03-Apr-2017 08:44 AM
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कुछ दिनों से लोग मुझे कुछ सिरफिरा समझने लगे है। सबको शिकायत है कि शहर में एक नामी संत के प्रवचन का आयोजन चल रहा है और मैं अपने घर पर ही पड़ा रहता हूं। अधर्मी व्यक्तियों के लिए जितने भी विशेषण हो सकते है उन सभी से वे मुझे सम्मानित कर चुके है। एक दिन मैंने भी तय कर ही लिया कि जब पूरे शहर के कुछ पुरुष एवं बहुत-सी महिलाएं वहां जाते हैं तो मैं भी अपनी जन्मपत्री में ठोकर मार ही दूं। जितना बड़ा पंडाल एवं धन उस प्रवचन के आयोजन के लिए लगाया गया था उसके अन्दर तो सैंकड़ों गरीब एवं मध्यमवर्गी जोड़ों के सामूहिक विवाह का आयोजन सम्पन्न हो सकता था। संत जी जन समुदाय को जो बातें बता रहे थे सभी लोग उन बातों को अनेक बार सुन चुके थे तथा सब कुछ जानते हुए भी इस तरह सुनने में व्यस्त थे जैसे पहली बार ही सुन रहे हो। उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण रहस्योद्घाटन किया कि ये जीवन दो दिन का है। मैंने अपने पास में बैठे एक सज्जन से पूछा, भाई साहब क्या जीवन वास्तव में दो दिन का ही है?Ó
वे बोले, हाँ जब ये कह रहे हैं तो दो दिन का ही होगा।Ó
मैंने पूछा, इनका ये कार्यक्रम कितने दिन और चलेगा?Ó
वे बोले, सात दिन।Ó
पर जीवन तो दो ही दिन का है, बाकी पांच दिन का क्या होगा?
वे बोले, दो दिन का मतलब दो दिन नहीं होता ज्यादा होता है।Ó
मैंने पूछा, कितना होता है?Ó
वे बोले, इसका किसी को पता नहीं वो तो कहने के लिए दो दिन का होता है मानने के लिए नहीं।Ó
जब इनकी बाते सिर्फ कहने के लिए ही हैं मानने के लिए नहीं तो फिर सुनने से क्या लाभ?Ó
हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश तो जिन्दगी में लगा ही रहता है। यहां तो सब सुनने के लिए ही आते हैं यदि उन बातों पर अमल करेंगे फिर तो सभी संत नहीं हो जाएंगे।Ó
मुझे उनकी बातें संत की बातों से अधिक प्रभावशाली लग रहीं थीं।
मैंने उनका पीछा नहीं छोड़ा, पर एक और दूसरे संत हैं वो तो कहते हैं कि दो दिन का तो जग में मेला होता है और चार दिन की जवानी होती है।Ó
वो गलत कह रहे हैं। कहने वाले तो जीवन और मेले को भी चार दिनों का भी कह सकते हैं और दस दिन का भी। खुद हमारे शहर में मेला पन्द्रह दिन का होता है। कई लोग तो चांदनी भी चार दिन की बताते हैं पर होती कहां है। अभी इस संत का प्रवचन चल रहा है तो जीवन दो दिन का ही मानना पड़ेगा दूसरे संत का चलेगा तो वे जितने दिन का कहेंगे उतने दिन का मान लेंगे।Ó
दूसरे संत दो दिन का मेला क्यों बताते हैं?Ó मैंने फिर पूछा।
ये दूसरे संत जो दो दिन का मेला बता रहे हैं क्या इन संत से बड़े हैं।Ó
अब संत तो संत ही होता है उसमें क्या बड़ा और क्या छोटा।Ó
वाह ऐसे कैसे बड़ा छोटा नहीं होता है। क्या उनके लंबी-लंबी दाढ़ी है? क्या वे सिर्फ धोती ही पहनते हैं और नंगे बदन रहते हैं? क्या बहुत-सी साध्वियां उनके साथ-साथ चलती है? क्या वे हवाई जहाज से यात्रा करते हैं? क्या उनके फोटो महलों से शौचालयों तक लगे रहते हैं? क्या बड़े-बड़े नेता भी उनसे आशीर्वाद लेने आते हैं? क्या उनके बड़े-बड़े आश्रम हैं? यदि ये सब विशेषताएं उनमें हैं तभी वे बड़े संत कहलाएंगे।Ó
