मप्र में आगामी विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह चौहान बनाम कमलनाथ होगा। इसको लेकर दोनों पार्टियों ने चुनावी जमावट शुरू कर दी है। भाजपा पूरी तरह चुनावी मोड में है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में पार्टी मिशन 2023 की रणनीति में कांग्रेस से काफी आगे है। भाजपा का पूरा फोकस प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 200 सीटों को जीतने पर है। इसके लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी मोर्चा संभालना शुरू कर दिया है।
मप्र में मिशन 2023 का घमासान दिन पर दिन तेज होता जा रहा है। भाजपा का पूरा फोकस 200 पार के लक्ष्य पर है। इसके लिए हर स्तर पर तैयारी चल रही है। वहीं निकाय और पंचायत चुनाव की गतिविधियां तेज हो चली हैं। इन्हें लेकर भाजपा संगठन भी अतिरिक्त सक्रिय हो चुका है। इसी बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी प्रदेश के दौरे पर आ रहे हैं। इस दौरान वे मंडल अध्यक्षों व पदाधिकारियों से रूबरू होंगे। सत्ता-संगठन के तालमेल पर चर्चा करेंगे। इसके अलावा प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति को भी संबोधित करेंगे। दो सप्ताह पूर्व ही भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश भी जिलों की कोर कमेटियों से मैदानी फीडबैक लेकर गए हैं। ऐसे में राजस्थान में राष्ट्रीय पदाधिकारियों के साथ हुई बैठक के बाद नड्डा का यह दौरा बेहद अहम माना जा रहा है।
भाजपा अध्यक्ष का यह दौरा इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि अब मप्र पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुका है। प्रदेश में पहले दौर में नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव होने हैं। इसके बाद 2023 में विधानसभा चुनाव होंगे। निकाय और पंचायत चुनावों को 2023 के सेमीफाइनल के तौर पर भी देखा जा रहा है। ऐसे में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, संगठन पदाधिकारियों के साथ बैठक कर चुनाव की रणनीति पर चर्चा करेंगे। ताकि चुनाव से पहले सभी कमियों को दूर किया जा सके। इससे पहले इस साल मार्च में नड्डा ने इंदौर और अप्रैल में गृहमंत्री अमित शाह का भोपाल दौरा किया था।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का मप्र का दौरा विधानसभा चुनाव 2023 और लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बेहद अहम है। वे अपने दौरे के दौरान सत्ता और संगठन के तालमेल पर बात करेंगे। 2023 और 2024 के चुनावी रोडमैप पर भाजपा संगठन से चर्चा करेंगे। क्योंकि प्रदेश निकाय-पंचायत चुनाव के मुहाने पर हैं, इसलिए वे टिकट वितरण के मापदंडों पर भी संगठन से चर्चा कर सकते हैं। सत्ता-संगठन के बीच चल रही खींचतान की खबरों को लेकर सूत्रों का कहना है कि मप्र के राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि दोनों के बीच तालमेल का अभाव है। लेकिन अन्य पार्टियों की तरह भाजपा में कभी भी अनबन सतह पर नहीं दिखाई देती। देश में एकमात्र मप्र ऐसा राज्य है, जहां भाजपा का संगठन सबसे मजबूत और संगठित है। इसकी मिसाल पूरे देशभर में दी जाती है।
सत्ता, संगठन और संघ ने पहले ही संकेत दे दिया है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान ही पार्टी का मुख्य चेहरा होंगे। सर्वे में भी लोगों ने इस पर मुहर लगाई है। गौरतलब है कि आगामी दिनों में भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश और गुजरात में इस वर्ष नवंबर-दिसंबर महीने में चुनाव होने की संभावना है। उम्मीद यही की जा रही है कि इन दोनों राज्यों के साथ जम्मू और कश्मीर में भी चुनाव होगा। फिर अगले वर्ष फरवरी-मार्च महीने में मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में चुनाव होगा। मेघालय और नागालैंड में स्थानीय क्षेत्रीय दलों के नेतृत्व में भाजपा के सहयोगी दलों की सरकार है, जबकि त्रिपुरा में भाजपा पहली बार 2018 में चुनाव जीतकर सरकार बनाने में सफल रही थी। फिर अगले वर्ष मई में कर्नाटक में चुनाव निर्धारित है। 