सीरिया की तबाही का जिम्मेदार कौन
17-Nov-2015 09:36 AM 1234798

आईएस को नष्ट करने में किसका हित है, जो देश सीरिया पर हमले कर रहे हैं, उनका आईएस के खात्मे से कोई लेना-देना है भी या नहीं, अभी इसके बारे में कुछ कहना भले ही मुश्किल लग रहा हो, लेकिन सीरिया या उसकी राजधानी दमिश्क में विश्व के शक्तिशाली  देशों ने जो हालात उपस्थित कर दिए हैं, उसे शायद पटरी पर कभी नहीं लाया जा सके या अगर लाया जा सकता है तो उसे लाने में दशकों लग सकते हैं। यह वही दमिश्क है, जहां की संस्कृति, सभ्यता और पुरातत्व पूरे विश्व के लिए एक सबक है, लेकिन आज यह शहर पूरी तरह से खंडहरों में तब्दील हो चुका है। तू-तू, मैं-मैं की इस लड़ाई में सीरिया को आग के ढेर पर बैठाया जा चुका है और खुद को सभ्यता का पुरोधा कहने वाले ये देश अवसरवाद के चूल्हे पर सियासत की रोटियां सेंक रहे हैं।
फिलहाल आईएस पर हमले को लेकर जिस तरह से वैश्विक राजनीति हो रही है, उससे आने वाले दिनों में मामले के और भी अधिक उलझने की संभावना जरूर बढ़ गई है। रूसी लड़ाकू विमानों का सीरिया में हवाई हमले का दौर अभी भी जारी है। हालांकि अमेरिका और रूस के उच्चाधिकारियों ने कहा है कि सीरिया में मौजूद अमेरिकी और रूसी सैनिकों के बीच किसी भी टकराव से बचने के लिए दोनों देशों के सैन्य अधिकारी आपस में बातचीत करेंगे। ये बातचीत कब होगी, होगी भी या नहीं, ये भविष्य के गर्भ में है। सच्चाई यह है कि कोई भी खुद को इस हमले या हमले से उत्पन्न विभत्स हालातों का दोषी नहीं मानना चाहता। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी जल्द से जल्द बातचीत शुरू करने पर जोर दे रहे हैं। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरॉव कहते हैं कि अनचाही घटनाओं को टालने के लिए संवाद स्थापित करना जरूरी है। सवाल यह है कि सर्गेई अगर संवाद को जरूरी मानते हैं, तो इसकी भरपूर कोशिश क्यों नहीं की जा रही है। इस बीच अमेरिका ने आशंका जताई है कि रूस जिन ठिकानों पर हमले कर रहा है, वो इस्लामिक स्टेट के नहीं हैं, बल्कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के दूसरे विरोधियों के हैं। उधर, रूस का कहना है कि सीरिया में उसके युद्धक विमान उन्हीं आतंकी ठिकानों पर मार कर रहे हैं, जो अमेरिका के भी निशाने पर हैं, जबकि अमेरिका ने रूस के मिलिट्री अभियान की आलोचना करते हुए कहा कि हवाई हमलों में सामंजस्य की कमी है। हालांकि अमेरिका भले ही रूसी हवाई हमले की निंदा कर रहा है, लेकिन सत्य यह है कि खुद अमेरिका को सीरिया में हवाई हमले शुरू किए हुए एक साल हो चुका है। इस बीच रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि उसकी वायुसेना ने इस्लामिक स्टेट के सैन्य साजो-सामान को निशाना बनाया है, न कि नागरिक स्थानों पर हमले किए हैं। इस पर सीरिया के विपक्षी कार्यकर्ताओं का कहना है कि रूस ने तालबीसेह और रस्तान और जाफरानेह शहरों पर हमले किए हैं, जिनमें 36 लोगों की मौत हो गई है, जिनमें कई बच्चे भी शामिल हैं। उनके अनुसार, इनमें से कोई भी इलाका ऐसा नहीं है, जिस पर आईएस का नियंत्रण है। गौरतलब है कि सीरिया में चार साल से चल रहे गृह युद्ध में असद सरकार के खिलाफ कई संगठन लड़ रहे हैं।
अमेरिकी रक्षा मंत्री एशटन कार्टर ने कहा है कि रूस का रवैया आग में घी डालने जैसा है और ये अभियान असफल होगा, क्योंकि बशर अल-असद के विरोधियों की संख्या काफी ज्यादा है।  रूस उन विद्रोहियों पर हमले कर रहा है, जिन्हें अमेरिका का समर्थन मिला है। बताया जा रहा है कि इनमें से कुछ को सीआईए ने ट्रेनिंग दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि रूसी हमले सीरिया को संकट के हल से और भी दूर ले जाएंगे और इससे आईएस को ही बल रहा है। ओबामा का कहना है कि ये सही है कि रूस और अमेरिका दोनों चाहते हैं कि आईएस को नष्ट किया जाए, लेकिन यह भी तय है कि पुतिन आईएस और उदारवादी सुन्नी विरोधी गुटों में फर्क नहीं कर पा रहे हैं। पुतिन के नज़रिए से सब आतंकवादी हैं। ये विनाश को बुलावा है। दूसरी तरफ सीरिया के मुख्य विपक्षी गुट माने जाने वाली सीरियन नेशनल काउंसिल के अध्यक्ष जॉर्ज साबरा ने कहा है कि रूस हवाई हमले राष्ट्रपति असद की मदद के लिए कर रहा है, आईएस के खात्मे के लिए नहीं। रूस ये सब इसलिए कर रहा है, क्योंकि वो सीरिया के भविष्य में भागीदारी चाहता है। उन्होंने कहा कि रूस जानता है कि जब नया सीरिया बनेगा तो सब कुछ ईरान को मिलेगा। ऐसे में रूस सीरिया से समझौता कर अपनी ताकत बढ़ाने का प्रयास करेगा ताकि उसकी आर्थिक स्थति भी सुदृढ़ हो सके।
-इन्द्रकुमार बिन्नानी

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