02-Aug-2018 08:14 AM
1234800
उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ सपा-बसपा गठबंधन में अब कांग्रेस और रालोद के शामिल होने की राह बन गई है। बसपा, सपा, कांग्रेस व रालोद मिल कर हर सीट पर संयुक्त प्रत्याशी देंगे। लोकसभा चुनाव में भाजपा को इसके जरिए तगड़ी चुनौती मिल सकती है। कौन दल कितनी सीटों पर लड़ेगा? इस पर अंतिम निर्णय होना बाकी है। बताते हैं तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बसपा समझौते को लेकर अभी बात बन नहीं पाई है। इस कारण भी यूपी में सीटों के बंटवारे को फैसला नहीं हो पा रहा है। पर, बताया जा रहा है कि बसपा 40 के आस पास सीटें चाहती है और बाकी सीटें सपा, कांग्रेस, रालोद को देने को तैयार है। अब बाकी 40 में सपा को अपनी सीटें कम कर कांग्रेस व रालोद को उनकी स्थिति के हिसाब से सीटें देनी होंगी। सपा अगर 30 पर लड़ती है तो 10 सीटे कांग्रेस व रालोद को दी जा सकती हैं। बताते हैं कि रालोद को कैराना, बागपत व मथुरा सीट मिल सकती है। अब कांग्रेस को 8 सीटों के लिए तैयार करना मुश्किल होगा। ऐसे में या तो सपा या फिर बसपा अपनी ओर से दो चार सीटें और छोडऩी पड़ेगी। सपा को एक दो सीटें पूर्वांचल में सहयोगी निषाद पार्टी को अपने कोटे से ही देनी है।
सपा बसपा के बीच दुश्मनी का सबब बना गेस्टहाउस कांड को जिक्र यह दल नहीं करते। पर भाजपा इसे ही उछाल कर दोनों दलों के लिए बेचैनी पैदा करने को कोशिश करेगी। सपा बसपा दोनों की राहे तब अलग हो गईं जब 2 जून 1995 को लखनऊ के मीराबाई मार्ग राजकीय गेस्ट हाउस में ठहरी मायावती पर अराजक सपाइयों ने हमला करने की कोशिश की। बसपा सुप्रीमो मायावती लोकसभा चुनाव में यूपी में बन रहे गठबंधन में सम्मानजनक सीटें देने की बात कह चुकी हैं जबकि सपा मुखिया अखिलेश कह चुके हैं कि गठबंधन बनाने के लिए वह कुर्बानी देने को तैयार हैं।
वस्तुत: गठबंधन का पूरा दारोमदार मायावती पर टिका है, कुछ दिन पहले पार्टी नेताओं की बैठक में उनका रुख भी नरम दिखा है। अपने नेताओं को गठबंधन पर खामोशी बरतने की हिदायत देकर उन्होंने यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह सपा के प्रस्तावों को गंभीरता से ले रही हैैं। इसके पीछे बीते उप चुनावों के परिणाम भी एक प्रमुख कारण हैैं, जिसमें बसपा ने उम्मीदवार नहीं उतारे थे लेकिन उसके सहयोग से फूलपुर, गोरखपुर और कैराना संसदीय क्षेत्र और नूरपुर विधानसभा में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा था। उप चुनावों में मायावती ने कई प्रयोग भी किए थे। फूलपुर और गोरखपुर में जहां उन्होंने प्रत्यक्ष समर्थन दिया था, वहीं कैराना और नूरपुर में परदे के पीछे से एकता को मजबूती दी थी। फिर भी आगे चलकर कुछ पेच फंस सकते हैैं। सूत्रों के अनुसार सीट बंटवारे पर बात अटक सकती है। माना जा रहा है कि रालोद को सपा के खाते में डाला जा सकता है लेकिन, बसपा इस पर भी सहमत होने से पहले मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस से राजनीतिक सौदेबाजी को भी वरीयता देना चाहेगी। इस दिशा में कांग्रेस से चल रही बात कुछ आगे बढ़ी है।
जहां तक सपा का सवाल है तो अखिलेश ने पहले ही यह कह दिया है कि भाजपा के खिलाफ गठजोड़ में यदि उन्हें कुछ नुकसान उठाना पड़ता है, तो वह इसके लिए तैयार हैैं। हाल ही में सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उनको किसी भी दल से गठजोड़ का अधिकार भी दे दिया है। ऐसे में अखिलेश पर ही कांग्रेस, रालोद व अन्य छोटे दलों को संतुष्ट करने की जिम्मेदारी होगी।
पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश की शानदार जीत की बदौलत ही एनडीए को प्रचंड बहुमत मिला था। 80 सीटों में बीजेपी अपने सहयोगी अपना दल के साथ 73 सीटें जीत ली थी। इसमें दो सीटें अपना दल की हैं। ऐसे में विपक्ष यह चाहता है कि वे यहां महागंठबंधन बना कर भाजपा को मात देें और अधिक से अधिक सीटें जीत लें। सूत्रों का कहना है कि बीते सप्ताह विपक्षी के बड़े नेता व एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने बसपा प्रमुख मायावती से मुलाकात की। इस भेंट में भी विपक्षी एकता और कुछ महीने में तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में गंठबंधन की संभावनाओं पर बात हुई
मुस्लिम, दलित और पिछड़ा वोट क्या एकजुट होगा
इन चारों दलों के साथ आने से एक ओर मुस्लिम वोटों में बटवारा नहीं हो पाएगा और महागठबंधन के प्रत्याशी के पक्ष में जाने से भाजपा के लिए चुनौती बढ़ेगी। दलित वोट हालांकि एकजुट रहता है और मायावती इस अपने वोट बैंक को आसानी से ट्रांसफर करा लेती रही हैं। हाल के गोरखपुर, कैराना व फूलपुर के चुनाव में बसपा की इसी खूबी के चलते सपा रालोद प्रत्याशियों की जीत हुई। पर, सपा का पिछड़ा व अति पिछड़ा वोट कितना बसपा प्रत्याशी को जा सकता है, यह अभी साबित होना है। बसपा सुप्रीमो मायावती लोकसभा चुनाव में यूपी में बन रहे गठबंधन में सम्मानजनक सीटें देने की बात कह चुकी हैं जबकि सपा मुखिया अखिलेश कहा चुके हैं कि गठबंधन बनाने के लिए वह कुर्बानी देने को तैयार हैं। उधर, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें मजबूत कर रही भीम आर्मी से घबराई हुई हैं। दलितों के भीम आर्मी से जुडऩे और भीम आर्मी के सदस्यों द्वारा दलित हितों में आंदोलन करने से बसपा का कैंडर वोट उससे फिसलने का खतरा मायावती को दिखाई दे रहा है। इसलिए उन्होंने भीम आर्मी को अभी से भाजपा और आरएसएस की उपज करार दिया है।
-संजय शुक्ला