12-Feb-2019 08:04 AM
1234840
अस्सी साल की शीला दीक्षित को दिल्ली में कांंग्रेस की कमान सौंपने का फैसला अनुभव को तरजीह दिया जाना है, मजबूरी है या श्रेष्ठतम विकल्प, यह राहुल गांधी से बेहतर दूसरा नहीं बता सकता। लेकिन कांग्रेस के इस फैसले के बहाने यह बहस लाजिमी है कि राजनीतिक पार्टियां अपने सांगठनिक ढांचे या लोकतंत्र की मजबूती के लिए भविष्योन्मुख रणनीति के लिहाज से किस धरातल पर खड़ी हैं। हालांकि न सिर्फ देश के दोनों सबसे बड़े दल कांग्रेस और भाजपा, बल्कि बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी या अन्य, कम से कम एक मायने में बराबर हैं कि अधिकतर राज्यों में उनकी दूसरी कतार का नेतृत्व धुंध में गुम है। खैर जो हुआ सो हुआ। अब बात करते हैं शीला दीक्षित के सामने खड़ी चुनौतियों की।
15 साल तक बतौर मुख्यमंत्री दिल्ली पर एकछत्र राज करने वाली शीला दीक्षित के लिए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का पद कांटों भरा ताज है। मार्च महीने में 80 साल की होने जा रहीं शीला दीक्षित के सामने कौन सी 7 बड़ी चुनौती है, जिनसे उबरना उनके लिए मुश्किल भरा होगा। इन चुनौतियों का शीला दीक्षित ने डटकर सामना किया और विजय हासिल की तो किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। पहली चुनौती है 2014 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में कांग्रेस ने सभी सातों लोकसभा सीटें गंवा दी थीं। अब 2019 के लोकसभा चुनाव में 90 दिन से भी कम समय बचा है। ऐसे में शीला दीक्षित को आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सम्मानजनक सीट दिलानी होगी या वोट बैंक में इजाफा करना होगा। दूसरी चुनौती 2015 में 70 विधानसभा सीट में से 0 (शून्य) पर सिमटने वाली कांग्रेस का दिल्ली में जनाधार बिखर गया है, उसे फिर से वापस लाना होगा। खासकर आम आदमी पार्टी के पास कांग्रेसी मतदाताओं को वापस लाना बड़ा मुश्किल काम होगा। तीसरी चुनौती शीला और उनके साथ जुड़ी तीन सदस्यीय टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौती सबको साथ लेकर चलने की भी है, क्योंकि कांग्रेस पार्टी में कई गुट हैं। ऐसे में शीला दीक्षित को आपसी भेदभाव भुलाने की सीख देकर सबको तेजी से अपने साथ जोडऩा होगा। चौथी शीला दीक्षित का दिल्ली की मुख्यमंत्री रहने के दौरान से अजय माकन से उनका 36 का आंकड़ा रहा है। यही वजह है कि अजय माकन को शीला के साथ काफी मशक्कत के बाद पत्रकार वार्ता भी करनी पड़ी थी। इसके बाद भी शीला दीक्षित कई बार अजय माकन पर कई अप्रत्यक्ष हमले कर चुकी हैं। ऐसे में अजय माकन के लोगों के साथ भी सामंजस्य बिठाना होगा। शीला दीक्षित के सामने पांचवीं चुनौती है कभी अपने सांगठनिक ताकत को वोटों में तब्दील करवाने वाली शीला दीक्षित के सामने सबसे बड़ी चुनौती चुनावी साल में सुस्त पड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को फिर से सक्रिय करना है। ऐसा नहीं कर पाने की स्थिति में शीला दीक्षित को जीवन की सबसे बड़ी हार देखनी पड़ सकती है। छठी आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर अजय माकन की साफ तौर पर नाराजगी है और शीला भी इसी दिशा में जाती दिखाई पड़ रही हैं। ऐसे में आलाकमान के निर्देश पर आप के साथ गठबंधन करना पड़ा और फिर इसे धरातल पर उतारना ही पड़ा तो यह शीला दीक्षित के लिए सबसे कठिन फैसला और दौर होगा।
सातवीं चुनौती प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने से पहले ही शीला दीक्षित कह चुकी हैं कि राजनीति चुनौतियों से भरी है, हम उसके ही आगे की रणनीति बनाएंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा और आप दोनों एक चुनौती हैं और हम मिलकर इन चुनौतियों का सामना करेंगे। आप के साथ गठबंधन पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि शीला के साथ आप और भाजपा
बड़ी ताकत हैं और इनसे पार पाने का उपाय ढूंढऩा होगा।
- ऋतेन्द्र माथुर