बिटामिन आरÓ के आदी
03-Mar-2016 09:22 AM 1235026

कभी हमारे पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी के आज कल जलवे ही जलवे हैं। उनकी किस्मत ने ऐसी करवट ली है कि उनका गरीबखाना अब दौलतखाना हो गया है। आखिर हो भी क्यों नहीं? उनका बेटा सरकारी बाबू जो बन गया है। सही कहा जाता है जब समय बलवान होता है तो गधा भी पहलवान हो जाता है।
हां, वाकई समय बहुत तेजी से बदल रहा है। इत्ती तेजी से कि हमारे साथ फुटपाथी रहे शर्मा जी अब आलिशान बंगले में रहते हैं। जब हमने इसकी वजह पता की तो बताया गया की शर्मा जी का बेटा बिटामिन आरÓ का आदी हो गया है। सुन कर मैं तो हैरान हो गया...बात भी हैरानी  की थी। क्योंकि मैंने अभी तक विटामिन ए, बी,सी,डी,ई के बारे में सुना और पढ़ा था बिटामिन आरÓ पहली बार सुननें को मिला। मुझे लगा मेरे साथ मजाक किया गया है। लेकिन यह कैसा मजाक?
लोगों को आखिर यह क्यों नहीं समझ में आता है कि क्या भरोसा आपके मजाक को वो कैसे ले ले। मजाक-मजाक में थाने पहुंच जाए और आपके खिलाफ मुकदमा लिखवा दे। फिर लगाते रहें आप कोर्ट-कचहरी के चक्कर खुद को निर्दोष साबित करने के लिए।
लोगों की भावनाओं का टेंपरामेंट अब पहले जैसा नहीं रहा। जरा-सी बात में आहत हो लेती हैं। जहां आहत होने का कोई सीन नहीं होता, वहां इस बात पर आहत हो जाती हैं कि चर्चा में बने रहने के लिए कुछ तो चाहिए। ये ही सही। मीडिया और समाज के बीच फेमस होने के लिए भावनाओं को आहत कर लेना सबसे उम्दा गेम है। कल तलक जिन चेहरों को कोई नहीं पहचानता था, आज पहचान गया है क्योंकि वे किसी न किसी आहत भावना के मारे हैं।
मैं कई दिनों तक उधेड़बुन में रहा और एक दिन बिटामिन आरÓ का रहस्य जानने शर्मा जी के दौलतखाने की ओर चल पड़ा। शर्मा जी के दौलतखाने पर जब मैं पहुंचा, तो एक अजीब सा दृश्य देखा। मैंने पाया कि उनके के चारों ओर कुछ कागज बिखरे पड़े हैं। वे काम में इतने मशगूल थे कि मेरे आने की उन्हें तनिक भी भनक तक नहीं लगी। एक कागज उठाकर पहले तो वे कुछ देर तक उसे घूरते रहे और फिर दूसरे कागज पर कुछ नोट करते हुए बोले, पेट्रोल के दाम में बढ़ोतरी हुई चार रुपये छियालिस पैसे। इसका मतलब है कि शहर में खसरा-खतौनी की नकल मांगने पर बिटामिन आरÓ की कीमत पैंतीस रुपये से बढ़कर पैंसठ रुपये होगी और गांव में बिटामिन आरÓ की कीमत पचास रुपये होगी।Ó
