आत्महत्या का सफेद झूठ
23-May-2016 08:16 AM 1234835
नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या करने वाले प्रदेशों में मध्यप्रदेश तीसरे स्थान पर है। लेकिन यहां अफवाहों का बाजार इस कदर गर्म है कि यहां हर घटना को आत्महत्या से जोड़ा जाने लगा है। हद तो यह है कि अब गलत आंकड़े परोसकर प्रदेश की छवि भी खराब की जा रही है। खासकर आदिवासी क्षेत्र ऐसे लोगों के निशाने पर हैं। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में किसानों या ग्रामीणजनों की स्थिति सुदृढ़ है। लेकिन उनकी बदहाली और उसके बाद आत्महत्या के आंकड़े जिस तरह परोसे जा रहे हैं वह चिंतनीय है। अभी हाल ही में खरगोन जिले का बाड़ीखुर्द पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल कुछ मीडिया द्वारा यहां तीन माह में 80 आत्महत्याओं का मामला उछाला गया। इसको लेकर पूरे देश में सनसनी फैल गई। गांव को सुसाइड विलेज का तमगा दे दिया गया। लेकिन जब इस मामले की तहकीकात राष्ट्रीय पाक्षिक अक्स ने की तो पता चला कि यह तो जिलेभर में आत्महत्या के आंकड़े से भी अधिक है। तहकीकात में देखने को मिला कि बाडीखुर्द गांव में न सूखा पड़ा है, न किसी तरह की प्राकृतिक आपदा आई है फिर ऐसी अफवाह कैसे फैल गई कि यहां के प्रत्येक परिवार से कम से कम एक सदस्य ने आत्महत्या का रास्ता अपना लिया है। दरअसल खरगोन जिले में सूदखोरी का धंधा जोरों पर चलता है। वहां के कई रसूखदार जिनका इंदौर में कारोबार चलता है वे वहां के ग्रामीण इलाकों में लोगों को ब्याज पर पैसा देते हैं। और देशभर में एक माहौल बना है कि कर्ज के बोझ तले दबे लोग आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे में जिले में जितनी भी आत्महत्याएं हो रही है उसके पीछे मुख्य वजह सूदखोरी मानी जा रही है। कई मामलों में यह बात सामने भी आई है। अगर बाडीखुर्द के सरपंच पति राजेंद्र सिंह सिसोदिया की माने तो इस साल जिन तीन लोगों ने आत्महत्या की है वे स्वयं में आर्थिक रूप से सक्षम थे। ऐसे में सवाल ही नहीं उठता है कि उन्होंने कर्ज लिया होगा। वह कहते हैं कि गांव में 3 आत्महत्या को किसी ने 30 तो किसी ने 80 बनाकर प्रचारित किया है। इससे गांव की छवि खराब हुई है। उन्होंने बताया कि गांव के एक प्रतिनिधि मंडल ने कलेक्टर अशोक वर्मा को ज्ञापन सौंप गांव की छवि खराब करने वालों के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने बताया कि 2011 से अभी तक गांव में आत्महत्या की केवल 3 घटनाएं हुई है। इन घटनाओं के पीछे अवसाद, अलगाव और आपसी कलह अधिक है। कुछ मामलों में कारण पता नहीं चल सका। आज भी पुलिस की विवेचना में यह प्रकरण पहेली बने हुए हैं। उधर इस अफवाह के बाद अब जिला प्रशासन भी सक्रिय हो गया है और इस तहकीकात में जुट गया है कि आखिर ऐसा वाकया कैसे घटित हुआ। इंदौर की मनोवैज्ञानिक व काउंसलर डॉ. कामना लाड़ कहती हैं कि कुछ पल का अवसाद जीवन को खत्म कर देता है।  पारिवारिक संवाद में दूरी और अवसाद मौत की प्रमुख वजह है। वह कहती है कि समाज में जिस तरह सहनशीलता की कमी हो रही है उससे ऐसी घटनाएं घट रही हैं। -इंदौर से विशाल गर्ग
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