नहीं वे दूसरे संत तो साधारण कपड़े ही पहनते है लेकिन है बहुत ज्ञानी।Ó
काहे के ज्ञानी। संत होने के लिए तो गैटअप भी तो संत जैसा होना चाहिए नहीं तो कौन उनको संत मानेगा। खाली ज्ञान या विद्वान होने से ही कोई संत थोड़े ही हो जाएगा।Ó
लेकिन हम गलत बात क्यों मानें कि जीवन दो दिन का है?Ó
नहीं मानोगे तो उनके भक्त तुम्हारे घर में तोड़-फोड़ कर देंगे और यदि उनको ज्यादा गुस्सा आ गया तो तुम्हारी हत्या भी कर सकते है। संतों की बातों का अनुसरण उनके अनुयायियों के लिए करना आवश्यक नहीं है फिर तुम्हें पता चल जाएगा कि तुम्हारा जीवन भी दो ही दिनों का था। उनके सामने बड़े-बड़े सूरमा भी कुछ नहीं कर सकते। मैं ही कौन-सा उनकी बात मान रहा हूं। मेरा तो जीवन हर माह की पहली तारीख को शुरू होता है तथा छह सात दिन चलता है उसके बाद तो मरण ही मरण है। कई लोगों का पन्द्रह दिन का हो जाता है। राज नेताओं का चुनाव नतीजे आने के बाद शुरू होता है तथा उनका जीवन जीवनभर या कई-कई पीढिय़ों तक चलता है।
मैंने एक दूसरे सज्जन से जो उन संत का प्रवचन कम और इधर-उधर अधिक देख रहे थे से भी पूछ ही लिया कि क्या उनका जीवन भी दो दिन का ही है।
वे बोले, मेरा जीवन तो इन जैसे संत महात्माओं के प्रवचन के इन कार्यक्रमों के चलते रहने से ही चलता है इस आयोजन में टेन्ट तथा दरी गद्दों का ठेका मेरे ही पास है अब चाहे वो दो दिन का बताएं या दस दिन का। जीवन जितने अधिक दिनों का बताएंगे मेरे लिए तो उतना ही अच्छा है। तुम्हें यदि दो दिन का कम लगता है तो तुम चार दिन का मान लो। तुमने क्या सुना नहीं कि उम्रे दराज मांग के लाए थे चार दिन दो आरजू में कट गए दो इंतजार मेंÓ। इससे तो यही जाहिर होता है कि जीवन दो दिन का हो न हो चार दिन का तो होता ही होगा। बहादुर शाह जफर की आत्मा उनके शरीर में प्रवेश करके बाहर निकल गई थी।
परन्तु कुछ मापदंड तो हो कि जीवन दो या चार दिन का किस हिसाब से है।Ó
वे बोले, मान लीजिए मनुष्य की आयु 100 वर्ष है तो फारमूला यह है कि मनुष्य की आयु को दो से या चार से भाग दीजिए फिर जो भागफल आए उतने वर्ष को एक दिन के बराबर मान लेना चाहिए। वैसे यहां प्रवचन सुनने कुछ ऐसे भी लोग आए हुए है जिनको अपना जीवन पारिवारिक कलह, जमीन जायदाद के झगड़ों, शारीरिक कष्ट, संतान के भविष्य की चिन्ता, बेटे बहुओं के दुराचरण तथा अनेक कठिनाइयों से एक दिन का भी भारी लग रहा है। संत के प्रवचन में जीवन को दो दिन का सुन कर कम से कम वे कुछ समय के लिए संभवत: यह सोचकर खुश तो हो लेते होगे कि चलो अब वो दो दिन करीब ही होंगे जब उनके कष्टों का अन्त होने वाला होगा।
मैं यह सोच कर घर वापस आ गया कि जब जीवन के बारे में ही अलग-अलग मत हैं तो अपना जीवन किसी अच्छे काम में ही क्यों न लगाऊं क्यों कि मेरे हिसाब से तो जीवन का कोई भरोसा नहीं कि वह कितने दिन का हो।
-शरद तैलंग