया है। भाजपा ने मौजूदा सांसद, पांच बार विधायक रहे और पूर्व मंत्री ज्ञान सिंह का टिकट काट दिया। उनके स्थान पर कांग्रेस से भाजपा में हाल ही में आईं हिमाद्री सिंह को टिकट दे दिया गया। हिमाद्री सिंह कांग्रेस से भाजपा में तो प्रमिला सिंह भाजपा से कांग्रेस में आईं। दोनों का पार्टी के अंदर विरोध है। भाजपा के सांसद ज्ञानसिंह ने तो खुलेआम विरोध जताया था, लेकिन बाद में उन्हें मना लिया गया। लेकिन ज्ञानसिंह की नाराजगी खतरा बन सकती है। वहीं भाजपा से कांग्रेस में आई प्रमिला सिंह का भी विरोध हो रहा है। दोनों प्रत्याशियों को भितरघात का खतरा सता रहा है।
मंडला से भाजपा ने एक बार फिर से फग्गन सिंह कुलस्ते को प्रत्याशी बनाया है। स्टिंग ऑपरेशन में फंसे कुलस्ते संकट में हैं। वहीं कांग्रेस ने यहां से युवा चेहरे कमल मरावी को मैदान में उतारा। मंडला लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। यह सीट कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी। भाजपा को जितनी बार भी इस सीट पर जीत मिली वो पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के सहारे ही मिली है। मंडला में प्रत्याशी घोषित होते ही कांग्रेस के अंदर भी घमासान मच गया है। पूर्व मंत्री गंगाबाई उरैती की बेटी रूपा उरैती ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।
प्रदेश में बालाघाट सीट पर इस बार मुकाबला सबसे रोचक होने की संभावना है। क्योंकि एक तो भाजपा ने वर्तमान सांसद बोध सिंह भगत का टिकट काटते हुए बरघाट से 4 बार विधायक रहे ढाल सिंह बिसेन को उम्मीदवार बनाया है। ढालसिंह बिसेन के उम्मीदवार बनाए जाने के बाद जिले में भाजपा में बगावत और गुटबाजी खुलकर सामने आ गई है। वहीं बोध सिंह भगत ने निर्दलीय पर्चा भरा है। इधर, कांग्रेस ने विधानसभा का चुनाव हारे मधु भगत को मैदान में उतारा। प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से सतना ऐसी सीट है जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के प्रत्याशियों के खिलाफ असंतोष और विरोध है। सतना लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है और गणेश सिंह यहां के सांसद हैं। पिछले 3 चुनावों से सतना में गणेश सिंह का ही जादू चलता आया है। लेकिन इस बार सांसद के खिलाफ जन आक्रोश होने के कारण 28 साल बाद भाजपा यहां कमजोर नजर आ रही है। कांग्रेस ने यहां से राजा राम त्रिपाठी को टिकट दिया है।
राजाराम त्रिपाठी का भी विरोध हो रहा है। सतना में टिकट नहीं मिलने से विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष राजेंद्र कुमार सिंह भी नाराज है। सीधी लोकसभा सीट पर इस बार भाजपा की रीति पाठक और कांग्रेस के अजय सिंह आमने समाने हैं। दोनों में समानता यह है कि दोनों का उनकी पार्टी में ही विरोध है। जहां रीति पाठक का खुलेआम विरोध हो रहा है तो अजय सिंह का यहां खुलकर तो नहीं लेकिन दबी जुबां में अपनों का विरोध झेलना पड़ रहा है। मंत्री कमलेश्वर पटेल से खटपट अजय के लिए संकट बन सकती है।
