03-May-2019 09:12 AM
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मनरेगा का क्रियान्वयन जिन उद्देश्यों के लिए किया जाता है वे उद्देश्य अब पूरे नहीं हो पा रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि देशभर में मनरेगा के तहत होने वाले लाखों काम लंबित पड़े हुए हैं। मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड में आने वाले छह जिलों सहित प्रदेश के अधिकांश जिलों में मनरेगा के तहत होने वाले काम बंद पड़े हैं। इनमें कुएं, तालाब, नहर, बंधान आदि के काम भी हैं। इन कामों के अधर में लटके होने का परिणाम यह है कि प्रदेश के छह हजार से अधिक गांवों में सूखे का प्रभाव दिख रहा है। जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अगर जलसंरक्षण और सिंचाई से संबंधित काम पूरे हो गए होते तो जलसंकट की स्थिति नहीं बनती।
अभी देश का 50 फीसदी हिस्सा सूखा प्रभावित है और कई जिले दूसरे साल भी लगातार सूखे की चपेट में है। इसे देखते हुए, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) सूखे के असर को कम करने के साथ-साथ लोगों की आमदनी बढ़ाने का महत्वपूर्ण जरिया होना चाहिए था, लेकिन 2018-19 के दौरान मनरेगा के प्रदर्शन का विश्लेषण करने से पता चलता है कि मनरेगा सूखाग्रस्त जिलों की किसी भी तरह की मदद करने में विफल रहा।
जल संरक्षण और सिंचाई से संबंधित कई महत्वपूर्ण कार्य या तो पूरे नहीं किए गए हैं या उन्हें स्थगित कर दिया गया, जिससे किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ। बड़ी संख्या में परिवारों को जारी किए गए जॉब कार्ड हटा दिए गए और उन्हें रोजगार से वंचित रखा गया। 2018-19 में पानी से संबंधित लगभग 18 लाख कार्यों को छोड़ दिया गया या पूरा नहीं किया गया। सरकारों ने इन पर लगभग 16,615 करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। जो 2018-19 में मनरेगा पर कुल खर्च का एक-चौथाई के करीब है।
साल 2018-19 में सरकारों ने देश भर में लगभग 16.1 लाख घरों के जॉब कार्ड रद्द किए। जॉब कार्ड एक ऐसा डॉक्यूमेंट होता है, जिससे पता चलता है कि मनरेगा के तहत कितने रोजगार की मांग थी और कितना रोजगार मिला। 2018-19 में 65 लाख से ज्यादा व्यक्तियों का जॉब कार्ड रद्द हुआ। जॉब कार्ड रद्द होने के कुछ सही कारण भी हो सकते हैं, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में जॉब कार्ड रद्द होना कोई सामान्य नहीं है। साल 2018-19 के दौरान लगभग 5.87 करोड़ घरों ने मनरेगा के तहत रोजगार की मांग की, लेकिन 5.26 करोड़ घरों को ही रोजगार मिल पाया। इसका मतलब है कि 60 लाख घरों को रोजगार नहीं मिल पाया, वह भी तब, जब उन्हें इसकी जरूरत थी।
मनरेगा के तहत एक घर में एक सदस्य को साल भर में 100 दिन के लिए रोजगार मिलता है। एक घर के सदस्य आपस में रोजगार की अदला-बदली कर सकते हैं, लेकिन 100 दिन की गारंटी से अधिक नहीं की जा सकती। एक व्यक्ति के तौर पर देखा जाए तो 9.1 करोड व्यक्तियों को रोजगार की जरूरत थी, लेकिन 7.7 करोड़ व्यक्तियों को ही रोजगार मिल पाया। रोजगार की मांग को पूरा करने से ज्यादा चिंता करने वाली बात यह है कि कृषि और पानी से संबंधित कार्यों को रद्द कर दिया गया, जो किसानों को सूखे के समय में जल संरक्षण में मदद कर सकते थे। 2005 में अपनी स्थापना के बाद से, मनरेगा के विभिन्न कार्य संतोषजनक तरीके से पूरे नहीं किए गए। जिससे कार्यक्रम के असफल रहने के संकेत मिलते हैं। इसमें ज्यादातर काम गांवों की उत्पादकता बढ़ाने में सहायक साबित हो सकते थे, लेकिन यह नुकसानदायक साबित हुए। इसमें से लगभग 70 फीसदी काम जल संरक्षण से जुड़े हैं।
आंकड़ों पर नजर डालने के बाद एक बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि सूखाग्रस्त राज्यों में बड़ी संख्या में काम शुरू किए गए, लेकिन इन्हीं राज्यों में अधिकतर काम अधूरे हैं। इसके साथ ही, भारत के गांवों ने खुद को सूखे से बचाने के लिए एक और अवसर खो दिया है।
- विकास दुबे