दरकते और रिसते बांधों ने बढ़ाई चिंता
20-Apr-2022 12:00 AM 505

 

मप्र की नदियों पर बांधों की एक बड़ी श्रृंखला है, लेकिन प्रदेश के अधिकांश बांध आधे दशक पुराने हैं। इन बांधों में यदा-कदा रिसाव और दरार पड़ने की खबरें आती हैं। हालांकि देर से ही सही सरकार ने बांधों की मरम्मत की कवायद शुरू कर दी है।

बुंदेलखंड के छतरपुर और टीकमगढ़ जिले के बॉर्डर पर बने बान सुजारा बांध के 6 गेट और गैलरी में बड़ा लीकेज हो गया है। इससे दोनों जिलों के 52 गांवों के ऊपर तबाही का खतरा पैदा हो गया है। दरअसल, प्रदेश में करीब आधा सैकड़ा बांध ऐसे हैं जो पुराने होने के कारण जर्जर स्थिति में आ गए हैं। दरकते और रिसते बांधों ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। जल संसाधन विभाग ने 27 ऐसे बांधों को चिन्हित किया है, जिनकी मरम्मत जरूरी है। जल संसाधन विभाग जल्द की निविदा आमंत्रित करके काम शुरू कराएगा।

जल संसाधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार श्योपुर जिले में वर्ष 1908 में निर्मित वीरपुर, वर्ष 1910 में सिवनी जिले में निर्मित रुमल और 1913 में धार जिले में बने माही सहित प्रदेश के 27 बांधों की सरकार मरम्मत कराएगी। इन बांधों की दीवार में कहीं-कहीं दरार आ चुकी हैं या कहीं-कहीं मिट्टी धंस रही है। मरम्मत कार्य के लिए सरकार ने 551 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं। अब जल संसाधन विभाग निविदा आमंत्रित करके काम शुरू कराएगा।

जल संसाधन विभाग के अफसरों का कहना है कि वर्ष 2019 में गांधी सागर बांध से पानी के रिसाव और पिछले साल ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अतिवृष्टि के बाद सरकार बांधों की सुरक्षा को लेकर गंभीर हो गई है। प्रदेश में ज्यादातर बांध 35 साल पुराने हैं। जबकि, तीन बांधों (वीरपुर, रुमल और माही) को बने हुए 100 साल से अधिक हो चुके हैं। बांधों की मरम्मत की जरूरत को देखते हुए बारिश से पहले मरम्मत सहित अन्य विकास के काम की कार्ययोजना बनाई गई है। जिन बांधों की मरम्मत होनी है उनमें इंदौर का देपालपुर और चोरल, सागर का चंदिया नाला, मंसूरवारी और राजघाट, खंडवा का भगवंत सागर, मंदसौर का गांधी सागर, काकासाहेब गाडगिल सागर और रेताम, भोपाल का कलियासोत, केरवा और हथाईखेड़ा, बैतूल जिले का चंदोरा, नर्मदापुरम का डोकरीखेड़ा, सीधी का कंचन टैंक, शिवपुरीकाकुडा, टीकमगढ़ का वीर सागर और नंदनवाड़ा, मंडलाका मटियारी, आगर मालवा का पोपलिया कुमार, धार का सकल्दा, रतलाम का रुपनियाखाल, शाजापुर का तिल्लार और कटनीका बोहरीबंद बांध शामिल हैं।

बांधों की वर्तमान स्थिति पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी आपत्ति की थी और सरकार को मरम्मत कराने की सलाह दी थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि मंदसौर जिले में चंबल नदी पर बना गांधी सागर बांध कमजोर हो गया है। बांध के डाउन स्ट्रीम में गहरे गड्ढ़े हो गए हैं। वर्ष 2019 में इस बांध से पानी का रिसाव भी ज्यादा हुआ था। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि बांध की सुरक्षा को लेकर बांध सुरक्षा निरीक्षण पैनल (डीएसआईपी), केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने 12 साल पहले जो सिफारिश की थी, वह पूरी नहीं की गई।

