04-Jun-2020 12:00 AM
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छत्तीसगढ़ सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर राजीव गांधी किसान न्याय योजना शुरू कर दी है। कांग्रेस के नजरिए से देखा जाए तो राजीव गांधी किसान न्याय योजना एक तरीके से मनरेगा 2.0 ही है, लेकिन क्या छत्तीसगढ़ में न्याय लागू कर कांग्रेस सरकार इसे मनरेगा बना पाएगी? कांग्रेस के सामने तत्कालिक सवाल भी यही है और सबसे बड़ा चैलेंज भी।
आखिरकार राहुल गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट न्याय योजना की शुरुआत हो ही गई। वैसी ही न्याय योजना जिसे लेकर अब राहुल गांधी ने यहां तक कह डाला था कि और कुछ नहीं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार इसे अस्थायी तौर पर ही लागू कर ले। कोरोना संकट पर सोनिया गांधी की तरफ से लिखी गई चिट्ठियों में भी न्याय योजना लागू करने का जिक्र रहा और राहुल गांधी भी लगातार किसी न किसी बहाने ये मांग करते रहे। न्याय योजना कांग्रेस 2019 के आम चुनाव में लाई थी, लेकिन तब भी कांग्रेस को इसका कोई फायदा नहीं मिल सका। कांग्रेस ने न्याय योजना छत्तीसगढ़ में लागू तो करा दी है, लेकिन क्या वह इसका फायदा उठा पाएगी। यह इसलिए कहा जा रहा है कि यूपीए शासनकाल के दौरान मनरेगा सहित जिन योजनाओं को शुरू किया गया था आज वे सभी भाजपा के कब्जे में हैं।
उधर, कांग्रेस का कहना है कि न्याय योजना अर्थशास्त्र के लिए नोबल पुरस्कार पाने वाले अभिजीत बनर्जी ने कांग्रेस के लिए बनाई थी, हालांकि, अभिजीत बनर्जी का कहना है कि उनसे सलाह जरूर ली गई थी, लेकिन उन्होंने इसे तैयार नहीं किया था। हाल फिलहाल अभिजीत बनर्जी और रघुराम राजन से राहुल गांधी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कोरोना संकट से निबटने के उपाय पूछे थे और दोनों की राय यही रही कि गरीबों के खाते में सीधे मदद की रकम डाली जाए।
कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार के दौरान मनरेगा योजना शुरू की गई थी। तब आरजेडी कोटे से मनमोहन सरकार में मंत्री बने रघुवंश प्रसाद सिंह ने इसे लागू कराया था और माना गया कि 2009 में यूपीए की सत्ता में वापसी में मनरेगा की बहुत बड़ी भूमिका रही। मनरेगा योजना के तहत मजदूरों को साल में 100 दिन काम की गारंटी दी जाती है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल के बाद राहुल गांधी भी अब मांग करने लगे हैं कि मनरेगा के तहत 100 की जगह 200 दिन काम देने का प्रावधान किया जाए। कहने को तो न्याय योजना छत्तीसगढ़ में किसानों के लिए लाई गई है, लेकिन इसे कांग्रेस अपने उत्थान से जोड़कर देख रही है। जिस तरह मनरेगा ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराई थी, अब कांग्रेस को लगता है कि न्याय योजना भी उसे फिर राष्ट्रीय राजनीति में खड़े होने में मददगार साबित हो सकती है।
बेहतर तो यही होता कि न्याय योजना सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि सभी कांग्रेस शासित राज्यों में लागू की गई होती। राजस्थान और पंजाब में भी। कोशिश ये भी की जाती कि इसे महाराष्ट्र और झारखंड में भी लागू किया जाता, जहां की सत्ता में कांग्रेस भी साझीदार है। ऐसा करने पर और कुछ हो न हो, कम से कम मोदी सरकार पर कुछ न कुछ दबाव तो बनता ही। कुछ कुछ वैसे ही जैसे इन राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा से पहले ही लॉकडाउन लागू हुआ और उसकी मियाद भी केंद्र सरकार के ऐलान से पहले ही बढ़ा दी गई। भूपेश बघेल ने न्याय योजना को लेकर सोनिया गांधी का एक वीडियो शेयर किया है।
