18-Feb-2020 12:00 AM
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छत्तीसगढ़ में भाजपा को एक ओर जहां चुनावों में लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ प्रदेश संगठन नेताओं में आपसी सामंजस्य की कमी और उनके अंतर्विरोध से भी पार्टी काफी कमजोर हो रही है। यह इस बात से साफ हो जाता है कि 2018 में सत्ता से बेदखल होने के बाद पार्टी के दिग्गज नेताओं के बीच कभी एक साथ मिलकर सत्तारूढ़ दल कांग्रेस का सामना करने की सोच नहीं बन पाई है। पार्टी के जानकार मानते हैं कि भाजपा का वर्तमान प्रदेश नेतृत्व भी इस दिशा में ऐसी कोई मजबूत पहल नहीं कर पाई है जिससे यह कहा जा सके कि 2018 के विधानसभा चुनाव में पिट जाने के बाद पार्टी ने कोई सबक लिया हो। संगठन के कुछ नेताओं का कहना है कि प्रदेश में पार्टी नेतृत्व को सभी गुटों को साथ लेकर चलने का जल्द ही कोई फॉर्मूला बनाना पड़ेगा वरना संगठन में व्यप्त गुटबाजी के चलते राज्य मेंं होने वाले चुनावों में पार्टी को हमेशा मुंह की खानी पड़ेगी।
हालांकि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी संगठन के अंदर गुटबाजी को स्वाभाविक मतभेद की संज्ञा देते हैं लेकिन पार्टी के कुछ बड़े नेता यह साफ तौर पर कह रहे हैं कि कई धड़ों में बंटी छत्तीसगढ़ भाजपा के लिए आने वाले दिनों में यह बहुत घातक हो सकता है क्योंकि पार्टी इस दौर से पहली बार गुजर रही है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता जो पूर्व मुख्यंमत्री डॉ. रमन सिंह के काफी करीबी माने जाते थे, नाम जाहिर न किए जाने की शर्त पर उन्होंने बताया कि राज्य के गठन को बीस साल बीत चुके हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब पार्टी संगठन सत्ता की मदद के बिना चल रहा है। इस नेता के अनुसार भाजपा के लिए संगठन में गुटबाजी एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है।
प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल में गुटबाजी का आलम यह है कि पार्टी के नेता अब कहने लगे हैं कि संगठन के क्षत्रपों को एक साथ लाने में राज्य का नेतृत्व असहाय है। अब इस दिशा में केंद्रीय नेतृत्व को ही कोई बड़ी पहल करनी होगी। भाजपा के एक आदिवासी विधायक कहते हैं 'बाहर से तो कुछ ज्यादा नहीं दिख रहा है लेकिन अंदरूनी तौर पर स्थिति 'अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग’ वाली है। प्रदेश के बड़े नेता एक दूसरे के साथ दिखना भी नहीं चाहते। यहां तक कि संगठन के राजनीतिक कार्यक्रम भी बड़े नेता अपने धड़ों की आवश्यकता अनुसार तैयार कराकर उसमें भाग लेते हैं।’
वहीं दूसरी तरफ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष कहते हैं 'पार्टी के अंदर किसी प्रकार की गुटबाजी नहीं है। हां, नेताओं में कभी-कभी मुद्दों के आधार पर वैचारिक मतभेद स्वाभाविक तौर पर होता है लेकिन यह कोई बड़ी बात नहीं है, सभी बड़े नेता जब भी अवसर आता है एकजुट होकर सत्तारूढ़ दल का सामना करते हैं।’ उसेंडी आगे कहते हैं, 'नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा के हार का मुख्य कारण है राज्य सरकार द्वारा सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर चुनाव में की गई गड़बड़ी। यह सर्व विदित है कि भूपेश बघेल सरकार ने नगर निगम मेयर, नगर पालिका अध्यक्ष और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जनता द्वारा सीधे क्यों नहीं कराया। ईवीएम के बजाय मतपत्रों के माध्यम से चुनाव करवाना भी सरकार को शक के दायरे में लाता है।’
भाजपा अध्यक्ष के अनुसार नगरीय निकाय चुनाव के जीत का एजेंडा बघेल सरकार ने पहले से ही तय कर लिया था और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग पार्षदों की खरीद फरोख्त के लिए किया। प्रदेश भाजपा नेताओं का कहना है कि गुटबाजी के चलते पार्टी आज करीब तीन से चार धड़ों में बंटी हुई है। हालांकि संगठन में मुख्यत: दो ही बड़े धड़े हैं जिनमें एक का नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह करते हैं और दूसरे का उनके ही सरकार में 15 साल तक कैबिनेट मंत्री रहे बृजमोहन अग्रवाल। इनके अलावा भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव सरोज पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी, पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और वर्तमान केंद्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय के साथ-साथ पूर्व सांसद और त्रिपुरा गवर्नर रमेश बैस के भी अपने ही धड़े हैं। हालांकि बैस के गवर्नर बनने के बाद उनके समर्थकों ने अब दूसरे गुटों का सहारा लेना शुरू कर दिया है।
प्रदेश नेतृत्व असहाय, केंद्रीय मूक दर्शक
पार्टी के अंदर व्याप्त गुटबाजी और एकजुटता की कमी का एक प्रमुख कारण प्रदेश इकाई के प्रति केंद्रीय संगठन का बेपरवाह रवैया भी है। प्रदेश संगठन में कुछ बड़े नेता मानते हैं कि रमन सिंह सरकार के जाने के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य की सुध लेना ही छोड़ दिया है। ये नेता कहते हैं कि केंद्रीय नेताओं को इस बात से कुछ लेना-देना नहीं है कि छत्तीसगढ़ भाजपा के अंदर क्या चल रहा है। नेता नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की प्राथमिकता वे राज्य हैं जहां चुनावी प्रक्रिया या तो चल रही है या फिर आने वाले एक साल के अंदर चुनाव होना है। संगठन के एक पदाधिकारी कहते हैं, 'यही कारण है कि पार्टी की प्रदेश इकाई का केंद्र में कोई माई-बाप नहीं रह गया है और राज्य का नेतृत्व पिछले एक साल में इतना सक्षम नहीं हो पाया कि गुटबाजी को कम कर पाए। कई बार तो ऐसा लगता है कि भाजपा के अंदर बड़े नेता एक-दूसरे को देखना भी पसंद नहीं कर रहें हैं एकसाथ आना तो दूर की बात है। पार्टी के एक प्रवक्ता का कहना है कि 2018 के अंतिम महीने में सत्ता से बेदखल होने के बाद लोकसभा चुनाव 2019 को छोड़कर, वह भी संभवत: पार्टी हाईकमान के डर से, ऐसा कोई समय नहीं आया जब कार्यकर्ताओं के अंदर एक संदेश दिया जा सके कि भाजपा कांग्रेस का मुकाबला करने में सक्षम है। पिछले एक साल में पार्टी नेतृत्व द्वारा ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं चलाया गया जिसके तहत पार्टी के बड़े नेता भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ मिलकर जनता के बीच जाएं।
- रायपुर से टीपी सिंह