16-Apr-2015 03:08 PM
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इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म एनएच 10Ó निर्देशक नवदीप सिंह की एक और बेहतरीन पेशकश है। वह इससे पहले मनोरमा-सिक्स फीट अंडरÓ बनाकर वाहवाही बटोर चुके हैं। नवदीप की यह फिल्म बेहतरीन थ्रिलर होने के साथ साथ ऑनर किलिंग समस्या को भी बड़ी मजबूती से उठाती है। निर्देशक की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि फिल्म की व्यवसायिक सफलता के लिए उन्होंने चालू मसाला डालने से परहेज किया। अगर पिछले कुछ समय से कोई सार्थक फिल्म नहीं देखी है तो इसे देख सकते हैं लेकिन फिल्म में हिंसा के कई दृश्य कमजोर दिल वाले दर्शकों को परेशान कर सकते हैं। फिल्म की कहानी अर्जुन (नील भूपलम) और मीरा (अनुष्का शर्मा) के इर्द-गिर्द घूमती है। दोनों पति-पत्नी का जीवन बड़े आराम से गुजर रहा होता है कि एक दिन मीरा की कार को कुछ लोग लूटने के इरादे से रोक लेते हैं। इस घटना के बाद अर्जुन अपनी पत्नी के लिए रिवाल्वर का लाइसेंस ले लेता है। कुछ दिनों बाद जब दोनों छुट्टी मनाने के लिए कहीं बाहर जा रहे होते हैं तो रास्ते में उनकी कार एक ढाबे पर रुकती है। तभी उनकी कार के सामने एक लड़की टकराती है। वह मीरा से मदद करने की गुहार करती है, लेकिन मीरा अनसुना कर आगे निकल जाती है। कुछ देर बाद मीरा और अर्जुन देखते हैं कि उस लड़की और एक लड़के की कुछ लोग पिटाई कर रहे हैं और दोनों को गाड़ी में डालकर कहीं ले जा रहे हैं। यह सब होते हुए ढाबे पर मौजूद लोग देख रहे हैं लेकिन कोई कुछ कर नहीं रहा। अर्जुन जब उन्हें बचाने की कोशिश करता है तो उसे तमाचा जड़ दिया जाता है। इससे अर्जुन को गुस्सा आ जाता है और वह उनका पीछा करता है। मीरा उसे ऐसा करने से मना करती है लेकिन वह नहीं मानता। कछ देर बाद अर्जुन घने जंगल में पहुंचता है। वह देखता है कि जो लोग लड़का और लड़की को लेकर आये थे वह उन्हें मारने के बाद उन्हें दफनाने की तैयारी कर रहे हैं।
दरअसल, लड़की (पिंकी) ने घरवालों की मर्जी के खिलाफ अपने प्रेमी से शादी कर ली थी जोकि अम्माजी (दीप्ति नवल) उसके भाई सतबीर (दर्शन कुमार) के साथ साथ फौजी मामा (रवि झाकल) को रास नहीं आता। इसीलिए वह उन्हें मरवा देते हैं। जब यह लोग देखते हैं कि अर्जुन और मीरा ने उन्हें अपराध करते हुए देख लिया है तो सतबीर को उसका मामा आदेश देता है कि अर्जुन को मार डालो और लड़की को अपने साथ ले चलो। उसके ऐसा कहते ही दोनों बचने के लिए घने जंगलों में भागते फिरते हैं। अभिनय के मामले में अनुष्का का जवाब नहीं। इंटरवेल के बाद से तो वह ही फिल्म में छाई रहीं। लोगों को इस फिल्म में अनुष्का का अभिनय लंबे समय तक याद रहेगा। दीप्ति नवल ने भी शानदार काम किया है। नील भूपलम के पास ज्यादा कुछ करने को नहीं था। दर्शन कुमार और रवि झाकल का काम ठीकठाक रहा। फिल्म के सभी गाने बैकग्राउंड में हैं और कहानी को आगे बढ़ाने में मददगार हैं। निर्देशक नवदीप सिंह ने एक बेहतरीन फिल्म बनाने में अपनी ओर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
अब गंगाजलÓ का सीक्वेल बना रहे हैं प्रकाश झा
वर्ष 2003 में आयी सफल फिल्म गंगाजलÓ का सीक्वल बना रहे निर्देशक प्रकाश झा का कहना है कि इस फिल्म की कहानी एक वास्तविक जीवन से प्रेरित है और समाज और पुलिस के बीच के रिश्ते पर प्रकाश डालेगी। फिल्म गंगाजल 2Ó एक महिला पुलिस अफसर की कहानी है जो जिले के कुछ ताकतवर और प्रभावशाली लोगों से मुकाबला करती है। झा ने इस फिल्म पर काम करना शुरू कर दिया है और वर्ष के अंत में इसके रिलीज होने की उम्मीद है। झा इस फिल्म के बारे में कहते हैं कि गंगाजल 2Ó आज के समय में समाज और पुलिस के बीच के रिश्ते पर आधारित हैं। गंगाजलÓ हमारे दिल के बहुत करीब थी। यह फिल्म वास्तविकता में हमारे आसपास हो रही सभी विचित्र घटनाओं के बारे में है। यह फिल्म बड़े स्तर पर नहीं बनायी जा रही है और इसमें पात्रों की संख्या भी बहुत कम है। यह पूछे जाने पर कि क्या यह फिल्म उत्तर प्रदेश की प्रशासन कर्मचारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन की घटना पर आधारित है, झा ने स्पष्ट रूप से इसका जवाब नहीं दिया लेकिन यह भी कहा कि इसमें एक ऐसा दृश्य है जो कि इस मामले से लिया गया है।
डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शीÓ में जमे सुशांत
फिल्म ब्योमकेशÓ की तुलना यदि दूरदर्शन के जासूसी धारावाहिक ब्योमकेश बख्शीÓ से करेंगे तो निराश होंगे। हालांकि निर्देशक दिबाकर बनर्जी की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि उन्होंने 40 के दशक के कोलकाता को दिखाने में काफी मेहनत की है लेकिन वह फिल्म की धीमी रफ्तार के लिए आलोचनाओं के शिकार भी होंगे। फिल्म की लंबाई भी कुछ ज्यादा ही है जोकि दर्शकों को बोर करेगी। फिल्म में निर्देशक ने भले कहानी को नहीं भटकने दिया लेकिन हिंसा के कई ऐसे दृश्य हैं जोकि आप बच्चों के साथ देखना पसंद नहीं करें।
फिल्म की कहानी चालीस के दशक के कलकत्ता की है। ब्योमकेश बख्शी (सुशांत सिह राजपूत) कालेज छात्र है और खुद को बहुत बड़ा जासूस मानता है। किसी भी बात की तह तक जाना उसकी आदत बन चुकी है। एक दिन उसके पास अजीत बंद्योपाध्याय (आनंद तिवारी) आता है। वह उसे बताता है कि उसके पिता जो कि एक फैक्ट्री में केमिकल साइंटिस्ट थे वह काफी दिनों से गायब हैं। उन्हें तलाशने में वह ब्योमकेश की मदद चाहता है। ब्योमकेश इसके लिए तैयार हो जाता है। वह कलकत्ता के उस बोर्डिंग हाउस जाता है जहां अजीत के पिता रहा करते थे। इस बोर्डिंग हाउस को डॉक्टर गुहा (नीरज कबि) चलाते हैं। केस सुलझाने की कोशिश में लगे ब्योमकेश की मुलाकात अंगूरी देवी (स्वस्तिका मुखर्जी) से होती है। अंगूरी से उसे कुछ और जानकारी भी मिलती है। इसी दौरान दूसरा विश्व युद्ध भी चल रहा होता है और अंग्रेजी हुकूमत जापानी फौज को लेकर सतर्क होती है। उस समय कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं जिससे ब्योमकेश को लगता है कि यह केस उतना आसान नहीं है जितना यह ऊपर से लग रहा है। ब्योमकेश जब सच को उजागर करता है तो हर कोई हैरान रह जाता है।
ब्योमकेश के रोल में सुशांत सिंह राजपूत ने जान डाल दी है। उन्होंने गजब का अभिनय किया है। उनके परिधान भी उन पर खूब जमे हैं। अंगूरी देवी के रोल में स्वास्तिका कुछ खास नहीं कर सकीं। आनंद तिवारी का काम भी दर्शकों को पसंद आएगा। अन्य सभी कलाकार सामान्य रहे। फिल्म का गीत संगीत भी सामान्य ही है। फिल्म के सेट काफी अच्छे हैं। निर्देशक यदि फिल्म की लंबाई को 15 मिनट और कम कर सकते तो अच्छा रहता।
दीवाने प्रेमी के किरदार में दिखेंगे अली फजल
अपनी सौम्य एवं साधारण सा इंसान की छवि को तोड़ते हुए अभिनेता अली फजल जल्द ही खामोशियांÓ में एक दीवाने प्रेमी के किरदार में नजर आएंगे। अली का कहना है कि इस फिल्म के लिए हां कहकर उन्हें खुशी है और यह मौका उन्हें सही समय पर मिला है। अली ने इससे पहले हल्की-फुल्की फिल्मों मसलन सोनाली केबलÓ, आलवेज कभी कभीÓ और फुकरेÓ जैसी फिल्मों में काम किया है और अब वह भट्ट कैंप की थ्रिलर फिल्म में नजर आएंगे। अली कहते हैं कि यह मेरे लिए काफी अलग किरदार था। यह मेरी पिछली फिल्मों की तरह नहीं है। यहां मैं एक प्रेमी हूं, एक शराबी लेखक हूं जो बस खात्मे के कगार पर है और फिल्म की पूरी कहानी उसी के नजरिए पर है। अली कहते हैं कि अलग तरह की फिल्म पाने के लिए मैंने कोई विशेष प्रयास नहीं किया, यह किरदार भी मेरे पास अपने आप आया। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इस तरह की फिल्म करूंगा।