देखा जाए तो कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में न्याय योजना लागू कर खुद को ही चुनौती दे डाली है। कांग्रेस की चुनौती ये है कि वो न्याय योजना को इतने अच्छे तरीके से लागू करे कि इसके लाभार्थियों की जिंदगी पर बदलाव का असर भी दिखाई दे और फिर देश के हर राज्य में इसे लागू करने की मांग उठे। ऐसा होने पर कांग्रेस को भी केंद्र सरकार पर दबाव बनाने में आसानी होगी। वैसे भी हाल ही में राहुल गांधी ने कहा भी था कि मीडिया का साथ मिल जाने से मोदी सरकार पर दबाव बनाना आसान हो जाता है।
अगर वाकई न्याय योजना दमदार है। अगर वाकई न्याय योजना लोगों की जिंदगी में बदलाव ला सकती है। अगर वाकई न्याय योजना का असर मोदी सरकार के आर्थिक पैकेज के मुकाबले ज्यादा असरदार साबित हो सकता है तो निश्चित तौर पर लोगों के साथ साथ कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा। फिर तो वो दिन भी आ सकता है जब मोदी सरकार अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी तौर पर न्याय योजना वैसे ही लागू कर दे जैसे मनरेगा को लागू करने के बाद उसके फंड में भी इजाफा किया गया है। राहुल गांधी ने तो इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद भी दिया था। ये बात अलग है कि धन्यवाद कम और तंज ज्यादा लग रहा था क्योंकि ट्वीट के साथ राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी का पुराना वीडियो शेयर किया था जिसमें वो मनरेगा की बुराई कर रहे थे।
ग्रामीण भारत पर पकड़ एक राष्ट्रीय दल के रूप में कांग्रेस की ताकत हुआ करती थी, पर धीरे-धीरे इस क्षेत्र में भाजपा जगह बनाने लगी जो कि पहले अधिकाधिक शहर केंद्रित पार्टी मानी जाती थी। हालांकि इसका चुनावी या राजनीतिक रूप से अधिक प्रतीकात्मक महत्व है। मोदी ने कांग्रेस की पहलकदमियों का इस्तेमाल अपनी जनकल्याणकारी छवि गढ़ने के लिए किया है। और यह संभव कैसे हुआ? ऐसा सिर्फ इसलिए हो सका क्योंकि कांग्रेस ने खुद ही अपनी बनाई योजनाओं को त्यागने या उसे अपनी महत्वपूर्ण उपलब्धियों के रूप में प्रचारित नहीं करने की मूर्खता की। इसके विपरीत, मोदी ने अपने प्रतिद्वंदी की पहल का चालाकी से उपयोग करने और आगे चलकर उन्हें अपनी योजनाओं के रूप में पेश करने के महत्व को समझा।
2014 में सत्ता में आने के बाद से ही नरेंद्र मोदी ने बड़ी सटीकता के साथ अपने पूर्ववर्तियों के कई नवाचारों को अपनाया है, जिससे उन्हें कल्याणकारी शासन का अपना मॉडल तैयार करने में मदद मिली है। याद करें 2014 का साल जब मोदी ने देश की सत्ता बस संभाली ही थी। उन्होंने ठंडे बस्ते में डाल दी गई आधार योजना को निकालकर झाड़ा-पोंछा, कई उच्चस्तरीय बैठकें की और स्पष्ट कर दिया कि विशिष्ट पहचान संख्या की इस योजना को आगे बढ़ाया जाएगा। हालांकि नंदन नीलेकणि के नेतृत्व में इस योजना की परिकल्पना करने वाली यूपीए सरकार ने इसका कानूनी आधार तैयार नहीं किया था। ये काम मोदी सरकार ने किया जिसने इसके समर्थन में कानून बनाया और उसके बचाव में लंबी और ध्रुवीकृत कानूनी लड़ाई लड़ी।
इसी तरह प्रत्यक्ष लाभ अंतरण या डीबीटी योजना भी कांग्रेस द्वारा 2013 में बहुत धूमधाम के साथ शुरू की गई (जो आधार के साथ सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के वितरण की व्यवस्था को मजबूत करती है), जिसे मोदी ने गरीब समर्थक नीतियों के कार्यान्वयन में जमकर इस्तेमाल किया है और अभी कोरोनावायरस महामारी के दौरान भी उनकी सरकार ने गरीबों की मदद करने के लिए नकदी हस्तांतरण के इस तंत्र के उपयोग की बात की थी।