उधर, बुंदेलखंड के छतरपुर और टीकमगढ़ जिले के बॉर्डर पर बने बान सुजारा बांध के 6 गेट और गैलरी में बड़ा लीकेज हो गया है। इससे दोनों जिलों के 52 गांवों के ऊपर तबाही का खतरा पैदा हो गया है। गैलरी में पानी ज्यादा होने की वजह से सुधार का काम नहीं हो पा रहा है। लीकेज का मामला सरकार तक पहुंच गया है। इसका निर्माण हैदराबाद की जेवीआर कंस्ट्रक्शन कंपनी ने किया। 250 करोड़ की लागत से 2018 में बनकर तैयार हुए। बांध में कुल 12 गेट हैं, जिसमें से 6 गेट में हल्के लीकेज हो गए हैं। गैलरी में बड़ा लीकेज है। गैलरी को खाली कराने के लिए 50 हॉसपावर की मशीन लगाई है, लेकिन पानी खाली नहीं हो रहा है। बांध में शुरू से ही लीकेज है और मिट्टी का कटाव हो रहा है। शुरू में बड़ा लीकेज होने पर बांध को खाली कराकर सुधार किया गया था। लेकिन बांध में लीकेज बना हुआ है। बांध में लीकेज और सुधार का मामला शुरू से सरकार के संज्ञान में है। फिलहाल बांध लबालब भरा है। मरम्मत के लिए बांध के खाली होने का इंतजार है। बानसुजारा बांध ईई वीपी अहिरवार ने बताया कि बांध की गैलरी में लीकेज बड़ा इश्यू है। दो साल से कोरोना के चलते एजेंसी नेे लीकेज सुधार का काम नहीं किया। बांध खाली होने पर सुधार हो पाएगा। विभागीय अधिकारी बांध निर्माण एजेंसी द्वारा गुणवत्ता से समझौता करने की बात भी मौन स्वीकार कर रहे हैं।

जर्जर बांधों की जद में मप्र की आधी आबादी

प्रदेश के करीब 91 बांध उम्रदराज हैं और ये कभी भी दरक सकते हैं। मप्र वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट के आंकडों के अनुसार प्रदेश में पेयजल उपलब्ध कराने, सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए 168 बड़े और सैकड़ों छोटे बांध बनाए गए हैं। देखरेख और मेंटेनेंस के अभाव में कई छोटे-बड़े बांध बूढ़े और जर्जर हो चुके हैं। इनमें से कुछ की उम्र 100 साल से ज्यादा है। इन उम्रदराज बांधों को लेकर बेपरवाह प्रशासन ने न तो इन्हें डेड घोषित किया और न ही मरम्मत की कोई ठोस पहल की। ऐसे लबालब ये बांध यदि दरक गए या टूट गए तो कभी भी बड़ी तबाही ला सकते हैं। इन बांधों की वजह से नदियां भी अपनी दिशा बदल सकती हैं। इससे भी बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। लेकिन इस ओर कभी किसी का ध्यान नहीं गया है। प्रदेश के लगभग आधा सैकड़ा बांधों की उम्र 50 साल पूरी हो चुकी है। जबकि 18 बांध तो 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। ऐसे में इन बांधों की ठोस मरम्मत नहीं होने से इनके आधार कमजोर हो चले हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक बड़े बांधों की उम्र 100 वर्ष व छोटे बांधों की उम्र लगभग 50 वर्ष मानी जाती है। इस उम्र तक इन बांधों की मजबूती बनी रहती है। बाद में धीरे-धीरे ये कमजोर होने लगते हैं। साथ ही नदियों के साथ आने वाले गाद भी बांधों को प्रभावित करते हैं। इससे बांधों की क्षमता कम होने लगती है। 

- जय सिंह

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^