15-Dec-2015 11:06 AM
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पिछले कुछ माह से मैं परेशान चल रहा था। मैं समाधान के लिए एक पंडित जी के पास गया और उन्हें बताया कि आजकल मैं परेशान हूं, अपने जिगरी दोस्तों से। आजकल जिस पर विश्वास करता हूं वही चूना लगा आगे हो लेता है,Ó मेरे

कहने के एकदम बाद उन्होंने जन्मपत्री में से पूरे आत्म विश्वास के साथ पांच सौ का नोट निकाल अपनी जेब में रख, एक रूपए का सिक्का भगवान की मूरत की ओर फेंकने के बाद जन्मपत्री खोलते कहा,Ó भक्त, ये कलिजुग है कलिजुग! इस युग में चोर पर विश्वास कर लो पर अपने दोस्तों पर नहीं। इस दौर में दुश्मनों से अधिक दोस्तों से सावधान रहने की जरूरत है,Ó फिर जन्मपत्री में किसी ग्रह को कुछ देर उल्टा सीधा घुमा देख उसे घूरते बोले, तो इस चालाक राहू केतू की दशा चल रही है तुम पर? पर कोई बात नहीं, ठीक जगह आ गए हो। अब देखना दोस्त तो दोस्त, दुश्मन भी तुम्हारे आगे पीछे घूमेंगे। बस, जो हम बताते हैं, वही करना, पूरे मनोरोग से।Ó
जो भी कहोगे सब करूंगा पंडित जी, पर ये राहू- केतू हमें ही क्यों लगते हैं? Ó
हर वर्ग का अपना-अपना नसीब है। तभी तो जो यहां गरीब था, केवल वही गरीब है।Ó
तो ऐसा करना कि कल से रोज सुबह नहा धोकर तीन महीने तक लगातार भूखे पेट कुत्ते को रोटी देना। काला मिले तो सोने पर सुहागा। बिना किसी ब्रेक के। फिर देखना, राहू तुम्हारे सिर से ऐसे रफू चक्कर हो जाएंगे जैसे गधे के सिर से सींग हो जाते हैं,Ó सुन मैं बिदका! बंदा क्या चाहे? चालू दोस्तों से छुटकारा। पर तभी अचानक अवाक् पूछ बैठा, गधे के सिर पर भी सींग होते हैं पंडित जी?Ó
होते हैं! हर एक के सिर पर सींग होते हैं। देखने वाले दिव्य चक्षु चाहिए बस!Ó उन्होंने पूरे कांफिडेंस में कहा तो मैंने डरके मारे दोनों हाथ जोड़े, सत्य वचन पंडित जी, सत्य वचन! और कुछ करना हो तो वह भी एक ही राउंड में बता दो पंडित जी।Ó
और कुछ करने की जरूरत नहीं। टाइम के मेरे पास आ गए। अब तुम्हारा राहू तो क्या, राहू केतू के फादर भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते। दो दिन और लेट हो जाते तो दोस्त तो दोस्त, घरवाले भी तुम्हें धोखा देने लग जाते,Ó कह उन्होंने मेरी जन्म पत्री मेरे हवाले की।
और मैंने अगली सुबह नहा धोकर मुहल्ले में कुत्ते ढूंढने शुरू कर दिए। पर अचरज की बात, मुहल्ले में एक भी कुत्ता न मिला। यहां यही तो एक दिक्कत है। जरूरत पर कुछ मिलता ही नहीं। तब बीवी ने बताया कि उसने सामने वाली अफसर कालोनी में दो-तीन कुत्ते देखे हैं। सारा दिन धूप में लेटे रहते हैं। किसी को काटना तो दूर, कोई दिख जाए तो दुम दबा दूसरी ओर को हो लेते हैं, मानों उनके मुंह में दांत ही न हो। खैर, मुझे क्या लेना था