आत्मघाती लुकाछिपी
03-May-2019 09:27 AM 1234797
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने ही कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया था और हाल तक अरविंद केजरीवाल कहा करते थे कि वो कांग्रेस को समझा-समझा कर थक गये। केजरीवाल कांग्रेस को गठबंधन के लिए समझा रहे थे। केजरीवाल का दावा रहा कि मनाते मनाते थक गये, लेकिन कांग्रेस है कि मानती नहीं। कभी ये सुनने को मिला कि आप और कांग्रेस आधी-आधी सीटों पर राजी हैं और सातवीं सीट पर कॉमन उम्मीदवार हो सकता है। कभी ये संख्या 4-3 तो कभी 3-4 भी बतायी गयी। अब यही धारणा बनी है कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन चाहते हैं - और कांग्रेस, खासकर दिल्ली कांग्रेस की जरा भी दिलचस्पी नहीं रही। पहले आप के साथ गठबंधन में सबसे बड़ा रोड़ा अजय माकन माने जाते थे, लेकिन बाद में ये रोल दिल्ली कांग्रेस की प्रमुख शीला दीक्षित पर शिफ्ट हो गया। यहां तक कि दिल्ली में कांग्रेस के प्रभारी पीसी चाको ने तो सर्वे भी करा डाले जो शीला दीक्षित को मंजूर न था। हर प्रेस कांफ्रेंस में यही बताया जाता कि गठबंधन लगभग फाइनल है, बस घोषणा होनी बाकी है। दिल्ली में गठबंधन का मामला जोर पकड़ा था ममता बनर्जी की कोलकाता रैली के बाद। खुद केजरीवाल का भी इस बारे में कहना है कि शरद पवार के घर पर राहुल गांधी से उनकी एक ही मीटिंग हुई है - उसके बाद कोई बातचीत नहीं हुई। शरद पवार के घर हुई उस मीटिंग में राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल के अलावा ममता बनर्जी, फारूक अब्दुल्ला और चंद्रबाबू नायडू भी मौजूद थे। राहुल गांधी ने मीटिंग में ही गठबंधन से इंकार कर दिया था। जब गठबंधन के दूसरे नेताओं ने राहुल गांधी को समझाने की कोशिश की तो कांग्रेस अध्यक्ष ने स्थानीय नेताओं से बातचीत करने का भरोसा दिलाया। उसके बाद आप की ओर से संजय सिंह और कांग्रेस की ओर गुलाम नबी आजाद के बीच बातचीत होती रही और निगरानी का जिम्मा पीसी चाको पर रहा। केजरीवाल के अनुसार दोनों पक्षों की ऐसी कुल तीन बैठकें हुई थीं। केजरीवाल की मानें तो कांग्रेस भी हरियाणा को लेकर राजी थी लेकिन एक शर्त थी। केजरीवाल के मुताबिक कांग्रेस खातिर आप नेता ने जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला को भी मना लिया था, लेकिन कांग्रेस रोज नयी नयी शर्त रख कर मुकर जाती रही। दिल्ली में भी गठबंधन की पहल यूपी की ही तर्ज पर आंकड़ों के आधार पर ही हुई थी। जिस तरह यूपी गठबंधन की बात को आगे बढ़ाने में 2017 के विधानसभा चुनावों की भूमिका रही, उसी तरह दिल्ली में एमसीडी चुनावों में आप और कांग्रेस को मिले वोटों की। आप और कांग्रेस को मिले वोट जोड़ देने पर बीजेपी को मिले वोटों से ज्यादा हो जा रहे थे। 2014 के आम चुनाव के आंकड़े भी वही कहानी बता रहे थे। बीजेपी ने 46.63 फीसदी वोटों के साथ दिल्ली की सभी सात सीटों पर जीत हासिल की थी। पांच साल पहले आप को आम चुनाव में 33.08 फीसदी और कांग्रेस को 15.22 फीसदी वोट मिले थे - जिन्हें जोड़ दिया जाये तो बीजेपी से ज्यादा हो जाते हैं - 48 फीसदी। आंकड़े तो यही संकेत दे रहे हैं कि दोनों दलों का गठबंधन हो जाता तो बीजेपी की राह मुश्किल हो सकती थी। हालांकि, ये जितना आसान नजर आ रहा है हकीकत में वैसा होना बहुत मुश्किल है। गठबंधन की सूरत में सबसे बड़ी चुनौती होती है वोटों का ट्रांसफर। दिल्ली के मामले में लगता है, न तो कांग्रेस नेतृत्व और न ही आप नेतृत्व - कोई भी बड़े मन के साथ आगे नहीं बढ़ सका। हो सकता है दोनों दलों के नेताओं के मन में दूसरे तरह के संकोच और अविश्वास रहे हों - और सीटों की संख्या पर मोलभाव की असली वजह सिर्फ बहानेबाजी रही हो। -इंद्र कुमार
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