एक मां की महत्वाकांक्षा का परिणाम साइना नेहवाल
01-Apr-2017 09:54 AM 1234826
भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल अपने लगभग हर साक्षात्कार में एक बात जरूर कहती हैं, मैं अपने माता-पिता अपने कोच और अपने देश के लिए खेलती हूं।Ó कोर्ट से बाहर भी ये तीन चीजें उनके लिए सबसे ज्यादा महत्व रखती हैं। लेकिन, शायद ही कुछ लोग इस बात को जानते हों कि अगर आज साइना जैसी खिलाड़ी देश को मिली है तो इसका सबसे ज्यादा श्रेय उनकी मां ऊषा रानी को जाता है। किसी बच्चे के जन्म के बाद उसकी मां को उसका प्रथम शिक्षक कहा जाता है। लेकिन, साइना के मामले में उनकी मां उनकी प्रथम शिक्षक के साथ-साथ उनकी पहली कोच भी थीं। एक साक्षात्कार में अपने शुरूआती दिनों के बारे में बताते हुए साइना कहती हैं कि उनके पिता हरियाणा के कृषि विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक के पद पर काम करते थे जबकि मां राज्य स्तर की बैडमिंटन खिलाड़ी थीं। उनकी मां का नाम हिसार जिला बैडमिंटन संघ में भी दर्ज है और उन्होंने क्लब स्तर पर भी काफी बैडमिंटन खेला है। साइना के मुताबिक उनकी मां ने उनके जन्म के बाद आधिकारिक तौर पर खेलना छोड़ दिया था। फिर भी वे रोज शाम को शौकिया तौर पर कृषि विश्वविद्यालय के क्लब में बैडमिंटन जरूर खेलने जाया करती थीं। इस दौरान साइना और उनकी बड़ी बहन भी उनके साथ होती थीं। मां के दिमाग में उन्हें एक बड़ा खिलाड़ी बनाने के लक्ष्य के बारे में साइना कुछ भी साफ तौर पर नहीं कहतीं। लेकिन, जिस तरह से उनकी मां ने उन्हें लेकर फैसले लिए या जिस तरह की घटनाएं उनके बचपन में हुईं, उनसे साफ हो जाता है कि मां ने साइना के लिए कुछ बड़ा सोच रखा था। साइना कहती भी हैं कि उनके जीवन के लगभग सभी बड़े फैसले उनकी मां ने लिए और घर में उनकी मां ही सबसे ज्यादा महत्वाकांक्षी भी रहीं। साइना को लेकर उनकी मां की महत्वाकांक्षा का एक अंदाजा इससे भी मिलता है कि उनकी मां ने जन्म से पहले ही उनका नाम स्टेफीÓ रखने के बारे में सोच लिया था। स्टेफी ग्राफ उस समय टेनिस की दुनिया में छाई हुई थीं। साइना बताती हैं कि हिसार में आठ साल की उम्र तक सभी लोग उन्हें इसी नाम से बुलाते थे। इसके बाद जब उनके पिता का तबादला हैदराबाद हो गया तब उन्हें उनके आधिकारिक नाम साइना से बुलाया जाने लगा लेकिन, मां आज भी उन्हें स्टेफी ही बुलाती हैं। 1998 में पिता के तबादले के बाद हैदराबाद पहुंचने पर साइना के पिता को पता चला कि आंध्र प्रदेश खेल प्राधिकरण बैडमिंटन का एक समर कैंप आयोजित करने जा रहा है। उन्होंने आठ वर्षीय साइना को करीब एक महीने के इस कैंप में भेजने का निर्णय लिया। साइना के मुताबिक हैदराबाद में यह कैंप लालबहादुर स्टेडियम में आयोजित होता था, जोकि उनके पिता को मिले सरकारी क्वार्टर से करीब 25 किलोमीटर दूर था। अपनी किताब मेरा रैकेट मेरी दुनियाÓ में वे लिखती हैं कि कैंप पहुंचने के लिए उनकी मां सुबह पांच बजे उठा करती थीं और उन्हें लेकर स्टेडियम जाती थीं। कैंप में उन्हें कई तरह के व्यायाम कराये जाते थे। साथ ही हर रोज चार से पांच किलोमीटर दौड़ाया जाता था। उनकी मां इस ट्रेनिग को करीब से देखती थीं। वे उनकी ट्रेंनिग को लेकर इतनी ज्यादा गंभीर थीं कि अक्सर वे उनके कोचों को भी समझाने लगती थीं। साइना की मां ट्रेनिंग के बाद घर पर भी उन्हें जमकर अभ्यास और व्यायाम कराती थीं। साइना यह भी लिखती हैं कि एक महीने बाद इस समरकैंप की समाप्ति पर इसमें शामिल हुए सभी बच्चों में से एक को आगे की ट्रेंनिग के लिए चुने जाने की बात कही गई। इसके लिए उनका चयन किया गया। उनके मुताबिक कैंप के दौरान उन्हें लगता था कि मम्मी ने सिर्फ गर्मी की छुट्टियों की वजह से उन्हें इस कैंप में भेजा है। लेकिन, उनकी मां उनके खेल को लेकर काफी ज्यादा गंभीर थीं और उन्होंने स्कूल खुलने के बाद भी उनकी ट्रेनिंग को जारी रखने का फैसला किया। साइना के करीबियों की मानें तो समर कैम्प में साइना के शानदार प्रदर्शन से उनकी मां समझ चुकी थीं कि उनकी बेटी लंबी रेस का घोड़ा साबित होने की काबिलियत रखती है। आगे बढऩे की शक्ति मां से मिली 2015 में विश्व की नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी बनने का गौरव हासिल कर चुकी साइना नेहवाल मानती हैं कि उनमें सपने देखने और आगे बढऩे की इच्छा शक्ति भी मां के कारण ही आई। एक घटना का जिक्र करते हुए बताती हैं कि जब वे 10 साल की थीं तब उन्होंने पहली बार अपनी मां से पूछा था कि दुनिया के सबसे अच्छे बैडमिंटन खिलाड़ी और उनमें क्या अंतर है ? तब उनकी मां ने उनकी आंखों में आंखें डालकर उनसे कहा था कि उनकी मेहनती बेटी से कोई कैसे अच्छा हो सकता है। -आशीष नेमा
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