उनकी चरित्रगत विशेषताओं से? मुझे तो अपना काम सारना था सो रोटी कागज के टुकड़े में लपेट, दोस्तों पर नए सिरे से विश्वास करता अफसर कालोनी की ओर हो लिया। एक कुत्ता एकदम मिल गया। शुक्र भगवान का, कुत्ता ढूंढने को अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ी। मैंने उसको सगर्व रोटी दी तो उसने रोटी की ओर देखा भी नहीं। अजीब कुत्ता है यार? आज के दौर में तो लोगों की भूख देखते ही बनती है। पेट हैं कि भरने का नाम ही नहीं ले रहे। और एक ये है कि मैं कुछ अधिक ही सेंटिमेंटल हो रोटी उसके पास से उठा उसके मुंह में डालने लगा तो वह गुस्साते बोला, क्या कर रहे हो?Ó
तुम्हें खिला अपने राहू को शांत कर रहा हूं दोस्त!Ó
जानते हो मैं कहां का कुत्ता हूं?Ó
अफसर कालोनी का। कुत्ता चाहे कहीं का भी हो मेरे दोस्त, कुत्ता मूलत: कुत्ता ही होता है।Ó
हद है यार! सूखी चपाती खिला रहे हो और वह भी अफसर कालोनी के कुत्ते को? ये रोटी तो मुहल्ले का चार दिनों से भूखा कुत्ता भी खाना पसंद नहीं करेगा,Ó कह वह मुझे घूरा तो उसका चेहरा देखने लायक था।
क्यों? देश की जनता के हाल का तनिक पता है तुम्हें? सूखी को भी दौड़ कर पड़ती है।Ó
पर हम देश की जनता नहीं। कुत्ते हैं। मेरे थू्र काम बनाना है तो चुपड़ी रोटी लाओ वरना यहां से दफा हो जाओ।Ó
पर यार! चुपड़ी रोटी तो कभी मेरे बाप को भी नसीब नहीं हुई। ये चुपड़ी रोटी कैसी होती है मेरे दोस्त?Ó
देखो दोस्तों के मारे दुखियारे! हम ठहरे अफसर कालोनी के कुत्ते। हमें जेई साहब रोज केक देते हैं। डीएसपी साहब, मीट देते हैं। एसडीओ साहब बिन नागा मटर- पनीर देते हैं, चाहे जहां से मार कर लाएं। और तो और, अपने जो प्रोफेसर साहब कामरेड हैं न, वे भी हमें कटोरे में सूप पिलाते हैं पानी की जगह। तो ऐसे में।Ó
प्लीज यार! राहू के मारे सर्वहारा पर जरा रहम करो और मेरी अमृत सरीखी रोटी कुबूल करो। मैं कोई अफसर नहीं, अफसर के घर काम करने वाला वह सरकारी बंदा हूं जो पगार तो टेजरी से लेता है और कपड़े साहब की बीवी के धोता है,Ó कह मैंने दोनों हाथ जोड़े, पर कुत्ता था कि नहीं पिघला तो नहीं पिघला। पिघले तो तब जो मुसीबत के मारे की पीड़ा महसूस करने का उनके पास दिल हो। उल्टा मुझे समझाता बोला, देखो दोस्त! तुम चाहे कोई भी हो। मुझे इससे कोई लेना देना नहीं। हम खांएगे तो चुपड़ी रोटी ही खाएंगे बस। नहीं ला सकते तो तुम जानो तुम्हारा राहू जाने,Ó कह उसने दूसरी ओर मुंह फेर लिया।
पर बुरे दिन आते भी देर नहीं लगती दोस्त। सोच लो!Ó मैं अफसर कालोनी का कुत्ता हूं डियर। तब की तब देखी जाएगी। पर मत भूलो कि नौकरशाहों की पांचों उंगलियां सदा घी में रही हैं और रहेंगी भी,Ó मुझे गालियां देते उसने अपना थोबड़ा दूसरी ओर को फेर लिया।
-विनोद बक्सरी