2018 में हुए चुनाव में कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा चुनी गई थी, जिसमें भाजपा साधारण बहुमत से 8 सीटों से दूर रह गई थी। भाजपा को सत्ता से दूर रखने के इरादे से कांग्रेस पार्टी और जनता दल (सेक्युलर) की मिलीजुली सरकार बनी। दोनों दलों के कई विधायक बाद में बगावत करके भाजपा में शामिल हो गए और 2019 अंतत: भाजपा की सरकार बन ही गई। और फिर 2023 के नवंबर-दिसंबर महीने में छत्तीसगढ़, मप्र, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होगा।
इन सभी 12 चुनावी राज्यों में मप्र ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां भाजपा सबसे सुरक्षित और संगठित है। अत: संगठन और संघ मप्र को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। जबकि अन्य राज्यों में भाजपा कुछ बदलाव कर सकती है। अभी हाल ही में राजस्थान में संपन्न भाजपा की बड़ी बैठक में राष्ट्रीय नेताओं ने भी संकेत दिया कि मप्र में पार्टी सबसे मजबूत और संगठित स्थिति में है। वहीं राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की घोषणा की गई। दरअसल, 2018 में सत्ता जाने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह जनता के बीच सक्रियता दिखाई, उससे भाजपा के प्रति मतदाताओं का विश्वास प्रगाढ़ हुआ है। वहीं चौथी पारी में मुख्यमंत्री बनने के बाद से शिवराज सिंह चौहान ने बिना आराम किए प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया है, उससे भाजपा आज मजबूत स्थिति में पहुंच गई है।
उधर 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस जितनी संगठित थी इस बार वह उतनी ही बेदम है। प्रदेश में अंगद की तरह पैर जमाकर बैठे शिवराज सिंह चौहान को उखाड़ फेंकने के लिए कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के अनेक असंतुष्ट भी कोशिश करते रहे, मगर उन्हें अभी तक तो कामयाबी नहीं मिली। नर्मदा की तलहटी में बचपन से तैरने वाले शिवराज राजनीति के अनेक सैलाब को पार करते चले गए। दिग्विजय सिंह की सरकार को सत्ता से हटाने के साथ प्रदेश में भाजपा सरकार के करीब 19 साल और शिवराज के करीब 17 साल के शासन के विरोध में कांग्रेस ने उन्हें उखाड़ फेंकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन शिवराज उतने ही मजबूत होते चले गए। यह तो तय है कि मप्र में होने वाले आगामी विधानसभा के चुनाव लगातार चौथी बार सत्ता संभाल रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही भाजपा लड़ेगी! इसके पीछे कई कारण हैं। पहला यह कि आज भाजपा के पास शिवराज का विकल्प नहीं है और शिवराज अपनी अनेक लोकलुभावन योजनाओं के कारण चर्चित हैं। पार्टी में अमित शाह, नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा के साथ-साथ संघ प्रमुख मोहन भागवत से भी उनके संबंध मधुर हैं। जो उन्हें स्थायित्व प्रदान किए हैं।
वहीं 2003 के विधानसभा चुनाव से मिशन-2018 तक प्रयोग में उलझी कांग्रेस प्रदेश के दिग्गजों की खेमेबाजी में ऐसी उलझी है कि सत्ता में आने के बाद भी 15 माह के अंदर ही सत्ता गंवानी पड़ी। इन सालों में कांग्रेस ने हर कोशिश की कि ये गुटबंदी खत्म हो जाए, पर ज्यों-ज्यों दवा की त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता ही गया कि तर्ज पर मसला ऐसा उलझता गया कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी इसे नहीं सुलझा पाए। अब जबकि देश के सबसे बड़े हिंदी राज्य उप्र में लगातार दूसरी बार भाजपा की सरकार बन जाने के बाद मप्र ही कांग्रेस को दिखाई दे रहा है कि यहां अगर भाजपा को नहीं रोका गया तो कांग्रेसमुक्त भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्ष्य को रोकने की कोई राह उसके पास बचेगी! इसलिए कांग्रेस एक बार फिर से समन्वय की कवायद में जुटी हुई है।