मैं चौंक गया। मन ही मन सोचने लगा कि यह मुई बिटामिन आरÓ क्या बला है? मुझसे रहा नहीं गया। मैंने शर्मा जी को दंडवत प्रणाम करते हुए कहा, महाराज! यह बिटामिन आरÓ क्या है?Ó मुझे देखकर वे सकपका गए और हड़बड़ी में हाथ का कागज छिपाने लगे। मुझसे उन्होंने तल्ख स्वर में पूछा, तुम कब आए?Ó मैंने हंसते हुए कहा, जब से आप पेट्रोल के दाम और बिटामिन आरÓ को किसी नामाकूल फार्मूले पर कस रहे थे।Ó मेरी बात सुनकर उन्होंने गहरी सांस ली और मुझे बैठने का इशारा किया और फिर बोले, बात यह है कि जब-जब पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते हैं, सभी जरूरी चीजों के दाम बढ़ जाते हैं। ऐसे में सुविधा शुल्कÓ यानी बिटामिन आरÓ की कीमत भी बढ़ जाता है। आफिसों में बाकायदा एक सूची सबको दे दी जाती है कि आज से फलां काम के इतने और फलां काम के इतने रुपये लिए जाएं। हर बार यह सूची बनाने का जिम्मा मुझे दे दिया जाता है, क्योंकि मेरा बेटा ही इसका इंचार्ज है। कल से जुटा पड़ा हूं, लेकिन अभी तक सूची बन नहीं पाई है।Ó
मैंने आश्चर्य जताते हुए कहा, बिटामिन आर मतलब रिश्वत?Ó शर्मा जी ने चेहरे पर कोई भाव लाए बिना कहा, रिश्वत होगी तुम्हारे लिए, हम सबके लिए तो बिटामिन आरÓ है। बिटामिन आर का सेवन करते ही कर्मचारी में अपार ऊर्जा का संचार होता है, वह आलस्य किए बिना काम झटपट निबटा देता है, अधिकारी भी बिटामिन आर की झलक पाते ही अपना सारा जरूरी काम-धाम छोड़कर उस फाइल पर चिडिय़ा बिठा देते हैं। जिस बिटामिन आरÓ तुम्हारे शब्दों में कहें, तो रिश्वतखोरी को अन्ना दादा जैसे लोग इतनी हिकारत की नजर से देखते हैं, अगर इसका प्रचलन हिंदुस्तान में न होता, तो उसका इतना विकास न हुआ होता। भ्रष्टाचार की बदौलत जो सड़क पांच-छह महीने में बन जाती है, उसी सड़क की फाइल रिश्वत न मिलने पर सालों अटकी रहती।Ó
शर्मा जी की बात में मुझे दम दिखा। फिर मुझे लगा वे मजाक कर रहे हैं। आज के दौर में आदमी के दिमाग का कोई ठौर नहीं, कब में सांप की मानिंद पलट कर किसे डस ले। पहले मैं यह मजाक समझता था लेकिन अब मुझे यकीन-सा होता चला जा रहा है कि मिलावटी खाना खा-खाके आदमी का दिमाग भी गड़बड़ा गया है। चौबीस में से तेइस घंटे शक और आहत भावनाओं के बीच ही गंवा देता है।
इसीलिए मैंने दूसरों से छोडि़ए खुद तक से मजाक करना बंद कर दिया है। अब तो मैं खुद पर हंसता भी नहीं हूं। अपनी मजाक, अपनी हंसी, अपनी बतकही केवल अपने मन में ही रखता हूं। या फिर मूड हुआ तो पन्नों पर दर्ज कर देता हूं। हां, इस बात की इज्जात मैंने सबको दे रखी है कि कोई भी कैसा भी मजाक मुझसे खुलकर कर सकता है। गारंटी है न बुरा मानूंगा, न भावनाओं को आहत करूंगा। खुद की मजाक उडऩे से ज्यादा फर्क मुझे इसलिए भी नहीं पड़ता, यहां तो पूरी जिंदगी ही मजाक-मजाक में गुजरी है। लेकिन शर्मा जी मुझसे मजाक नहीं कर रहे थे। इसकी गवाही उनका दौलतखाना दे रहा था।
मैं भी अब इसी आस में हूं कि कब मेरा बेटा इस लायक होगा कि वह भी बिटामिन आरÓ का आदी होगा और मैं कागजों पर हिसाब तैयार करूंगा।
-विनोद बक्सरी

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