गोशाला बनी कब्रगाह
21-Feb-2019 05:50 AM 1234791
मध्य प्रदेश सहित देशभर में इनदिनों गाय बड़ा मुद्दा बनी हुई है। कमलनाथ सरकार प्रदेश में 1000 गौशाला बनाने जा रही है। लेकिन वर्तमान में जो गौशालाएं संचालित हैं उनमें फंड के अभाव के कारण गायों को न तो पर्याप्त चारा मिल पा रहा है और न ही इलाज। इस कारण गाएं बीमारी की चपेट में आ रही हैं। यही नहीं उज्जैन नगर निगम की कपिला गौशाला तो गायों की कब्रगाह के समान बन चुकी है। यहां इसी साल अब तक करीब 100 से अधिक गाएं मर चुकी हैं। रत्नाखेड़ी स्थित नगर निगम की कपिला गौशाला में लगातार गायों की मृत्यु हो रही है, जिसे रोकने में निगम प्रशासन नाकाम साबित हो रहा है। देखभाल व उचित चिकित्सा के अभाव में गायों की सांसें उखड़ रही हैं लेकिन किसी को इससे सरोकार नहीं। शुरुआती दौर में राजनीति गरमाई थी, लेकिन अब गायों की मौत पर सब खामोश हैं। गौशाला की अव्यवस्थाओं के विरोध में महापौर मीना जोनवाल के साथ एमआईसी सदस्य और पार्षदों ने परिसर में ही धरना भी दिया था। उन्होंने गौशाला के शेड, भूसा स्टोर रूम और पानी की व्यवस्था देखकर असंतोष जताया था। उनका कहना था तीन शेड में 225 गायों को रखा जा सकता है, जबकि वर्तमान में वहां पर 750 गायें हैं। जानकारों का मानना है कि गायों के मरने के तीन बड़े कारण सामने आ रहे हैं। एक तो क्षमता से अधिक गाय रखने के कारण इनको रातभर खुले में रहना पड़ता है। दूसरा समुचित चिकित्सकीय देखभाल नहीं होना व तीसरा आवारा विचरण के दौरान इनका पॉलीथिन व अन्य हानिकारक वस्तुओं को खा लेना। पीएम रिपोर्ट में इस तरह की स्थितियां सामने आई हैं, लेकिन निगम प्रशासन व पशु चिकित्सा सेवाएं विभाग इसका समाधान नहीं निकाल पाया। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में कुल 1296 पंजिकृत गौशालाएं हैं। इनमें से 614 क्रियाशील हैं। 614 गौशाला में कुल 1 लाख 53 हजार 883 गाये हैं। एक गाय पर प्रतिदिन 20 रुपए का खर्चा होता है, लेकिन मंडी बोर्ड से पैसा बहुत कम मिलता है जिससे फिलहाल एक गाय पर 3.50 से 4 रुपए ही रोज खर्च हो रहे हैं। गौशालाओं को पर्याप्त भूसा नहीं मिलने के कारण गायों की स्थिति दिन पर दिन खराब होती जा रही हैं। आलम यह है कि गायों का पेट भरने के लिए गौशाला संचालकों द्वारा चंदे का सहारा लिया जा रहा है। मप्र में सरकार गाय को लेकर कितना संवेदनशील है इसका अंदाजा एशिया के सबसे बड़े गौ अभयारण्य की स्थिति से लगाया जा सकता है। आगर में बने इस गौ अभयारण्य में रोजाना 300 क्विंटल भूसे की जरूरत होती है। लेकिन फंड की कमी के कारण चारा नहीं आ रहा है और गाय भूखी मर रही हैं। सूत्रों के मुताबिक यहां हर हफ्ते 4-5 गाय दम तोड़ रही हैं। अभयारण्य को बने फिलहाल एक साल पूरा हुआ है। सरकार ने इसके उद्घाटन अवसर पर गौ सेवा के बड़े-बड़े दावे किए थे। लेकिन अब यह अभयारण्य गायों के लिए नरक बन गया है। जिन गोदामों को चारे से भरा हुआ होना चाहिए था वहां तिल भर भी चारा नहीं है। भूसा रखने के लिए 10 गोदाम बनाए गए हैं लेकिन सभी खाली पड़े हैं। यही नहीं अभयारण्य में मात्र 2 डॉक्टर ही हैं और जो गायें बीमार रहती है उनका उपचार करते हैं। गौशालाओं में ही नहीं सड़कों पर घुमने वाली गाय भी मौत के मुंह में समा रही हैं। गाएं वाहनों की टक्कर से सड़कों पर घंटों घायल पड़े तड़प-तड़प कर मर रही हैं। क्योंकि इनके रहने के लिए गौशालाओं में जगह नहीं है और मजबूरी में इन्हें सड़कों पर या सड़क किनारे जहां कहीं भी जगह मिल रही है, ये झुंड के झुंड में वहां इक_ा हो रही हैं। वहीं सड़कों पर दौड़ती तेज रफ्तार गाडिय़ां बड़ी संख्या में इन्हें अपना शिकार बना रही हैं। उधर, एक के बाद एक सरकारें उन किसानों को दंडित करने के लिए कानून बना रही हैं जो मवेशियों को खुला छोड़ रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने भारतीय दंड संहिता के तहत गाय त्यागने को दंडनीय अपराध बना दिया है। जिला कलेक्टर को गाय के मालिक पर केस दर्ज कराने की शक्ति दी गई है। मध्य प्रदेश की विधानसभा में भी आवारा मवेशियों और बुंदेलखंड जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में फसलों को हुए नुकसान पर चर्चा हो चुकी है। लेकिन गाय केवल राजनीति का केंद्र बनकर रह गई है। रासुका की कार्रवाई पर रार भाजपा के गौसंवर्धन के मुद्दे को हथियाने की कोशिश में लगी कांग्रेस में गौतस्करी और गौहत्या पर हुई कार्रवाई पर मतैक्य नहीं बन पा रहा है। पिछले दिनों खंडवा और आगर-मालवा में गौहत्या व गौतस्करी के आरोपितों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत की गई कार्रवाई पर कांग्रेस में ही अलग-अलग राय है। गौरतलब है कि कांग्रेस सरकार बनने के बाद सबसे पहले मप्र के खंडवा जिले में गौहत्या के आरोप में तीन लोगों के खिलाफ रासुका के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। वहीं आगर-मालवा में गौवंश के अवैध परिवहन के दो आरोपितों पर रासुका की कार्रवाई की गई। खास बात यह है कि भाजपा ने इस कार्रवाई का स्वागत किया, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम पर कांग्रेस के अंदर ही विरोध शुरू हो गया। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, आरोपितों पर गौहत्या के लिए बने कानून के तहत कार्रवाई की जाना चाहिए थी, रासुका नहीं लगनी चाहिए थी। दिग्विजय सिंह के बयान के बाद भोपाल मध्य से विधायक आरिफ मसूद ने एक नई मांग उठा दी। उन्होंने कहा कि यदि गौहत्या के आरोप में पुलिस रासुका की कार्रवाई करती है तो गौरक्षा के नाम पर हिंसा करने वालों के खिलाफ भी इसी कानून के तहत कार्रवाई की जाए। - विकास दुबे
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