वास्तुशास्त्र में भवन और जल
16-Apr-2013 06:56 AM 1234981

वास्तुशास्त्र वर्तमान काल में व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जब से हमारे समय के लोगों ने वास्तुशास्त्र के बारे में जाना है तब से वास्तुशास्त्र का भवन बनाने में बहुतायत से इस विद्या का प्रयोग किया जाने लगा है इस बारे में कोई दो राय नहीं है कि यदि भवन निर्माता वास्तुशास्त्र का अध्ययन करके या किसी वास्तुशास्त्र के मूर्धन्य विद्धान से परामर्श कर के अपने भूखंड पर भवन का निर्माण कराये तो वह व्यक्ति अपने जीवन में कहीं अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है नहीं तो अशास्त्रीय ढंग से भवन का निर्माण जीवन में संघर्षों को निमंत्रण देता है। कर्म और भाग्य महत्वपूर्ण हैं परन्तु वास्तुशास्त्र की भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
मकान में पानी का स्थान सभी मतों से ईशान से प्राप्त करने को कहा जाता है और घर के पानी को उत्तर दिशा में घर के पानी को निकालने के लिये कहा जाता है,लेकिन जिनके घर पश्चिम दिशा की तरफ अपनी फेसिंग किये होते है और पानी आने का मुख्य स्रोत या तो वायव्य से होता है या फिऱ दक्षिण पश्चिम से होता है,उन घरों के लिये पानी को ईशान से कैसे प्राप्त किया जा सकता है,इसके लिये वास्तुशास्त्री अपनी अपनी राय के अनुसार कहते हैं कि पानी को पहले ईशान में ले जायें।
पानी के प्रवेश के लिये अगर घर का फेस दक्षिण में है तो और भी जटिल समस्या पैदा हो जाती है, दरवाजा अगर बीच में है तो पानी या तो दरवाजे के नीचे से घर में प्रवेश करेगा, या फिर नैऋत्य से या अग्नि से घर के अन्दर प्रवेश करेगा,अगर अग्नि से आता है तो कीटाणुओं और रसायनिक जांच से उसमें किसी न किसी प्रकार की गंदगी जरूर मिलेगी, और अगर वह अग्नि से प्रवेश करता है तो घर के अन्दर पानी की कमी ही रहेगी और जितना पानी घर के अन्दर प्रवेश करेगा उससे कहीं अधिक महिलाओं सम्बन्धी बीमारियां मिलेंगी। पानी को उत्तर दिशा वाले मकानों के अन्दर ईशान और वायव्य से घर के अन्दर प्रवेश दिया जा सकता है,लेकिन मकान बनाते समय अगर पानी को ईशान में नैऋत्य से ऊंचाई से घर के अन्दर प्रवेश करवा दिया गया तो भी पानी अपनी वही स्थिति रखेगा जो नैऋत्य से पानी को घर के अन्दर लाने से माना जा सकता है। पानी को ईशान से लाते समय जमीनी सतह से नीचे लाकर एक टंकी पानी की अण्डर ग्राउंड बनवानी जरूरी हो जायेगी, फिर पानी को घर के प्रयोग के लिये लेना पड़ेगा और पानी को वायव्य से घर के अन्दर प्रवेश करवाते हैं तो घर के पानी को या तो दरवाजे के नीचे से निकालना पड़ेगा या फिर ईशान से पानी का बहाव घर से बाहर ले जायेंगे, इस प्रकार से ईशान से जब पानी को बाहर निकालेंगे तो जरूरी है कि पानी के प्रयोग और पानी की निकासी के लिये ईशान में ही साफ-सफाई के साधन गंदगी निस्तारण के साधन प्रयोग में लिये जानें लगेंगे। जो पानी की आवक से नुकसान नही हुआ वह पानी की गंदगी से होना शुरु हो जायेगा।
पूर्व मुखी मकानों के अन्दर पानी को लाने के लिये ईशान को माना जाता है,दक्षिण मुखी मकानों के अन्दर पानी को नैऋत्य और दक्षिण के बीच से लाना माना जाता है,पश्चिम मुखी मकानों के अन्दर पानी को वायव्य से लाना माना जाता है,उत्तर मुखी मकानों के अन्दर भी पानी ईशान से आराम से आता है,इस प्रकार से पानी की समस्या को हल किया जा सकता है। जिन लोगों ने पानी को गलत दिशा से घर के अन्दर प्रवेश दे दिया है तो क्या वे पानी की खातिर पूरी घर की तोड़ फोड़ कर देंगे, मेरे हिसाब से बिलकुल नहीं, इस प्रकार की कभी भूल ना करे, कोई भी कह कर अपने घर चला जायेगा लेकिन एक एक पत्थर को लगाते समय जो आपकी मेहनत की कमाई का धन लगा है वह आप कैसे तोड़ेंगे,उसके लिये केवल एक बहुत ही बढिय़ा उपाय है कि नीले रंग के प्लास्टिक के बर्तन में नमक मिलाकर पानी को घर के नैऋत्य में रख दिया जाये,और इतनी ऊंचाई पर रखा जाये कि उसे कोई न तो छुये और न ही उसे कभी बदले, उस बर्तन का ढक्कन इतनी मजबूती से बन्द होना चाहिये कि गर्मी के कारण पानी का आसवन भी नहीं हो, अगर ऐसे घरों में पानी की समस्या से दुखी है तो यह नमक वाला पानी रख कर देंखे,आपको जरूर फ़ायदा मिलेगा, इसके अलावा घर के वायव्य में ईशान में, पूर्व में नैऋत्य और दक्षिण के बीच में एक्वेरियम स्थापित कर दें तो भी इस प्रकार का दोष खत्म हो जाता है।
शास्त्रों के अनुसार भवन में जल का स्थान ईशान कोण (नॉर्थ ईस्ट) में होना चाहिए परन्तु उतर दिशा,पूर्व दिशा और पश्चिम दिशा में भी जल का स्थान हो सकता है परन्तु आग्नेय कोण में यदि जल का स्थान होगा तो पुत्र नाश,शत्रु भय और बाधा का सामना होता है दक्षिण पश्चिम दिशा में जल का स्थान पुत्र की हानि,दक्षिण दिशा में पत्नी की हानि, वायव्य दिशा में शत्रु पीड़ा और घर का मध्य में धन का नाश होता है। वास्तु शास्त्र में भूखंड के या भवन के दक्षिण और पश्चिम दिशा की और कोई नदी या नाला या कोई नहर भवन या भूखंड के समानंतर नहीं होनी चाहिए परन्तु यदि जल का बहाव पश्चिम से पूर्व की और हो या फिर दक्षिण से उतर की और तो उतम होता है।
पंडित ब्रह्मचार्य

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