17-Jan-2015 12:04 PM
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फिल्म तेवर एक्शन से भरपूर फिल्म है। दबंग, सिंघम जैसी फिल्मों के शौकीन दर्शकों को यह फिल्म निराश नहीं करेगी। तेवर तमिल फिल्म ओकारू का हिन्दी रीमेक है। हिंदी में बनने से पहले इसके
तेलुगू, कन्नड़ और बंगाली वर्जन आ चुके हैं और सुपरहिट हो चुके हैं। निर्देशक अमित रवींद्र नाथ शर्मा ने हिंदी में इसे शानदार तरीके से पेश किया है बस वह इसे कई जगह जरूरत से यादा खींच गये हैं। फिल्म की लंबाई को वह आसानी से आधा घंटा कम कर सकते थे जिससे फिल्म की रफ्तार और तेज होती। फिल्म की कहानी घनश्याम शुक्ला उर्फ पिंटू (अर्जुन कपूर) और गजेंदर सिंह (मनोज बाजपेयी) के इर्दगिर्द घूमती है। पिंटू आगरा का रहने वाला है और वहां अपने कुछ दोस्तों के साथ कबड्डी टीम चलाता है। उसके पिता (राज बब्बर) यूपी पुलिस में अधिकारी हैं। उन्हें पिंटू का इस तरह अपने दोस्तों के साथ घूमते रहना पसंद नहीं है लेकिन वह उसे उसकी मां के चलते ज्यादा कुछ नहीं बोल पाते। पिंटू मां का लाडला है और मां उसे हर बार पिता की डांट से बचाने के लिए आगे आ जाती है। एक बार पिंटू कबड्डी चैंपियनशिप में भाग लेने मथुरा जाता है। मथुरा में गजेंदर का राज चलता है क्योंकि उसका भाई राय सरकार में मंत्री है। कबड्डी के कड़े मुकाबले में पिंटू की टीम जीत जाती है तो उसकी गजेंदर से दुश्मनी हो जाती है। दूसरी तरफ एक समारोह में गजेंदर राधिका मिश्रा (सोनाक्षी सिन्हा) को डांस करते देखता है तो उस पर मोहित हो जाता है और उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखता है लेकिन राधिका इससे इंकार कर देती है। गजेंदर को यह अपना अपमान लगता है और वह बदला लेने में जुट जाता है। अपने मंत्री भाई के काले कारनामों का खुलासा करने वाले पत्रकार का वह खून कर देता है। यह पत्रकार राधिका का भाई था। वह राधिका के पीछे भी पड़ जाता है इसलिए राधिका के घरवाले उसे अपने रिश्तेदार के यहां विदेश भेजने का फैसला करते हैं। गजेंदर से पीछा छुड़ाकर भागती राधिका पिंटू से टकराती है तो पिंटू उसकी रक्षा करता है और उसे सही सलामत दिल्ली तक पहुंचाने में जुट जाता है ताकि वह विदेश जा सके। अर्जुन कपूर एक्शन भूमिका में जमे हैं। लेकिन वह लगातार इसी तरह के रोल करते रहे तो दर्शक उनसे बोर हो सकते हैं। उन्हें अलग तरह के रोल भी करने चाहिए। मनोज बाजपेयी के शानदार अभिनय का जवाब नहीं। वह नकारात्मक भूमिका में खूब जमे हैं। उनके हिस्से संवाद भी दमदार आये हैं। सोनाक्षी सिन्हा के हिस्से में यादा कुछ करने को नहीं था फिर भी उन्होंने अपना काम अच्छी तरह से किया है। श्रुति हसन का एक आइटम सांग फिल्म की जान है। अन्य सभी कलाकार सामान्य रहे। फिल्म का गीत संगीत आजकल पसंद किया जा रहा है। निर्देशक ने कहानी पर अपनी पकड़ बनाये रखी है लेकिन वह इसे जरूरत से ज्यादा खिंचने से रोकने में विफल रहे।