टीकमगढ़ लोकसभा सीट पर अब तक 2 चुनाव हुए हैं। इन दोनों ही चुनावों में भाजपा के वीरेंद्र कुमार खटीक को जीत मिली है। वे तीसरी बार भी चुनावी मैदान में हैं। वीरेंद्र खटीक के विरोध में पूर्व विधायक आरडी प्रजापति ने इस्तीफा दे दिया और अब सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। यह भाजपा के लिए परेशानी बन सकता है। वहीं कांग्रेस ने किरण अहिरवार को टिकट दिया है। किरण दिग्विजय खेमे से आती हैं। सागर लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ बन गई है। इस सीट पर पिछले 6 चुनावों से भाजपा का ही कब्जा है। भाजपा के लक्ष्मी नारायण यादव यहां के सांसद हैं। लेकिन भाजपा ने उनका टिकट काटकर राज बहादुर सिंह को मैदान में उतारा है। भाजपा के पूर्व मंत्री भूपेन्द्र सिंह की जिद पर उनके रिश्तेदार राजबहादुर को मैदान में उतारा। कांग्रेस प्रत्याशी प्रभु सिंह के आगे भाजपा प्रत्याशी राज बहादुर का कद कमजोर माना जा रहा है। राज बहादुर का जिस तरह भाजपा में ही विरोध हुआ उससे कांग्रेस के पास यहां जीतने का बड़ा मौका है।
राजगढ़ लोकसभा सीट राज्य की वीआईपी सीटों में से एक है। यह क्षेत्र कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के दबदबे वाला क्षेत्र है। फिलहाल इस सीट पर भाजपा का कब्जा है और रोडमल नागर यहां के सांसद हैं। पार्टी ने एक बार फिर से उन्हें टिकट दिया है। रोडमल नागर इस बार अपनी ही पार्टी के विरोध के चक्रव्यूह में फंस गए हैं। वहीं कांग्रेस ने मोना सुस्तानी को मैदान में उतारा है। धाकड़ समाज को साधने दोनों दलों ने धाकड़ प्रत्याशी पर दांव लगाया है।
कार्यकर्ताओं में भारी विरोध, पुतले जलाने के बावजूद भाजपा ने मंदसौर में सुधीर गुप्ता पर भरोसा जताया है। वहीं कांग्रेस ने पिछला चुनाव हार चुकीं मीनाक्षी नटराजन को मैदान में उतारा है। मंदसौर से भाजपा सांसद सुधीर गुप्ता को दोबारा टिकट दिए जाने के बाद किसान नेता बंसी लाल गुर्जर के समर्थक नाराज दिखाई दे रहे हैं। गर्जुर के समर्थन में गुर्जर समाज एकजुट हो गया है। समाज बंशीलाल के निवास पर दो दिन से बैठक कर रहा है। पार्टी के तीन विधायक भी गुप्ता को टिकट देने से नाराज हैं।
धार लोकसभा सीट में स्थानीय नेताओं के विरोध के बावजूद भाजपा ने उम्रदराज छतरसिंह दरबार पर भरोसा जताया है। वहीं कांग्रेस ने पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी को टिकट न देकर अपनी मुश्किल बढ़ा ली है। कांग्रेस ने धार में दिनेश गिरवाल को टिकट दिया है जिनका विरोध हो रहा है। राजूखेड़ी यहां से सशक्त दावेदार थे। आखिरी समय तक उनका नाम टिकट की दौड़ में था। अब वे कांग्रेस प्रत्याशी के लिए परेशानी का सबब बने हैं। खंडवा में भाजपा-कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और चिर प्रतिद्वंद्वी नंदकुमार सिंह चौहान और अरूण यादव एक बार फिर आमने-सामने हैं। दोनों के लिए ये चुनाव उनके कैरियर का ग्राफ तय करेगा। स्थानीय स्तर पर दोनों का विरोध है। दोनों ही पूर्व प्रदेश अध्यक्षों को भितरघात का खतरा है। पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस ने नंदकुमार सिंह चौहान का विरोध कर टिकट की दावेदारी की थी। वहीं कांग्रेस से बगावत करके निर्दलीय बुरहानपुर विधायक बने ठाकुर सुरेंद्र सिंह शेरा खुलकर बगावत कर रहे।
बैतूल लोकसभा सीट पर भाजपा ने शिक्षक दुर्गादास उइके को तो कांग्रेस ने युवा वकील रामू टेकाम को चुनावी मैदान में उतारा है। आदिवासी बहुल इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी मजबूत नजर आ रहे हैं। अब देखना है कि 23 मई को प्रदेश की किस लोकसभा सीट पर किसकी जीत होती है और किसकी हार। एक बात तो तय है जिस प्रत्याशी की हार होगी वह गुटबाजी और भितरघात को जिम्मेदार बताकर पार्टी पर ठिकरा फोड़ेगा।
- विशाल गर्ग