ग्रामीण आवास योजना 'इंदिरा आवास योजनाÓ के कार्यान्वयन से संबंधित अनेक गड़बड़ियां थीं। मोदी ने इस योजना के महत्व को महसूस किया और इसका नाम बदलकर 2015 में इसे खुद से जोड़ लिया, लेकिन साथ ही इसमें कई बदलाव भी किए जिससे यह पहले की तुलना में अधिक प्रभावी और लोकप्रिय बन सकी। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले बार-बार सुनाई देने वाला एक जुमला था- 'मोदीजी ने घर दिया हैÓ, जिसने दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता हासिल करने में प्रधानमंत्री की बहुत मदद की।
अब एक बड़ी राशि आवंटित करते हुए मोदी ने मनरेगा को बिल्कुल अपना बना लिया है, ये अलग बात है कि 2015 में संसद में अपने संबोधन में उन्होंने इसे 'यूपीए की विफलताओं का जीता जागता स्मारकÓ करार दिया था। 2011 में यूपीए द्वारा शुरू की गई सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) के आंकड़े आखिरकार 2015 में सामने आए और उसके बाद से ये लाभार्थियों को पहचानने और उन्हें लक्षित कर कल्याणकारी नीतियों के कार्यान्वयन में इस सरकार का आधार बन चुके हैं। दरअसल मोदी को अपने कार्यकाल के आरंभ में ही ये अहसास हो गया था कि 'सूट-बूट की सरकारÓ की छवि उनके पतन की वजह बन सकती है और बिना समय गंवाए उन्होंने 'जनकल्याणÓ का रुख कर लिया। उन्हें ज्यादा कुछ करना भी नहीं था, क्योंकि कांग्रेस ने अधिकतर तैयारी कर छोड़ी थी। उन्होंने बस अपनी रेसिपी के अनुसार उनको परस्पर मिलाने और मोदी तड़का लगाकर अपना बताते हुए बेचने का काम किया। बेशक, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उन्होंने इन योजनाओं के महत्व को समझा और इन्हें लागू करने की इच्छाशक्ति प्रदर्शित की।
परित्याग में माहिर कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी की विरासत के तेजी से क्षरण में मोदी की चतुराई से अधिक खुद कांग्रेस में दूरदर्शिता का अभाव परिलक्षित होता है। ग्रामीण आवास योजना को इंदिरा गांधी का नाम दिया गया था, लेकिन कांग्रेस ने इसमें सामान्य नौकरशाही के स्तर से अधिक रूचि नहीं ली थी। 2009 लोकसभा चुनावों में यूपीए के बेहतर प्रदर्शन का श्रेय आमतौर पर मनरेगा को दिया गया था, लेकिन सोनिया गांधी के समर्थन के बावजूद आगे चलकर इसमें सुधार करने या इसे बढ़ावा देने में पार्टी की रूचि नहीं रही। कांग्रेस ने डीबीटी को शुरू करने के बाद जल्दी ही भुला दिया। लेकिन उसने सबसे बुरा व्यवहार आधार के साथ किया। विशिष्ट पहचान प्रणाली को बहुत धूमधाम से शुरू किया गया था, लेकिन कुछ ही समय बाद उसे त्याग दिया गया। पार्टी के भीतर प्रतिद्वंदिता, सरकार में आंतरिक मतभेद और सुसंगत नीति की कमी के कारण आम सहमति का अभाव था और इसका खामियाजा नीतियों, योजनाओं और नवाचारों को भुगतना पड़ा। कांग्रेस का नुकसान मोदी का फायदा साबित हुआ, कम से कम यही प्रतीत होता है।
मोदी ने हड़पी कांग्रेस की विरासत
कांग्रेस ने कल्याणकारी तंत्र की सामग्री तैयार कर रखी थी। प्रधानमंत्री ने बस अपनी रेसिपी के अनुसार उनको परस्पर मिलाने और मोदी 'तड़काÓ लगाकर अपना बताते हुए बेचने का काम किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धीरे-धीरे लेकिन बहुत गंभीरता और राजनीतिक चतुराई के साथ, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों की अधिकांश कल्याणकारी विरासत को हड़प लिया है। आधार से लेकर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजना और मनरेगा से लेकर ग्रामीण आवास योजना तक- मोदी सरकार ने कांग्रेस की कई बहुप्रचारित पहलकदमियों को अपना लिया है, जिसके बल पर भारतीय जनता पार्टी ब्राह्मण-बनिया पार्टी की अपनी पुरानी छवि को मिटाते हुए ग्रामीण भारत के हितैषी के रूप में खुद को स्थापित कर पा रही है। भाजपा के इस कदम से कांग्रेस को सबक लेना चाहिए कि किस तरह किसी योजना को अपने रंग में रंगा जाता है।
- दिल्ली से रेणु आगाल