फीके न पड़ जाएं पीके
02-Nov-2018 06:28 AM 1234837
प्रशांत किशोर को जेडीयू ज्वाइन किये हुए महीना भर हुए हैं - और नीतीश कुमार के बाद अब उनकी नंबर दो की हैसियत हो चुकी है। हैरानी जैसी इसमें कोई बात नहीं है क्योंकि ये सारी चीजें पहले से ही तय रही होंगी। सिर्फ अमल धीरे-धीरे होता है। वैसे भी धीरे-धीरे रे मना... नीतीश कुमार का सूत्र वाक्य है। महागठबंधन के दिनों में ये लाइन उनके ज्यादातर सवालों का जवाब हुआ करती रही। निश्चित रूप से नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर से बड़ी अपेक्षाएं होंगी। प्रशांत किशोर को जेडीयू का भविष्य, नीतीश कुमार ने यूं ही तो कहा नहीं होगा। वो प्रशांत किशोर का काम काफी करीब से देख चुके हैं। मौजूदा राजनीतिक स्थिति में नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर जैसे साथी की महती जरूरत भी लग रही होगी। काफी हद तक वैसी ही जैसी नरेंद्र मोदी के लिए अमित शाह की अहमियत है। ये मोदी-शाह की जोड़ी ही है जिसके सामने बड़े से बड़ा दिग्गज राजनीतिक रूप से बौना महसूस कर रहा है। अव्वल तो काबिलियत के मामले में नीतीश कुमार का भी कोई सानी नहीं है। लालू प्रसाद को साथ लेकर नीतीश कुमार मोदी-शाह की जोड़ी को भी शिकस्त दे ही चुके हैं। संभव है प्रशांत किशोर में नीतीश कुमार कहीं न कहीं अमित शाह का अक्स देख रहे हों और फिलहाल जो कुछ नजर आ रहा है वो नीतीश की दूरगामी सोच का हिस्सा हो। बिहार में राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने चुनावी चाणक्य प्रशांत किशोर पर एक ऐसी जिम्मेदारी डाल दी है, जिसके बाद पीके के सामने नये सिरे से खुद को साबित करने की चुनौती आ पड़ी है। प्रशांत किशोर के लिए जेडीयू ही नहीं, बल्कि कोई भी राजनीतिक दल ज्वाइन करना मुश्किल नहीं था। मुश्किल था तो पार्टी में बड़ा ओहदा हासिल करना। आपत्ति तो बीजेपी को भी बहुत नहीं थी, लेकिन प्रशांत किशोर को कोई बड़ा पद दिया जाना अमित शाह को ही नहीं मंजूर था। वक्त और जरूरत के हिसाब से प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार एक-दूसरे के पूरक साबित हुए हैं। अब दोनों का ये परस्पर सामंजस्य कितना फायदेमंद साबित होता है, देखना होगा। जेडीयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद भी पहली बार किसी को दिया गया है। जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी के मुताबिक उपाध्यक्ष बनने के बाद जल्द ही प्रशांत किशोर को नयी जिम्मेदारी भी मिलने वाली है। प्रशांत किशोर ने पहले से ही कह रखा है कि अगले 10 साल वो बिहार में ही रहेंगे और वहीं जमीनी स्तर पर काम करेंगे। जेडीयू ज्वाइन करने के साथ ही प्रशांत किशोर के लिए लोक सभा सीट की भी अटकलें शुरू हो गयी थीं। कुछ लोग इसे उनके लोकसभा चुनाव नहीं लडऩे से जोड़ कर देख रहे हैं, लेकिन ऐसी कोई शर्त नहीं लगती। प्रशांत किशोर की पहली चुनौती है लोक सभा चुनाव के लिए सीटों को लेकर बीजेपी से डील। उसके बाद हिस्से में आयी ज्यादातर सीटों पर जेडीयू की जीत सुनिश्चित करना। यही वो चीज है जो जेडीयू के भविष्य की नींव होगी। वैसे जेडीयू के भविष्य में क्या-क्या हो सकता है? नीतीश कुमार ने जेडीयू को लेकर किस तरह के भविष्य की कल्पना कर रखी होगी? एक बारगी तो बिहार में जेडीयू की पकड़ मजबूत होना और दिल्ली में कोई बड़ी भूमिका। बताने के लिए अभी जेडीयू के नेता ही राज्य सभा के उपसभापति हैं - हरिवंश नारायण सिंह। ऐसा भी तो हो सकता है कि नीतीश कुमार जेडीयू का भविष्य इस रूप में भी देखते हों कि उसका नेता कभी देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर भी बैठे? अब वक्त इतना कम है कि चुनाव से पहले तो ऐसा नहीं लगता - मगर, क्या पता चुनाव बाद कैसी परिस्थितियां हों? ये तो जेडीयू के बतौर राजनीतिक दल भविष्य की बात हुई। वैसे नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को भविष्य बताकर कोई और संकेत देने की कोशिश तो नहीं की थी। वैसे और संकेत क्या हो सकते हैं? क्या प्रशांत किशोर आगे चल कर नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी हो सकते हैं? ये ठीक है कि जेडीयू और नीतीश कुमार को 2015 में जीत दिलाकर प्रशांत किशोर ने पार्टी कार्यकर्ताओं के दिल में अपनी जगह बना ली है, लेकिन राजनीति में दिल से ज्यादा दिमाग में जगह बनाना जरूरी होता है। - विनोद बक्सरी
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