प्रतिष्ठा दांव पर
17-Apr-2019 09:28 AM 1234823
छत्तीसगढ़ लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों ने कमर कस ली है। छत्तीसगढ़ में मुख्य चुनावी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच रहने की संभावना है। राज्य बनने के बाद से अब तक हुए तीन आम चुनाव में भाजपा 10 सीटें जीतती रही है। वहीं, कांग्रेस को हर बार केवल एक सीट से संतोष करना पड़ता था। चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बंपर जीत के साथ राज्य की सत्ता में आई है। ऐसे में यहां कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि राज्य सरकार की भी हर सीट पर प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। आदिवासी आरक्षित सरगुजा सीट पर राज्य बनने के बाद से भाजपा का कब्जा है। इस बार यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस के खेलसाय सिंह और भाजपा की रेणका सिंह के बीच है। खेलसाय प्रेमनगर विधानसभा सीट से लगातार दूसरी बार के विधायक हैं। वे पहले दो बार सांसद भी रह चुके हैं। वहीं, भाजपा की रेणुका दो बार प्रेमनगर सीट से विधायक रहीं। इस दौरान वे राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रहीं। वहीं आदिवासियों के लिए आरक्षित रायगढ़ सीट पर लगातार भाजपा का कब्जा है। यहां से कांग्रेस ने धरमजयगढ़ से अपने दो बार के विधायक लालजीत सिंह राठिया को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा ने उनके मुकाबले गोमती साय को टिकट दिया है। गोमती जशपुर जिला पंचायत की अध्यक्ष हैं। बसपा ने यहां से इनोसेंट कुजूर व गोगंपा ने जयसिंह सिदार को प्रत्याशी बनाया है। छत्तीसगढ़ की इस एकमात्र अनुसूचित जाति आरक्षित जांजगीर-चांपा सीट भाजपा लगातार जीत रही है। कांग्रेस ने यहां से अपने पूर्व दिग्गज नेता परसराम भारद्वाज के पुत्र रवि भारद्वाज को मैदान में उतारा है। वहीं, भाजपा ने इस सीट पर सारंगढ़ सीट से सांसद रहे गुहराम अजगल्ले को टिकट दिया है। परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आई कोरबा सीट पर 2014 में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस ने 2009 में यहां से सांसद चुने गए डॉ. चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत को टिकट दिया है। भाजपा ने यहां से नए चेहरे ज्योतिनंद दुबे पर दांव लगाया है। राज्य की हॉट सीटों में शामिल बिलासपुर संसदीय क्षेत्र पर भी पिछले कई चुनावों से भाजपा का कब्जा रहा है। पार्टी ने यहां से संघ परिवार से जुड़े अरूण साव को मैदान में उतारा है। साव का मुकाबला कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव से हैं। यह उनका पहला चुनाव है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का निर्वाचन क्षेत्र होने की वजह से राजनांदगांव सीट पर सबकी निगाहें रहेंगी। कांग्रेस ने यहां से अपने पूर्व विधायक भोलाराम साहू को टिकट दिया। वहीं भाजपा ने साहू के मुकाबले संतोष पाण्डेय के रूप में नए चेहरे पर दांव लगाया है। पिछले आम चुनाव में कांग्रेस के खाते में जाने वाली दुर्ग एकमात्र सीट पर मुख्यमंत्री समेत राज्य के तीन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। सीएम भूपेश बघेल, मंत्री रविंद्र चौबे, इस सीट के निर्वतमान सांसद व राज्य में मंत्री ताम्रध्वज साहू का निर्वाचन क्षेत्र इसी संसदीय सीट में है। पार्टी ने यहां से प्रतिमा चंद्राकर को टिकट दिया है। इनके मुकाबले भाजपा ने मुख्यमंत्री भूपेश के रिश्तेदार विजय बघेल को टिकट दिया है। रायपुर सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। पार्टी ने यहां से लगातार छह बार सांसद रहे रमेश बैस का टिकट काटकर सुनील सोनी को मैदान में उतारा है। सोनी रायपुर के महापौर रह चुके हैं। पार्टी में उन्हें संगठन का नेता माना जाता है। कांग्रेस ने सोनी के टक्कर में महापौर प्रमोद दुबे को टिकट दिया है। कांग्रेस ने महासमुंद सीट से अपने वरिष्ठ नेता और लगातार दूसरी बार अभनपुर से विधायक चुने गए धनेंद्र साहू को टिकट दिया है। उधर, भाजपा ने यहां से चुन्न्ीलाल साहू को टिकट दिया है। साहू पार्टी के पूर्व विधायक हैं। आदिवासी आरक्षित बस्तर सीट पर भी राज्य बनने के बाद से भाजपा का ही कब्जा है। इस बार पार्टी ने दिनेश का टिकट काटकर बैदूराम कश्यप को टिकट दिया है। बैदूराम दो बार विधायक रहे हैं। उनके मुकाबले कांग्रेस ने दीपक बैज के रूप में युवा चेहरे पर दांव लगाया है। दीपक 2008 के विधानसभा चुनाव में बैदूराम को हरा चुके हैं और लगातार दूसरी बार के विधायक हैं। बस्तर संभाग की कांकेर दूसरी आदिवासी आरक्षित सीट है। बीते तीन आम चुनाव से कांग्रेस यहां जीत के लिए तरस रही है। पार्टी ने इस बार बीरेश ठाकुर को मैदान में उतारा है। भाजपा ने मोहन मंडावी को टिकट दिया है। मंडावी शिक्षक संघ शाखा के उपाध्यक्ष, तुलसी मानस प्रतिष्ठान के प्रांताध्यक्ष और लोक सेवा आयोग के सदस्य रहे हैं। हमेशा संकट में रही निर्दलियों की साख लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों की साख हमेशा संकट में रही है। प्रदेश व रायपुर लोकसभा स्तर पर पिछले तीन लोकसभा चुनाव के आंकड़े तो यही बता रहे हैं। बावजूद इसके निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या प्रदेश स्तर पर बढ़ती ही रही है। वर्ष 2014 के चुनाव में तो कुल 36 प्रत्याशियों में 23 निर्दलीय थे। हालांकि लोकसभा चुनावों में ज्यादातर की जमानत तक जब्त होती रही है। ये कुल वोट का एक से तीन फीसदी तक वोट ही पाते रहे हैं। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में दुर्ग सीट से निर्दलीय मैदान में उतरे ताराचंद साहू अपवाद स्वरूप हैं, जिन्होंने 28.96 फीसदी मत हासिल किए थे। इस चुनाव में राष्ट्रीय दलों के साथ वे तीसरे नंबर पर थे। चुनावी दंगल में बुरा प्रदर्शन होने के बावजूद निर्दलियों के मैदान में उतरने के पीछे सबसे बड़ी वजह पार्टी से टिकट न मिलने से उपजा असंतोष रहा है। इस बार नामांकन की अंतिम तारीख 4 अप्रैल तक रायपुर लोकसभा सीट से 32 प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया है। इनमें 16 विभिन्न राजनीतिक दलों से तो 16 निर्दलीय हैं। हालांकि पांच अप्रैल को नामांकन पत्रों की जांच व आठ अप्रैल को नाम वापसी के बाद देखना पता चलेगा कि कितने निर्दलीय मैदान में बचते हैं। -रायपुर से टीपी सिंह
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