21-Feb-2019 05:57 AM
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बात सिर्फ मोदी सरकार की नहीं है, हर राजनीतिक दल आज येन-केन-प्रकारेण मतदाताओं को लुभाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने से परहेज नहीं करता। लंबे इंतजार के बाद आखिर केन्द्र सरकार का आखिरी बजट आ ही गया। चुनावी साल है, लिहाजा मोदी सरकार के इस बजट को चुनावी बजट कहा जाए तो शायद कुछ गलत नहीं होगा। गांव से लेकर गरीब, किसान से लेकर मजदूर और वेतनभोगियों को खुश करने की कवायद मतदाताओं को लुभाने का प्रयास माना जाए तो भी शायद गलत नहीं होगा। कहने को बजट अंतरिम था, लेकिन इसमें चुन-चुनकर मतदाताओं पर फोकस किया गया। आयकर में छूट की सीमा बढ़ाने की मांग लंबे समय से हो रही थी, लेकिन चुनावी साल में इसे ढाई लाख से बढ़ाकर पांच लाख किया जाना मध्यम वर्ग को आकर्षित करने की कोशिश ही माना जाएगा।
गांव की सड़कों के लिए 19 हजार करोड़ रुपए खर्च करके गांव में रहने वालों को प्रभावित करने के प्रयास को भी चुनाव से जोड़कर ही देखा जा रहा है। गायों के कल्याण के लिए कामधेनु योजना स्थापित करने की घोषणा भी की गई। आखिरी साल में सही, सरकार को गौमाता के सम्मान का ध्यान आया, इसका स्वागत किया जाना चाहिए। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को खुश करने का ध्यान भी बजट में रखा गया। पन्द्रह हजार से कम मासिक वेतन पाने वालों के लिए 60 साल की आयु के बाद तीन हजार रुपए की न्यूनतम पेंशन योजना की भी घोषणा बजट में की गई। कहा जा सकता है कि अंतरिम बजट के बहाने चुनावी साल में मतदाताओं को प्रभावित करने का कोई भी अवसर सरकार ने नहीं छोड़ा। यहां बात सिर्फ मोदी सरकार की ही नहीं है, देश का हर राजनीतिक दल आज येन-केन-प्रकारेण मतदाताओं को लुभाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने से परहेज नहीं करता।
चूंकि मोदी सरकार का कार्यकाल मई में पूर्ण होगा, यह असमंजस चल रहा था कि क्या यह बजट अंतरिम बजट होगा या पूर्ण बजट, क्या सरकार कुछ घोषणाएं कर पाएगी या नहीं, अंततोगत्वा कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने वर्ष 2019-20 के लिए अपना अंतरिम बजट संसद में पेश कर दिया और किसान, गरीब, लघु उद्योगों और अभावग्रस्त लोगों के कल्याण के बारे में सरकार की मंशा भी जाहिर कर दी। पिछले काफी समय से खेती-किसानी के संकट पर चर्चा चल रही है। किसानों की ऋणग्रस्तता और उस पर ऋण माफी की राजनीति, किसानों को उसकी उपज का सही मूल्य दिलाने की बात से लेकर किसान की आमदनी दोगुना करने की बात, पिछले कम से कम एक साल से चर्चा में है। स्वभाविक ही था कि बजट में खेती किसानी के लिए प्रावधान होने थे।
रक्षा बजट को 3 लाख करोड़ पर ले जाना, रेलवे समेत इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए प्रावधान, प्रदूषण कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहन, भ्रष्टाचार पर चोट आदि सराहनीय कदम हैं। इन खर्चों से बजट डगमगा सकता था, लेकिन अच्छी बात यह है कि इससे राजकोषीय घाटे को भी जीडीपी के मात्र 3.4 प्रतिशत तक रखा जाना, वर्तमान बजट की विशेषता है। पिछले वर्ष के कुल बजट आकार 24,42,213 करोड़ रुपए से बढ़ाकर इस साल का बजट आकार 27,84,200 करोड़ रुपए का है, (यानी 3,41,987 करोड़ रुपए ज्यादा)। लेकिन इसके बावजूद राजकोषीय घाटा पिछले साल के संशोधित अनुमानों के आधार पर जीडीपी के 3.4 प्रतिशत के बराबर ही आकलित किया गया है। यह इसलिए संभव हुआ है, क्योंकि आगामी साल में इस साल की तुलना में कर राजस्व 2 लाख 52 हजार करोड़ ज्यादा आकलित किया गया है, जो कि एक रिकॉर्ड है।
-मार्केण्डेय तिवारी