मप्र में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि पूरी भाजपा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व को पूरे मन से स्वीकार रही है। इसलिए उसके सामने भाजपा को हराने के लिए कोई माध्यम नहीं मिल पा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा जुनून, जज्बे और लक्ष्य के साथ मैदान में उतरती है। तभी वह हर काम में सफलता अर्जित कर लेती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चौथी पारी में सत्ता, संगठन और संघ का समन्वय हर बार की अपेक्षा अधिक देखा जा रहा है। इसलिए कांग्रेस के लिए 2023 बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है।
प्रदेश सरकार इस समय मिशन मोड में है। इसकी वजह है आगामी विधानसभा चुनाव। भाजपा सरकार आगामी विधानसभा चुनाव में विकास के मुद्दे पर मैदान में उतरेगी। इसके लिए विभिन्न योजनाओं और परियोजनाओं को धड़ाधड़ मंजूरी दी जा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आत्मनिर्भर मप्र अभियान को प्रदेश के गांव संबल दे रहे हैं। इसकी वजह यह है कि प्रदेश सरकार के नवाचारों से गांवों की तस्वीर बदली है। प्रदेश सरकार का शहर की ही तरह गांवों के विकास पर भी फोकस है। इसके लिए प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार की अभ्युदय योजना को माध्यम बनाया है।
10 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने पर होगी चर्चा
पंचायत-निकाय चुनाव को लेकर भाजपा संगठन सतर्क हो गया है। इसलिए शिवप्रकाश के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का प्रवास महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वे विधायकों, मंत्रियों और सांसदों के काम की समीक्षा भी करेंगे। इस दौरान जमीनी कार्यकर्ताओं से फीडबैक भी लेंगे। वहीं, अगले महीने से भाजपा के नए ऑफिस का काम भी प्रारंभ होना है। उसकी रूपरेखा भी तय की जाएगी। बैठक में मंडल के पदाधिकारियों से बूथ विस्तारक अभियान और पार्टी के 10 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने पर भी चर्चा हो सकती है। भाजपा अध्यक्ष स्थानीय निकाय चुनावों के लिए चुनावी रणनीति पर चर्चा करने के लिए संगठन के पदाधिकारियों से भी मिलेंगे, ताकि चुनाव से पहले सभी कमियों को दूर किया जा सके। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने बताया कि हमारा सौभाग्य है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा एक से तीन जून तक मप्र के दौरे पर रहेंगे। एक जून को वे भोपाल में प्रदेश भाजपा कार्यसमिति के सदस्यों और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करेंगे।
सिंधिया का बढ़ा कद, कोर ग्रुप और इलेक्शन कमेटी में शामिल
भाजपा ने स्टेट इलेक्शन कमेटी, स्टेट कोर ग्रुप, प्रदेश आर्थिक समिति और प्रदेश अनुशासन समिति की घोषणा कर दी है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को इलेक्शन कमेटी के साथ कोर ग्रुप में जगह दी गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खास माने जाने वाले विधायक रामपाल सिंह को इलेक्शन कमेटी में जगह दी गई है। इसमें एससी-एसटी वर्ग के कोटे से भी दो नए नाम जोड़े गए हैं। इसमें सांसद गजेंद्र सिंह पटेल और केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार खटीक को जगह दी गई है। वहीं, सीनियर लीडर अध्यक्ष विक्रम वर्मा, सत्य नारायण जटिया, प्रभात झा, कृष्ण मुरानी मोघे को कोर ग्रुप में जगह नहीं मिल पाई है। वीडी शर्मा के बीते दो साल के कार्यकाल के बाद यह बदलाव देखने को मिला है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 1 जून से तीन दिनों के मप्र प्रवास पर रहेंगे। 1 जून को वे भोपाल में रहेंगे। इससे पहले यह बदलाव किया गया है। नए कोर ग्रुप, इलेक्शन कमेटी के साथ नड्डा बैठक करेंगे।
- कुमार राजेन्द्र