उपजाऊ जमीन कर दी बंजर
03-May-2019 09:08 AM 1234969
किसानों की आय दोगुनी करने के लिए गठित समिति जैसे-जैसे कृषि क्षेत्र का आंकलन कर रही है, वैसे-वैसे कृषि संकट की गंभीरता का पता चल रहा है। बता दें कि किसानों की आय को दोगुना करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महत्वपूर्ण वादा है जिसके इर्दगिर्द चुनावी नैरेटिव रचाया जा रहा है। अपनी सातवीं रिपोर्ट में समिति ने पाया है कि कृषि भूमि के उपयोग में व्यवस्थित बदलाव किसानों को प्रभावित कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में उपजाऊ कृषि भूमि का बड़ा हिस्सा उद्योगों को देने के अलावा नई टाउनशिप बनाने और नई बस्तियां बनाने के लिए दिया जा रहा है। यह तथ्य सब जानते हैं, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, चिंताजनक बात यह है कि ज्यादा से ज्यादा बंजर और असिंचित जमीन कृषि के दायरे में लाई जा रही है। इससे जहां किसानों की उत्पादकता प्रभावित हो रही है, वहीं आय सुरक्षा और खेती की व्यवहारिकता पर भी असर पड़ रहा है। भारत में 1970-71 के बाद से गैर कृषि भूमि क्षेत्र 100 लाख हेक्टेयर तक बढ़ा है। रिपोर्ट बताती है कि यह मूलरूप से उपजाऊ कृषि भूमि है जिसका उपयोग अन्य कामों के लिए हुआ है। वहीं दूसरी तरफ इस अवधि (1971-12) में बंजर और असिंचित जमीन 280 लाख हेक्टेयर से घटकर 170 लाख हेक्टेयर हो गई है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में जोत भूमि पहले जितनी ही है। इससे पता चलता है कि किसान अब बंजर और सिंचित जमीन पर आश्रित हो रहे हैं। भारत की जोत भूमि 1970 से 1,400 लाख हेक्टेयर के आसपास है। लेकिन गैर कृषि कार्यों के लिए भूमि का उपयोग 1970 में 196 लाख हेक्टेयर से 2011-12 में 260 लाख हेक्टेयर पहुंच गया है। अकेले 2000-2010 के दशक में करीब 30 लाख हेक्टेयर कृषि जमीन गैर कृषि कार्यों के लिए उपयोग में लाई गई है। दूसरी तरफ जो बंजर और असिंचित जमीन 1971 में 280 लाख हेक्टेयर थी, वह 2012 में घटकर 170 लाख हेक्टेयर रह गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस नई कृषि भूमि पर भारत का खाद्य उत्पादन टिका है, लेकिन इस भूमि का अधिकांश हिस्सा बारिश के जल पर निर्भर है। यही वजह है कि किसानों की आय को दोगुना करना एक बड़ी चुनौती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि के दायरे में आई जमीन की उर्वरता और सेहत ठीक नहीं है। इस जमीन को उपजाऊ और आर्थिक रूप से सार्थक बनाने के लिए बहुत ध्यान देने की जरूरत है। किसानों की दुर्दशा और कृषि क्षेत्र पर मंडराते संकट के लिए कई कारण जिम्मेदार है लेकिन एक महत्वपूर्ण कारण है छोटी जोत। हाल के दशकों में भले ही भू-स्वामियों की संख्या बढ़ी हो लेकिन कृषि भूमि दूसरे कार्यों के लिए हस्तांतरित होने से न केवल मालिकाना हक वाली जमीन कम हुई बल्कि सीमांत किसानों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो गई। 1970-71 में आधे किसान सीमांत थे लेकिन 2015-16 आते-आते सीमांत किसान बढ़कर 68 प्रतिशत हो गए हैं। गौरतलब है कि एक हेक्टेयर से कम जमीन के मालिक सीमांत किसान कहे जाते हैं जबकि दो हेक्टेयर तक के भू-स्वामी छोटे किसानों की श्रेणी में आते हैं। दो से चार हेक्टेयर के भू-स्वामी अद्र्ध मध्यम, चार से 10 हेक्टेयर के भू-स्वामी मध्यम और 10 हेक्टेयर से अधिक के भू-स्वामी बड़े किसानों की श्रेणी में आते हैं। पिछले दशकों में सभी श्रेणी के किसानों की औसत भूमि कम हुई है। इस कारण खेती से किसानों का मोहभंग हुआ। यह देश के लिए चिंताजनक पहलू है। - अरविंद नारद
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