18-Jul-2016 08:50 AM
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बांग्लादेश पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी हो गया है लेकिन भारत के लिए वह आंतक का जाग्रत ज्वालामुखी बना है। भारत के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसके पूरब और पश्चिम में आतंक बढ़ रहा है तो उत्तर में चीन इन्हें सहायता दे रहा है। ऐसे में भारत की स्थिति दांतों के बीच में जीभ जैसी हो गई है, जिस पर हर समय खतरा मंडरा रहा है। यह खतरा तब और बढ़ रहा है जब बांग्लादेश में इस्लामी चरमपंथ खूंखार होते जा रहा है। बांग्लादेश में आतंकी घटनाओं क साथ इस्लामी चरमपंथियों ने जिस तरह अनेक धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और हिंदू पुजारियों की हत्या की है। ये घटनाएं बांग्लादेश में सियासी ताकतों के लगातार तीखे और हिंसक होते धु्रवीकरण की मिसाल हैं।
इस्लामी चरमपंथियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से देश के प्रमुख विपक्षी दल- बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी- का समर्थन है। इस दल ने पिछले आम चुनाव का बहिष्कार किया। नतीजतन, प्रधानमंत्री शेख हसीना की आवामी पार्टी की एकतरफा जीत हुई। लेकिन उस विजय की वैधता संदिग्ध है। इससे देश में असंतोष और मायूसी का माहौल पिछले कई वर्षों से मौजूद है। शेख हसीना ने इस्लामी चरमपंथियों के खिलाफ सख्त कदम तो उठाए हैं, लेकिन ऐसी ताकतों का फैलाव इतना ज्यादा है कि उनकी कार्रवाइयां अपर्याप्त साबित हुई हैं। इन्हीं हालात के बीच आईएस की जड़ें वहां मजबूत हुई हैं उसके अलावा अल-कायदा इन इंडियन सब-कॉन्टीनेंट, हरकत-उल-जिहाद-अल इस्लामी (हूजी), जमात-उल-मुजाहिदीन, अंसार-अल-इस्लाम, रोहिंग्या विद्रोही गुट जैसे आतंकी गुट काफी सक्रिय हैं। इन कट्टरपंथी गुटों ने बांग्लादेश को इस्लामिक देश बनाने की ठानी हुई है। सरकार और इन गुटों का टकराव देश को गृह युद्ध जैसी स्थिति में ले जा रहा है। ये सूरत भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है। पश्चिम बंगाल और असम की लंबी सीमा बांग्लादेश से मिलती है। वहां से घुसपैठ आम बात रही है। साफ है, बांग्लादेश में बनती स्थितियों से भारत प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होगा। भारतीय अधिकारियों के बयानों से साफ है कि वे इस खतरे से परिचित हैं। लेकिन इसके मद्देनजर भारत सरकार की तैयारी क्या है, देश यह जानना चाहता है। इस बारे में आमजन को भरोसे में लिया जाना चाहिए।
बांग्लादेश की जिहादी प्रयोगशाला अब वैश्विक हो गई है। यदि पश्चिम के देश इराक-सीरिया में इस्लामी स्टेट के लड़ाकों को नेस्तनाबूद करते है तो बांग्लादेश नया सीरिया बनने का तैयार है। हां, ऐसा संभव है। उत्तर अफ्रिका से लेकर इंडोनेशिया की मुस्लिम देशों की जमात में बांग्लादेश एक ऐसा देश है जो कई कारणों से इस्लामी कट्टरपंथ की सर्वाधिक उर्वर जमीन है। वहां पिछले दस सालों का ट्रेंड है कि चुनाव में भले कट्टरपंथी हारते गए हो लेकिन इस्लामी उग्रवाद लगातार पसरा है। अफगानिस्तान और बांग्लादेश में फर्क यह है कि कबीलाई तासीर वाले अफगानिस्तान में तालिबानी स्थाई फीचर है और उनसे पश्चिम खुद भिड़ रहा है वहीं बांग्लादेश की प्रयोगशाला ऐसी है जिसमें कट्टरपंथी मौलाना आबादी को धीमी आंच पर कट्टरपंथी कड़ाव में ऐसे पका रहे हैं कि दुनिया शक नहीं करें और जिहादी तैयार होते जाए। बांग्लादेश के नेताओं ने अपने राष्ट्र-राज्य को बिना लक्ष्य का बना रखा है। आबादी तेजी से बढ़ रही है तो गरीबी और बेरोजगारी ऐसी विकट है कि नौजवानों के पास कट्टरपंथियों की तरफ खींचे चले जाने के अलावा कोई काम नहीं है। न इन पर कोई नजर रखने वाला है और न कोई रोकने वाला। सो वक्त का तकाजा है कि भारत दक्षिण एशिया में सभी संभव देशों के साथ आंतकी गतिविधियों पर नजर रखने, साझा कार्रवाई करने के बंदोबस्तों का कोई नया खांका बनाए। बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव, म्यंमार से ले कर श्रीलंका के साथ आंतक विरोधी एलायंस बनना चाहिए जिसमें खुफियाई नजर, सूचनाओं को लेने-देने, संकट के वक्त एकजुट आपरेशन के स्थाई उपाय हो। ध्यान रहे मालदीव से इस्लामी स्टेट के लिए नौजवानों के जाने से ले कर श्रीलंका, म्यंमार में कट्टरपंथी गतिविधियों की खबरे बढ़ रही है। इस सबमें लीडरशीप देने का दारोमदार भारत पर है। इसलिए भी उसे ही सर्वाधिक खतरा भी है।
इस्लामी आंतकियों के लिए बांग्लादेश खुला मैदान
इस्लामी आंतकियों के लिए बांग्लादेश खुला मैदान है। पाकिस्तान में सेना ने कबीलाई क्षेत्र और मदरसों से ले कर लाल मसजिद आदि में जो कार्रवाई की वैसा कुछ करने की बांग्लादेश सरकार में न सोच है, न हिम्मत है और न ताकत। उस नाते बांग्लादेश की व्यवस्था, सरकार और उसके तानेबाने का कुल अर्थ पिलपिलापन है। प्रधानमंत्री हसीना वाजेद, उनकी पार्टी और लौकतंत्र में भरोसा रखने वाले तमाम नेता पिलपिले है। इनके बस में इस्लामी स्टेट की बर्बरता से निपट सकना संभव नहीं है। यदि यह स्थिति लगातार बनी रही, बांग्ला व्यवस्था को दुनिया ने सख्त, चुस्त और निर्मम नहीं बनाया तो बांग्लादेश में खलीफाई स्टेट का जिन्न वैसे ही अचानक फूट पड़ेगा जैसे इराक-सीरिया के इलाकों में फूटा था। पाकिस्तान में यह भले बाद में हो लेकिन बांग्लादेश में यह पहले इसलिए संभव है क्योंकि उसका पूरा तंत्र खोखला और पिलपिला है। उसकी सेना पाकिस्तान जैसी नहीं है। न ही अमेरिका और पश्चिमी देश उस पर वैसे नजर रखते है जैसे पाकिस्तान पर रखते है। एटमी जखीरे और अफगानिस्तान के चलते पाकिस्तान पर दुनिया की नजर है जबकि बांग्लादेश के प्रति बेखबरी है। सो भारत का संकट गंभीर है। भारत दोनों दिशा से, दोनों तरफ से घिरा हुआ है।
-अनूप ज्योत्सना यादव