21 को हल्लाबोल
21-May-2018 08:41 AM 1234850
मप्र में विधानसभा चुनाव की आहट होते ही आंदोलनों की श्रृंखला शुरू हो गई है। सरकारी कर्मचारियों के साथ ही किसानों ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। राजधानी भोपाल में अपनी समस्याओं को लेकर शक्ति प्रदर्शन करने के लिए भारतीय किसान सेना ने इंदौर से पदयात्रा शुरू कर दी। 14 मई को राजवाड़ा से किसानों का एक जत्था भोपाल के लिए रवाना हुआ। पदयात्रा 21 मई को भोपाल में सीएम हाउस पर खत्म होगी। यहां सीएम को ज्ञापन दिया जाएगा। किसान सेना के जिलाध्यक्ष जगदीश रावलिया ने बताया कि पिछले साल किसान आंदोलन के दौरान किए गए वादे सीएम से पूरा करने को कहा जाएगा। इसमें फसलों की सही कीमत के साथ टीएनसीपी एक्ट के विधिमान्यकरण की विसंगति को हटाने, कर्ज माफी, भावांतर योजना में सरकारी रेट लागू करने, सीलिंग की जमीन लौटाने जैसे मुद्दे शामिल हैं। वहीं दूसरी तरफ किसानों की कर्ज माफी को लेकर भारतीय किसान यूनियन ने 1 जून से हड़ताल का ऐलान किया है। पिछले किसान आंदोलन की तरह इस बार भी किसान पूरी तरह असहयोग आंदोलन के रास्ते पर रहेंगे। ना तो बाजार में कोई सामान बेचेंगे और ना ही खरीदेंगे। बताया जाता है कि कांग्रेस भी अंदरूनी तौर पर इस आंदोलन को हवा दे रही है। उधर देशभर के कई किसान संगठन इस आंदोलन की रणनीति बनाने में जुट गए हैं। भारतीय किसान यूनियन ने कहा है कि प्रदेश का किसान कर्ज के जाल में बुरी तरह फंसा हुआ है और आए दिन आत्महत्या कर रहा हैं। इसीलिए यूनियन ने सरकार को घेरने की रणनीति तैयार की है। इसके तहत पूर्णत: कर्ज माफी और फसलों के लाभकारी मूल्य देने की मांग को लेकर 1 जून से गांव बंद-काम बंद आंदोलन शुरू किया जा रहा है। जब तक सीएम कर्ज माफी और लाभकारी मूल्य दिलाने की घोषणा नहीं करते, आंदोलन जारी रहेगा। किसान यूनियन ने कहा कि इस बार आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण तरीके से चलेगा। इस दौरान ना तो रैली निकाली जाएगी और ना ही धरना-प्रदर्शन होगा। किसान बस घर बैठकर आराम करेंगे। यदि इस दौरान कहीं शांति भंग की घटना होती है, वह आंदोलनकारी नहीं बल्कि गुंडा होगा। उसके खिलाफ पुलिस-प्रशासन अपने तरीके से कार्रवाई करे। यूनियन ने कहा कि बंद के दौरान किसान अपना कोई भी उत्पाद ना तो शहर की किसी मंडी या फुटपाथ पर बेचने जाएंगे और ना ही शहर से कोई सामान खरीदेंगे। किसी को कोई भी सामान दूध, सब्जी, फल-फूल या अनाज चाहिए तो गांव आकर लेना होगा। किसान सामानों का दाम खुद तय करेंगे और कोई भी सामान सस्ता नहीं बेचा जाएगा। एक साल बाद फिर आग... पिछले साल जून में ही किसान आंदोलन ने पूरे प्रदेश को हिला दिया था। किसानों ने जो कहा था, वह किया था और दूध, सब्जी और सभी तरह की फसलों की आवक रोक दी थी। एक पखवाड़े तक जो हाहाकर मचा था, वह अब भी लोगों के जेहन में ताजा है। ठीक एक साल बाद फिर इसी की पुनरावृत्ति होने जा रही है। भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष बबलू जाधव ने किसानों से अपील की है कि वे छुट्टी मनाएं और शहर की ओर आना-जाना बंद कर दें। गांव में ही भंडारे, भजन-कीर्तन करें। इस अपील को किसानों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया और गांव-गांव जाकर समझाइश से काम लिया जा रहा है। देश के लगभग 90 किसान संगठन एकजुट होकर बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। ये अनोखा गांव बंद आंदोलन होगा जिसमें किसान न तो कोई उपज या फसल बाजार या मंडी बेचने जाएंगे, न शहर से कोई व्यापारी गांव में माल बेचने आ पाएगा। किसान दूध, अनाज, फल, सब्जी सबकी आपूर्ति ठप करने वाले हैं। राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा कहते हैं कि किसान आंदोलन के लिए सरकार ही जिम्मेदार है। प्रदेश सरकार ने किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई है। इसलिए प्रदेश में खेती किसानी घाटे का सौदा बनती जा रहा है। जिन किसानों के कारण सरकार को पुरस्कार मिल रहे हैं वे किसान बदहाली में हैं। ऐसे में आंदोलन ही एक मात्र रास्ता है। -रजनीकांत पारे
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