01-Nov-2017 08:12 AM
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बचपन में चोर-सिपाही का खेल हर किसी ने खेला होगा, इसमें सिपाही द्वारा चोर को पकडऩे की हर संभव कोशिश की जाती है और चोर पीछे से सिपाही पर थप्पा (हाथ के पंजे से वार) मारता है, मगर इन दिनों मध्य प्रदेश में बदमाश पुलिस को सिर्फ थप्पा नहीं मार रहे हैं, बल्कि पीट रहे हैं और हत्या तक कर दे रहे हैं। राज्य में बीते कुछ दिनों के दौरान बदमाशों ने चार स्थानों पर पुलिस जवानों पर हमले किए हैं, उनमें से एक मामले में तो जवान की जान तक चली गई। ये घटनाएं इशारा कर रही हैं कि राज्य में खाकी का खौफ कम हो चला है और बदमाश पूरी तरह बेखौफ हो गए हैं।
हाल में हुई घटनाओं पर गौर किया जाए, तो छतरपुर के कोतवाली थाना क्षेत्र में जुआरियों को पकडऩे गए पुलिस जवान बाल मुकुंद प्रजापति को बदमाशों ने गोली मार दी, जिससे वह शहीद हो गए। इसके अलावा बड़वानी के ओझर चौकी के कुकुड़वा बेड़ा गांव में बदमाशों को पकडऩे गए जगदीश वासले पर उन लोगों ने हमला कर दिया, जिसमें जगदीश घायल हो गया। इन दो घटनाओं के बाद तीसरी घटना झाबुआ जिले के कल्याणपुरा थाने के अतरवेलिया में हुई, जहां बदमाशों ने पुलिस जवान जगदीश मेरावत पर धारदार हथियार से हमला कर उनका एक हाथ काट दिया। उनका इलाज चल रहा है। चिमनगंज थाने के जवान आत्माराम पर अज्ञात लोगों ने हमला कर दिया। इतना ही नहीं, डायल 100 की गाड़ी में तोडफ़ोड़ भी की गई। ये घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि राज्य में बदमाशों का दबदबा है और वे पुलिस तक को नहीं बख्श रहे हैं। इन घटनाओं को लेकर राज्य के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह का अपना ही तर्क है। उनका कहना है, कई बार पुलिस को अपराधियों की संख्या का अनुमान नहीं होता, और इसी बात का बदमाश लाभ उठाते हैं। पुलिस बल के जवानों के वहां कम संख्या में पहुंचने पर बदमाश उन पर हमला बोल देते हैं। पुलिस इन हालात से कैसे निपटे, इसकी कार्ययोजना बनाई जा रही है।
दरअसल पुलिस का नैतिक पतन तेजी से हो रहा है। इस कारण अपराधियों के बीच उनकी हनक कम होती जा रही है। अभी हाल ही में जबलपुर हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई में दुख व्यक्त करते हुए कहा कि हिन्दुस्तान का दुर्भाग्य कि पुलिस को कंट्रोल करने कोई पुलिस नहीं है। मामला कहीं और का नहीं बल्कि राजधानी भोपाल का था। अपहरण करने के बाद एक युवती का धर्म परिवर्तन कराकर उससे निकाह कराने के मामले पर हाईकोर्ट ने जमकर पुलिस की बखिया उधेड़ी। दरअसल 3-3 शिकायतें देने के बाद भी युवती की फरियाद पर भोपाल के बैरागढ़ थाना पुलिस द्वारा की गई लीपापोती पर जस्टिस रोहित आर्या की एकलपीठ ने कड़ी नाराजगी जताई।
यह पहला मामला नहीं है जब कोर्ट ने पुलिस की कार्यप्रणाली को कटघरे में खड़ा किया है। दरअसल पुलिस अपने नैतिक पतन के कारण लोगों के आक्रोश का शिकार हो रही है। समाज की रक्षक मानी जाने वाली पुलिस का हाल ऐसा क्यों हो रहा है, यह सरकार और पुलिस अफसरों के लिए समीक्षा का विषय बन गया है। वाकई यह चिंताजनक विषय है क्योंकि कुछ वर्ष पहले लोग पुलिस का नाम सुनकर सहम जाते थे आज वे पुलिस पर हाथ उठाने से भी नहीं हिचकते।
तीन साल बाद बाजू पर दिखेगा पुलिस का मोनो
पुलिस की वर्दी के पहचान चिह्न मोनो हटाने के तीन साल पुराने निर्देश को निरस्त कर दिया गया है। अब फिर से पुलिस अधिकारी और कर्मचारियों को वर्दी में दाएं बाजू में पुलिस का मोनो लगाना होगा। इस आशय का आदेश प्रदेश के डीजीपी ने जारी किए हैं। डीजीपी का आदेश एक नवंबर से पूरे प्रदेश में प्रभावी होगा। राजपत्रित अधिकारियों के लिए नीले रंग के टेरीकाट के कपड़े पर सफेद जरी धागे से तैयार किया गया मोनो, वर्दी के बाए बांह पर स्टिच बटन वेलक्रो से लगाया जाएगा। वहीं आरक्षकों, प्रधान आरक्षक, उप निरीक्षकों व उनसे वरिष्ठ अराजपत्रित अधिकारियों के लिए नीले रंग के टेरीकाट के कपड़े पर रेशमी धागे से कढ़ाई द्वारा तैयार मोनो, वर्दी के बाएं बांह पर सिलाई किया जाएगा।
-कुमार राजेंद्र